करबला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके निष्ठावान साथियों की शहादत के पश्चात उनके परिजनों को बहुत कठिन परिस्थितियों में बंदी बना लिया गया। इब्ने ज़ियाद ने करबला के बंदियों को अपने महल में बुलाने से पहले यह आम घोषणा कर दी थी कि जो कोई महल में आना चाहे वह आ सकता है। इसनके बाद उसने आदेश दिया कि इमाम के परिजनों को महल में लाया जाए। तुच्छ लोगों ने इमाम हुसैन के कटे हुए सिर को इब्ने ज़ियाद के सामने रखा। उस दु्ष्ट ने निर्लज्जतापूर्ण ढंग से एक छड़ी से इमाम के कटे हुए सिर का अनादर करना आरंभ किया। इसी बीच उसने इमाम ज़ैनुल आबेदीन की ओर मुख करते हुए, जो बहुत बीमार थे, उनसे पूछा की तुम्हारा क्या नाम है?इमाम ने कहा कि मैं अली इब्ने हुसैन हूं।इसपर इब्ने ज़ियाद ने कहा, क्या अली इब्ने हुसैन को ईश्वर ने नहीं मारा?इमाम सज्जाद ने कहा कि मेरे एक बड़े भाई थे जिनका नाम भी अली था। लोगों ने उनकी हत्या कर दी।इब्ने ज़ियाद ने कहा, लोगों ने उनकी हत्या नहीं की बल्कि ईश्वर ने उनको मारा।इब्ने ज़ियाद की बात पर इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने कहा, अलबत्ता, ईश्वर मृत्यु के समय हर प्राणी का प्राण लेता है और कोई भी उसकी अनुमति के बिना नहीं मरता।इमाम की हाज़िर जवाबी (प्रत्युत्तर) को देखकर इब्ने ज़ियाद क्रोधित हो गया और उसने आदेश दिया कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) का सिर उनके धड़ से अलग कर दिया जाए।यह देखकर हज़रत ज़ैनब इमाम सज्जाद के सामने आकर उनके लिए ढाल बन गईं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने बहुत ही दृढ़ता से इब्ने ज़ियाद को संबोधित करते हुए कहा कि क्या अभी तक तुझको यह नहीं पता चला कि शहादत तो हमारी परंपरा है यह हमारे लिए गौरव है।आज इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस है जो सज्जाद के उपनाम से प्रसिद्ध थे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, करबला की त्रासदी में बच जाने वाले इमाम हुसैन (अ) के एकमात्र पुत्र थे। इमाम सज्जाद की शहादत के दुखद अवसर पर हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।अपने पिता तथा पूर्वजों की ही भांति इमाम ज़ैनुल आबेदीन भी ज्ञानी एवं उच्च विशेषताओं के स्वामी थे उन्होंने शामवासियों से, जिन्होंने इस्लाम को केवल उमवियों के माध्यम से प्राप्त किया था, अपना परिचय इस्लाम के पवित्र स्थलों का नाम लेकर इस प्रकार करवायाः मैं मक्के और मिना का पुत्र हूं। मैं ज़मज़म और सफ़ा का पुत्र हूं। मैं उस महापुरूष का पुत्र हूं जिसने अपनी अबा से हजरे असवद को उठाया था अर्थात मैं पैग़म्बरे इस्लाम का पुत्र हूं।। मैं अलीये मुर्तज़ा का बेटा हूं। मैं संसार की महिलाओं की सरदार फ़ातेमा ज़हरा का बेटा हूं। मैं ख़दीजतुल कुबरा का बेटा हूं। मैं उसका बेटा हूं जिसके पिता पर अत्याचार करके उसका का गला काटा गया। मैं उसका बेटा हूं जिसके पिता को बहुत सताया गया प्यासा मारा गया और जिसका गला गरदन के पीछे से काटा गया। मै उसका पुत्र हूं जो प्यासा मारा गया और जिसका शरीर करबला की धरती पर पड़ा रहा। और उसकी पगड़ी व रिदा को इस स्थिति में छीन लिया गया कि आकाश के फ़रिश्ते उसके शोक में रो रहे थे। मैं उसका पुत्र हूं जिसके सिर को भालों पर रखा गया और जिसके परिजनों को इराक़ से बंदी बनाकर शाम लाया गया।इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके पवित्र साथियों की शहादत के पश्चात समाज की स्थिति बहुत जटिल हो गई थी। इस अंधकारमय काल में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को इस्लाम को उसके निश्चित पतन से बचाना था। वे यह बात भलि भांति जानते थे कि उनके पिता इमाम हुसैन की शहादत का कारण केवल यज़ीद और उसकी सशस्त्र सेना नहीं थी बल्कि यह महात्रासदी लोगों की अज्ञानता और उनमें फैली निश्चेतता के कारण थी।पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के पश्चात उमवियों का भरसक प्रयास यह था कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को राजनैतिक, सामाजिक तथा अन्य सभी मंचों से अलग थलग कर दिया जाए। समाज में अज्ञानता के काल की परंपराओं का चलन और उस काल की ओर वापसी, इसी कार्यवाही के दुषपरिणाम थे। उस घुटन भरे वातावरण में इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने सांस्कृतिक क्रांति के माध्यम से अपना आन्दोलन आरंभ करने का निर्णय लिया ताकि समाज का मार्गदर्शन शांति एवं स्थिरता की ओर किया जा सके। उन्होंने यह कार्य प्रार्थनाओं के माध्यम से किया।निःसन्देह, ईश्वर से प्रार्थना करना केवल एक उपासना ही नहीं है बल्कि यह एक प्रकाश का तेज है जो प्रार्थना करने वाले की आत्मा से निकलता है और यह ऐसी सबसे सशक्त ऊर्जा है जिसे मनुष्य उत्पादित कर सकता है। इस संबन्ध में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरूस्कार प्राप्त करने वाले फ़्रांसीसी जीव वैज्ञानिक "एलेक्सिस कार्ल" कहते हैं कि मनुष्य के शरीर और उसकी आत्मा पर दुआ के प्रभावों को शरीर में स्त्रवण करने वाली ग्रंथियों के प्रसाव की भांति सिद्ध किया जा सकता है शरीर की सक्रियता में वृद्धि, चिंतन शक्ति मे वृद्धि तथा वास्तविकताओं को समझने में मनुष्य की समझ का परिपक्व होना दुआ के परिणाम है। प्रार्थना के माध्यम से मनुष्य अहंकार, मूर्ख्रतापूर्ण आत्ममुग्धता, भय लालच तथा अन्य प्रकार की अपनी ग़लतियों को पहचानता है। उसके भीतर नैतिक विशेषताओं के प्रति कटिबद्वता और बुद्विमत्तापूर्ण विनम्रता उत्पन्न होती है और इस प्रकार आत्मा/ईश्वरीय कृपा और दया के निकट होती है। एक चिकित्सक के रूप में मैं कहता हूं कि प्रार्थना की शक्ति धरती की गुरूत्वाकर्षण शक्ति की भांति वास्तविक है और यही वह एकमात्र शक्ति है जो प्रकृति के लागू नियमों पर भी विजय प्राप्त कर सकती है।इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने प्रार्थना की भाषा में एक स्वस्थ जीवन के समस्त तत्वों को बहुत ही सुन्दर, सूक्ष्म एवं व्यापक स्तर पर प्रस्तुत किया और समाज में मानव के चरित्र निर्माण की संस्कृति को प्रचलित किया ताकि मनुष्य की आत्मिक एवं सामाजिक सुरक्षा के स्तर को बढ़ाया जा सके और लोगों को संतोष उपलब्ध कराने के स्तर में वृद्धि की जाए।इसी संदर्भ में उन्होंने अपनी प्रार्थनाओं के अमर संग्रह में जो सहीफ़ए सज्जादिया के नाम से विख्यात है स्वास्थ्य, तत्वदर्शिता, सुरक्षा तथा शांति आदि इसी प्रकार के बहुत से विषयों का बड़े ही मनमोहक ढंग से उल्लेख किया है।अपनी प्रार्थनाओं में इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम सर्वप्रथम परिपूर्ण मानव का आदर्श प्रस्तुत करते हैं क्योंकि इस प्रकार के व्यक्तित्व की पहचान के बिना मानव अच्छे और बुरे लोगों को या अच्छे विचारों और बुरे विचारों के बीच अंतर को नहीं पहचान सकता। यही कारण है कि उनकी प्रार्थनाओं का आरंभ पैग़म्बरे इस्लाम सल्ललल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम और उनके पवित्र परिजनों पर सलाम से आरंभ होता है क्योंकि वे लोग हर दृष्टि से परिपूर्ण थे।पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स) और उनके पवित्र परिजन ईश्वरीय अनुकंपाओं का माध्यम हैं और उनके मार्ग पर चले बिना उचित मार्गदर्शन एव सफलता संभव ही नहीं है। यह परिवार हर दृष्टि और आयाम से सर्वोत्तम है और उन्होंने पवित्र क़ुरआन के साथ वास्तविक आध्यात्म और मनुष्य के कल्याण एवं मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया।इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम लोगों के ध्यान को उनके अस्तित्व में छिपी एक विशेषता की ओर आकृष्ट कराते हैं जो ईश्वर की तलाश की भावना है। यह भावना मनुष्य के व्यवहार में सुधार लाने में प्रभावी है। ईश्वर का खोजी, ईश्वर की खोज की अपनी प्रवृत्ति के कारण ही सदैव उसकी याद में रहता है और इसी ध्यान के कारण वह पाप और अत्याचार करने से दूर रहता है। इमाम को यह बात मालूम थी कि लोग यदि ईश्वर पर भरोसा करते हुए अपने ईमान अर्थात आस्था से सहायता ले त
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