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28 सफ़र रसूले इस्लाम स. और इमाम हसन अ. की शहादत

इलाही पैग़म्बरों की एक अहेम ज़िम्मेदारी जेहालत, बेदीनी, अंध विश्वास के विरुद्ध संघर्ष और अन्याय, ज़ुल्म और मानवाधिकारों के हनन के ख़ेलाफ़ आंदोलन छेड़ना था। आख़री इलाही पैग़म्बर, रसूले इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने भी इंसानियत को जेहालत, भेदभाव और ज़ुल्म से नजात दिलाने के लिए अपना आंदोलन चलाया और एक क्षण भी इसे रुकने नहीं दिया।
28 सफ़र रसूले इस्लाम स. और इमाम हसन अ. की शहादत

 इलाही पैग़म्बरों की एक अहेम ज़िम्मेदारी जेहालत, बेदीनी, अंध विश्वास के विरुद्ध संघर्ष और अन्याय, ज़ुल्म और मानवाधिकारों के हनन के ख़ेलाफ़ आंदोलन छेड़ना था। आख़री इलाही पैग़म्बर, रसूले इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने भी इंसानियत को जेहालत, भेदभाव और ज़ुल्म से नजात दिलाने के लिए अपना आंदोलन चलाया और एक क्षण भी इसे रुकने नहीं दिया।


विलायत पोर्टलः इलाही पैग़म्बरों की एक अहेम ज़िम्मेदारी जेहालत, बेदीनी, अंध विश्वास के विरुद्ध संघर्ष और अन्याय, ज़ुल्म और मानवाधिकारों के हनन के ख़ेलाफ़ आंदोलन छेड़ना था। आख़री इलाही पैग़म्बर, रसूले इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने भी इंसानियत को जेहालत, भेदभाव और ज़ुल्म से नजात दिलाने के लिए अपना आंदोलन चलाया और एक क्षण भी इसे रुकने नहीं दिया।
पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. ने इंसानियत के लिए ज़िंदगी व क़यामत, लोक-परलोक, ज़िम्मेदारी व कर्तव्य, इकोनॉमिक सिस्टम, सियासत, इंसानीत व अध्यात्म जैसे हर मामले को मद्देनज़र रखते हुए बेहतरीन प्रोग्राम पेश किया। उन्होंने इंसानी अक़दार (मूल्यों), न्याय और अक़्लमंदी की बात पेश की और समाज को सच्चाई का रास्ता दिखाया। आज इसी महान इलाही पैग़म्बर की वफ़ात (स्वर्गवास) का दिन है। पैग़म्बरे इस्लाम का २८ सफ़र सन ११ हिजरी क़मरी को देहांत हो गया जबकि आज ही के दिन पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत भी हुई। यह दिल दहला देने वाली घटना सन ५० हिजरी में घटी। जैसा कि हमने बताया इलाही पैग़म्बरों का एक अहेम कर्तव्य न्याय की स्थापना और ज़ुल्म से संघर्ष होता था। अल्लाह क़ुरआन के सूरए हदीद की आयत नम्बर २५ में इस बारे में कहता है कि हमने अपने पैग़म्बरों को साफ़ दलीलों के साथ भेजा और उनके साथ किताब तथा (हक़ व बातिल (सत्य व असत्य) की पहचान के लिए) कसौटी भेजी ताकि लोग न्याय की स्थापना कर सकें।
इलाही पैग़म्बरों ने ज़ुल्म और अन्याय का विरोध इस लिए किया कि यह बुराइयां आईडियल इंसानी ज़िंदगी के रास्ते की बड़ी रुकावटें हैं। अल्लाह ने आईडियल पाक ज़िंदगी को फलदार पेड़ के समान बताया है। पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. ने भी अपने अभियान का टार्गेट पाक ज़िंदगी के पेड़ को फलदार बनाना बताया। इस्लाम के विकास, विस्तार और प्रसार की एक बेसिक वजह हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का कैरेक्टर था जिन्होंने अपने व्यवहार द्वारा गुमराह लोगों को सच्चाई के रास्ते पर अग्रसर कर दिया था जिन्होंने बाद एक महान सभ्यता की नींव डाली। पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. ने अपने महान आंदोलन द्वारा पब्लिक को बेदार किया और इस तब्दीली के साथ इस्लाम एक संगठित, संपूर्ण तथा अमर दीन के रूप में दुनिया के सामने पेश हुआ। पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. ने आपसी मेल-मिलाप और भाईचारे का हुक्म दिया और ग़ुलामी के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उन्होंने जातिवाद ख़त्म कर दिया और अमीर और ग़रीब के बीच भेद ख़त्म हो गया। ब्रिटेन के राइटर बर्नार्ड शा पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. तथा इस्लाम दीन के बारे में कहते हैं कि मैं मुहम्मद के दीन का आदर करता हूं। यह एक ज़िंदा और प्रोग्रेसिव दीन है। मेरी यह भविष्यवाणी है कि कल यूरोप वाले भी जहां इस दीन के निशानियाँ देखी जा सकती हैं, मुहम्मद स.अ. के दीन को क़ुबूल करेंगे और मुहम्मद स.अ. पर ईमान ले आएंगे। मैं इस महान हस्ती के बारे में इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि उन्हें इंसानियत को नजात दिलाने वाला कहना चाहिए। अगर उन जैसा कोई इंसान नई दुनिया की ज़िम्मेदारी उठा ले तो सारी दुनिया की कठिनाइयों का समाधान हो जाएगा और इंसान तरक़्क़ी और कामयाबी हासिल कर लेगा। आज हम साफ़ तौर पर देख रहे हैं कि इस्लाम दीन और तेजी से फैल रहा है और यूरोप में जहां इस्लाम का सबसे अधिक विरोध किया जा रहा है वहां यह दीन सबसे तेज़ स्पीड से फैल रहा है।
यह इस्लाम दीन की सच्चाई का सुबूत है क्योंकि जिस दीन के विरुद्ध बड़े पैमाने पर प्रचार हो रहा है और सरकारी और ग़ैर सरकारी दोनों स्तर पर गतिविधियां पूरी स्पीड से जारी हों उसके प्रति लोगों का झुकाव बढ़े और लोग उसे क़ुबूल करें वह दीन साधारण दीन नहीं हो सकता। निश्चित रूप से उसमें गहराई बहुत अधिक है तथा वह पूरी तरह सच है जिसकी ओर हर पाक मन और दिल झुक जाता है। यहां हम पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. का एक कथन पेश करना चहेंगे। पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. कहते हैं कि दो भूखों का कभी पेट नहीं भरता। एक वो जो इल्म का भूखा हो और दूसरा वह जो माल व दौलत का भूखा हो। हमने शुरू में बताया कि आज ही पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के नवासे हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत की बरसी भी है। महान लोगों को याद करना वास्तव में उनकी ज़िंदगी की शैली को ज़िंदा रखना है। इसलिए आइये एक निगाह डालते हैं पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के नवासे हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के ज़िंदगी पर।
पैग़म्बरे इस्लाम हमेशा ही इमाम हसन और उनके भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की प्रशंसा करते थे और उनसे बहुत ज़्यादा मुहब्बत करते थे। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के कुछ चाहने वाले मक्के में हिरा नामक गुफा के पास पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के पास मौजूद थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम भी वहां पहुंचे तो पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. ने मुहब्बत भरी निगाह से उन्हें देखा और वहां हाज़िर लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जान लो कि यह हसन (अ.) मेरी शिक्षाओं में नई जान डालेगा। अल्लाह उस इंसान पर रहमत नाज़िल करे जो इसके हक़ को पहचाने और मेरे कारण उसका सम्मान करे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की विशेषताओं के बारे में इतिहास में आया है कि महानता व रंग-रूप में कोई भी इमाम हसन अलैहिस्सलाम से ज़्यादा पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. से समानता नहीं रखता था। अल्लाह की मुहब्बत उनमें इस हद तक थी कि कोई भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। वह बहुत ज़्यादा संयमी और विनम्र स्वभाव के इंसान थे। वह लोगों के बीच डोनर और ग़रीबों की मदद करने वाले के रूप में बहुत ज़्यादा मशहूर थे।
इतिहास की किताबों में आया है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने तीन बार अपनी पूरे माल का आधा हिस्सा अल्लाह के रास्ते में दान कर दिया इसी लिए उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के अहलेबैत का दानी कहा जाता है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम बचपन से ही प्रतिदिन मस्जिद में जाकर पैग़म्बरे इस्लाम स.अ की हदीसों को ध्यानपूर्वक सुनते थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की वही और शिक्षाओं को सुनने के बाद जब घर लौटते तो पूरी बात अपनी माँ हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को सुनाते। उनके वालिद हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी अपने बेटे के इल्म के इम्तेहान के लिए उनसे विभिन्न विषयों के बारे में सवाल करते और इमाम हसन अलैहिस्सलाम सारे सवालों के जवाब देते थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ग़रीबों की मदद और वंचितों के दुखों को दूर करने के लिए बहुत ज़्यादा कोशिश करते। जब भी कोई परेशान और दुखी इंसान उनसे अपनी मुश्किल बयान करता तो वह जैसे भी संभव हो उसकी मदद करते थे। इतिहास की किताबों में आया है कि एक दिन एक इंसान कुछ पैसे लेने के लिए इमाम हसन अलैहिस्सलाम के पास गया। इससे पहले कि वह कुछ बोलता इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने उसे कुछ पैसे दे दिए। उस इंसान ने आश्चर्य किया तो इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने उसके सामने एक शेर पढ़ा जिसका मतलब है। हम वह लोग हैं जो दूसरों के दिलों में आशा के दीप जलाते हैं। इससे पहले कि हमारे सामने कोई हाथ फैलाए हम उसे दान दे देते हैं ताकि मांगने वाले को शर्मिंदगी का आभास न हो।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी बड़े उतार चढ़ाव वाली ज़िंदगी था लेकिन उन्होंने हर स्थिति और हर चरण में बड़ी दूरदर्शिता और सूझ-बूझ का प्रदर्शन किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद लोगों ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को अपना इमाम चुना और उनके आज्ञापालन के लिए वचन दिया। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भी समाज की लीडरशिप की भारी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई। उन्हें शुरू से ही पता था कि उनके साथियों और आस-पास मौजूद लोगों में सच्चे दोस्तों की संख्या कम है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम के आज्ञापालन के लिए क़सम खाने वालों में बहुत से लोग ऐसे थे जिनके ख़ास सियासी व सामाजिक टार्गेट थे।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम जानते थे कि दुनियावी मोहमाया में ग्रस्त और कमज़ोर इच्छाशक्ति वाले इस तरह के साथियों के सहारे शासकों के ज़ुल्म और अत्याचार के विरुद्ध आंदोलन नहीं छेड़ा जा सकता इसी लिए उन्होंने सीधे जंग से बचने का फ़ैसला किया और कहा कि अल्लाह की क़सम अगर मेरे पास साथी और सहायक होते तो दिन रात संघर्ष करता। इसी लिए इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने ज़माने के शासक मुआविया के साथ सुलह और समझौते को प्राथमिकता दी जो उस समय की हालात के मद्देनज़र सबसे उचित फ़ैसला था। उन्होंने सुलह और समझौते द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की शिक्षाओं को आगे बढ़ाने का फ़ैसला किया। इमाम हसन अलैहिस्सलाम सुलह और समझौते पर दस्तख़त के बाद मदीना लौट गए और अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए एक अलग सी शैली शुरू की। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इस ज़माने में मदीना को इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार का सेंटर बनाया ताकि इस तरह इस्लामी उम्मत को आख़री इलाही दीन की शिक्षाओं से सैराब किया जा सके। इमाम हसन अलैहिस्सलाम लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम स. अ. की सीरत के अनुसरण और उनके हुक्मों पर अमल करने की दावत देते और नैतिक गुणों को अपनाने के सिलसिले में लोगों को प्रोत्साहित करते थे।
नतीजे में इमाम हसन अलैहिस्सलाम की कल्चरल व सामाजी ऐक्टिवीटीज़ ने धीरे धीरे लोगों में चेतना की लहर पैदा की लेकिन इस स्थिति से अमवी शासक मुआविया को चिंता हो गई। उसे बताया गया था कि अली अलैहिस्सलाम के बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने मदीना में अपने वालिद के न्याय प्यार, ज़ुल्म के विरोध और सत्यवाद की याद को दोबारा ज़िंदा कर दिया है। इसलिए इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इन्हीं शिक्षाओं के कारण अमवियों ने दुश्मनी शुरू कर दी। जब मुआविया इमाम हसन अलैहिस्सलाम के अभियान को रोकने में नाकाम हो गया तो उसने इमाम हसन अलैहिस्सलाम के क़त्ल की साज़िश रची और इस तरह इमाम हसन अलैहिस्सलाम को एक साज़िश के तहेत ज़हेर देकर शहीद कर दिया गया।


source : wilayat.in
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