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बीबी शतीता

इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम के ज़माने मे नेशापुर के शियो ने मौहम्मद बिन अली नेशापुरी नामी शख़्स कि जो अबुजाफर खुरासानी के नाम से मशहूर था, को कुछ शरई रकम और तोहफे साँतवे इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे मदीने पहुँचाने के लिऐ दी।
बीबी शतीता

इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम के ज़माने मे नेशापुर के शियो ने मौहम्मद बिन अली नेशापुरी नामी शख़्स कि जो अबुजाफर खुरासानी के नाम से मशहूर था, को कुछ शरई रकम और तोहफे साँतवे इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे मदीने पहुँचाने के लिऐ दी।

 

उन्होंने तीस हज़ार दीनार, पचास हज़ार दिरहम, कुछ लिबास और कुछ कपड़े दिये और साथ ही साथ एक कापी भी दी कि जिस पर सील लगी हुई थी और उसके हर पेज पर एक मसला लिखा हुआ था और उस से कहा था कि जब भी इमाम की खिदमत मे पहुँचो सवालो की कापी इमाम को दे देना और अगले दिन उस कापी को उनसे वापस ले लेना अगर इस कापी की सील नही टूटी तो खुद इस की सील को तोड़ लेना और देख कि इमाम ने बग़ैर सील तोड़े हमारे सवालो के जवाब दिये है या नही? अगर सील तोड़े बग़ैर इन सवालो के जवाब लिख दिये गऐ है तो समझ लेना कि यही इमामे बर हक़ हैं और हमारे माल को लेने के लायक़ है वरना हमारे माल को वापस पलटा लाना।

 

इस तरह खुरासान के शिया ये चाहते थे कि हक़ीकी इमाम को पहचाने और उन पर यक़ीन करे और इसके ज़रीऐ से इमामत का झूठा दावा करने वालो के फरेब और धोके से बचे और जिस वक्त नेशापुर के रहने वालो का ये नुमाइंदा मौहम्मद बिन अली नेशापुरी अपने सफर के लिऐ चलने लगा तो एक बुज़ुर्ग खातून कि जिनका नाम शतीता था और वो अपने ज़माने के नेक और पारसा लोगो से एक थी, मौहम्मद बिन अली नेशापुरी के पास आई एक दिरहम और एक कपड़े का टुकड़ा उसे दिया और कहाः ऐ अबुजाफर मेरे माल मे से ये मिक़दार हक़्क़े इमाम है इसे इमाम की खिदमत मे पहुचां दे।

 

मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने उनसे कहाः मुझे शर्म आती है कि इतने थोड़े से माल को इमाम को दूँ।

 

जनाबे शतीता ने उस से कहाः खुदा वंदे आलम किसी के हक़ से शरमाता नही है (यानी ये कि इमाम के हक़ को देना ज़रूरी है चाहे वो कम ही क्यूं न हो) बस यही माल मेरे ज़िम्मे है और चाहती हूँ कि इस हाल मे परवरदिगार से मुलाक़ात करूँ कि हक़्क़े इमाम मे से कुछ भी मेरी गर्दन पर न हो।

 

मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जनाबे शतीता की वो ज़रा सी रकम ली और मदीने चला गया और मदीने पहुँच कर अब्दुल्लाह अफतह1 का इम्तेहान लेकर ये समझ गया कि अब्दुल्लाह अफतह इमामत के क़ाबिल नही है और नाउम्मीदी की हालत मे उसके घर से निकला उसके बाद एक बच्चे ने उसे इमाम काज़िम के घर की तरफ हिदायत की।

 

मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जब इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे पहुँचा तो इमाम (अ.स) ने उस से फरमाया कि ऐ अबुजाफर नाउम्मीद क्यो हो रहे हो?? मेरे पास आओ मैं वलीऐ खुदा और उसकी हुज्जत हुँ। मैने कल ही तुम्हारे सवालो के जवाब दे दिये है उन सवालो के मेरे पास लाओ और शतीता की दी हुई एक दिरहम को भी मुझे दो।

 

मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैं इमाम काज़िम (अ.स) की बातो और आपकी बताई हुई सही निशानीयो से हैरान हो गया और उनके हुक्म पर अमल किया।

 

इमाम काज़िम (अ.स) ने शतीता के एक दिरहम और कपड़े के टुकड़े को ले लिया और फरमायाः बेशक अल्लाह हक़ से शरमाता नही है और ऐ अबुजाफर शतीता को मेरा सलाम कहना और ये पैसो की थैली कि इसमे चालिस दिरहम हैं, और ये कपड़े का टुकड़ा कि जो मेरे कफन का टुकड़ा है, को भी शतीता को दे देना और उस से कहना कि इस कपड़े को अपने कफन मे रख ले कि ये हमारे ही खेत की रूई से बना हुआ है और मेरी बहन ने इस कपड़े को बनाया है और साथ ही साथ शतीता से कहना कि जिस दिन ये चीज़े हासिल करोगी उसके बाद से उन्नीस दिन से ज़्यादा ज़िन्दा नही रहोगी। मेरे तोहफे के दिये हुऐ चालिस दिरहम मे से सोलह दिरहम खर्च कर लो और चौबीस दिरहम को सदक़े और अपने कफन दफन के लिऐ रख लेना।

 

फिर इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया कि उस से कहना कि उसकी नमाज़े जनाज़ा मैं खुद पढ़ाऊँगा।

 

और उसके बाद इमाम (अ.स) ने फरमाया कि बाक़ी माल को उनके मालिको को वापस दे देना और सवालो की कापी की सील को तोड़ कर देख कि मैंने उनके जवाबो को बग़ैर देखे दिया है या नही??

 

मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने कापी की सील को देखा उसे हाथ भी नही लगाया गया था और सील तोड़ने के बाद मैंने देखा सब सवालो के जवाब दिये जा चुके है।

 

जिस वक्त मौहम्मद बिन अली नेशापुरी खुरासान पलटा तो ताज्जुब के आलम मे देखता है कि इमाम काज़िम (अ.स) ने जिन लोगो के माल वापस पलटाऐ है उन सब ने अब्दुल्लाह अफतह को इमाम मान लिया है लेकिन जनाबे शतीता अब भी अपने मज़हब पर बाक़ी है।

 

मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने इमाम काज़िम (अ.स) के सलाम को शतीता को पहुँचाया और वो कपड़ा और माल भी उसे दिया और जिस तरह इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया था शतीता उन्नीस दिन बाद इस दुनिया से रूखसत हो गई।

 

और जब जनाबे शतीता इंतेक़ाल कर गई तो इमाम (अ.स) ऊँट पर सवार हो कर नेशापुर आऐ और जनाबे शतीता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई।

 

आज भी लोग इस मौहतरम खातून को बीबी शतीता के नाम से याद करते है और आपका मज़ारे मुक़द्दस नेशापुर (ईरान) मे मौजूद है कि जहाँ रोज़ाना हज़ारो चाहने वाले आपकी क़ब्र की ज़ियारत के लिऐ आते है।

 


source : alhassanain
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