नसब
हज़रत ख़दीजा (अ) बिन्ते ख़ुवैलद, बिन असद, बिन अब्दुल उज़्ज़ा बिन कलाब, बिन मर्रा, बिन कअब, बिन लोएज, बिन ग़ालिब, बिन फ़हर। आपके वालिदे मोहतरम (ख़ुवैलद) ने जबरदस्त बहादुरी के साथ ख़ान ए काबा की हुरमत का दिफ़ाअ किया जिसे आज भी याद किया जाता है।
आपकी वालिदा मोहतरमा फ़ातेमा बिन्ते ज़ायदा बिन असम एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून और हज़रत इब्राहीम (अ) के दीन की पैरव थीं।
इस बिना पर हज़रत ख़दीजा क़बील ए क़ुरैश से हैं वालिद की जानिब से तीसरी और वालिदा की तरफ़ से आठवी पुश्त से आपका सिलसिला पैग़म्बरे अकरम (स) के ख़ानदान से मिलता है।
अलक़ाब
आपके अलक़ाब सिद्दिक़ा, मुबारका, उम्मुल मोमिनीन, ताहिरा, थे। जाहिलियत के दौर में आपको सैयदतुन निसाइल क़ुरैश कहा जाता था।
पैग़म्बरे अकरम (स) की नज़र में
1. ख़ुदा वंदे आलम हर रोज़ हज़रत ख़दीजा (स) के वुजूद मुबारक से फ़रिश्तों पर फ़ख़्र करता है।
2. हज़रत ख़दीजा (स) मुझ पर उस वक़्त ईमान लायीं जब सब वादी ए कुफ़्र में ख़ोतावर थे उन्होने उस वक़्त मेरी तसदीक़ फ़रमाई जब सब इंकार कर रहे थे।
3. उन्होने उस वक़्त अपना तमाम माल मेरे हवाले किया जब सब फ़रार कर रहे थे और उन्ही के तुफ़ैल ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे साहिब औलाद बनाया।
4. मरियम बिन्ते इमरान, आसिया बिन्ते मुज़ाहिम, ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलद और फ़ातेमा बिन्ते मुहम्मद (स) दुनिया की बेहतरीन ख़्वातीन शुमार होती है।
5. जन्नत की अफ़ज़ल ख़्वातीन, ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलद, फ़ातेमा बिन्ते मुहम्मद (स), मरियम बिन्ते इमरान और आसिया बिन्ते (फ़िरऔन की बीवी) हैं।
सबसे पहली मुस्लिम ख़ातून
हर दौर में अब तक सैंकड़ों की तादाद में ख़्वातीन दीने इस्लाम से मुशर्रफ़ होकर फ़ज़ायल व मनाक़िब के बाब खोलने में कामयाब हुई हैं और जहाने इस्लाम के लिये बाइसे इफ़्तेख़ार बनी हैं लेकिन हज़रत ख़दीजा (स) का नाम सरे फेहरिस्त, सबसे पहली ख़ातून के उनवान से तारीख़ के सफ़हात पर सुनहरे क़लम से लिखा नज़र आता है।बेसते पैग़म्बरे इस्लाम (स) से क़ब्ल हज़रत ख़दीजा (स) अपने जद्दे बुज़ुर्गवार हज़रत इब्राहीम (अ) के दीन की पैरव थीं दूसरे लफ़्ज़ों में कहा जा सकता है कि दीने हनीफ़ की पैरों थीं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेसत के पहले दिन आपने आपके दीन के सामने तसलीम होने का ऐलान कर दिया जैसा कि एक हदीस में मिलता है कि मर्दों में सबसे पहले पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर ईमान लाने वाले हज़रत अली (अ) और औरतों में हज़रत खदीजा (स) थीं।
पहली नमाज़ गुज़ार ख़ातून
हज़रत ख़दीजा (स) इस्लाम की सबसे पहली नमाज़ गुज़ार ख़ातून हैं। कई सालों तक दीने इस्लाम की पाबंद सिर्फ़ दो शख़्सियते थीं एक हज़रत अली (अ) दूसरे हज़रत ख़दीजा (स)। पैग़म्बरे इस्लाम (स) हर रोज़ पाँच मरतबा मस्जिदुल हराम में शरफ़याब हो कर काबे की जानिब रुख़ करके खड़े होते थे हज़रत अली (अ) आपके दायें जानिब और हज़रत ख़दीजा आपके पीछे खड़ी होती थी। यह तीन शख़्सियतें ख़ान ए तौहीद में अपने मअबूद की इबादत में उम्मते इस्लामी को तशकील दे रही थीं।
पहली विलायत की पैरव ख़ातून
अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) अपनी उम्र के छठे साल से पैग़म्बरे अकरम (स) तहते किफ़ालत थे लिहाज़ा हज़रत ख़दीजा (स) आपकी परवरिश करने में माँ का हक़ रखती थी। पैग़म्बरे अकरम (स) ने विलायत के बुलंद मक़ाम को जब हज़रत ख़दीजा (स) के सामने बयान किया तो हज़रत अली (अ) विलायत का इक़रार चाहा। हज़रत ख़दीजा (स) ने वाज़ेह तौर पर अर्ज़ की: मैं अली (अ) की विलायत का इक़रार करती हूँ और उन से बैअत का ऐलान करती हूँ।
बेनज़ीर बीवी
पैग़म्बरे इस्लाम (स) हमेंशा जनाबे ख़दीजा (स) की सबसे बड़ी फ़ज़ीलत (उम्मुल फ़ज़ायल) की जानिब इशारा करते हुए फ़रमाते थे: ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे हज़रत खदीजा (स) के ज़रिये साहिबे औलाद बनाया जब कि बक़िया बीवियाँ इससे महरुम रहीं। हज़रते ख़दीजा (स) की हयाते तय्यबा में पैग़म्बरे अकरम (स) में पैग़म्बरे अकरम (स) ने किसी से शादी नही की। हज़रत ख़दीजा (स) नबुव्वत की नहरे जारी का सर चश्मा हैं कि जिन की बदौलत आज अस्सी लाख से ज़ायद सादात पैग़म्बरे इस्लाम (स) की नस्ल से पाये जाते हैं।
अक़ील ए क़ुरैश
आप किन किन सिफ़ात फ़ायज़ थीं इसका अंदाज़ा यूँ लगाया जा सकता है कि बनी हाशिम के सरदार, यमन के बादशाह और तायफ़ के बुज़ुर्ग तमाम माल व दौलत लिये हुए आपसे शादी करने की ख़्वाहिश से आते थे और आपके इंकार के बाद ख़ाली हाथ लौटते थे। इससे साबित होता है कि आप अमीने क़ुरैश पर फ़िदा थीं।
शादी का मक़सद
ख़ुद हज़रत ख़दीजा (स) पैग़म्बरे इस्लाम (स) से अपनी शादी के मक़सद को बयान करते हुए फ़रमाती हैं ........
ऐ मेरे चचा के बेटे मैं आपकी शैदाई हूँ इसकी कई वजहें हैं:
1. आप मेरे रिश्तेदारों में से हैं।
2. आप शराफ़त की बुलंदियों पर फ़ायज़ है।
3. आपको आपकी क़ौम अमीन के नाम से पुकारती है।
4. आप एक सच्चे इंसान हैं।
5. आप का अख़लाक अच्छा है।
मेहर
हज़रत खदीजा (स) के चचा ज़ाद भाई वरक़ा बिन नौफ़ल ने हज़रत ख़दीजा का मेहर चार हज़ार दीनार मुअय्यन किया । हज़रत अबू तालिब (अ) ने शादमानी से उसे क़बूल किया लेकिन हज़रत ख़दीजा (स) ने मेहर की रक़्म अपने ज़िम्मे ली और चार हज़ार दीनार की शक्ल में पूरी रक़्म पैग़म्बरे इस्लाम (स) के चचा हज़रत अब्बास के पास भेज दी ताकि उस रक़्म को जश्न में आपके पिदरे बुज़ुर्गवार ख़ुवैलद को अता किया जाये।
दौलत
कई सालों से क़ुरैश का सब से बड़ा तिजारती कारवाँ हज़रत ख़दीजा (स) के इख़्तियार में था जिस की वजह से आप मालामाल हो गई। आपने वह सब सरवत व दौलत पैग़म्बरे इस्लाम (स) के हवाले कर दिया ताकि आप अपनी मर्ज़ी से उसे ख़र्च करें।
अक़्ल व ज़िहानत
हज़रत खदीजा (स) की फिक्रे सालिम व अक़्लमंदी के बारे में सिर्फ़ इतना ही काफ़ी है कि मुवर्रेख़ीन ने लिखा है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने तमाम उमूर में हज़रत ख़दीजा (स) से मशविरा करते थे। हज़रत ख़दीजा (स) ब उनवाने मुशाविरे पैग़म्बर (स) ज़िन्दगी की तमाम मुश्किलात में पैग़म्बर (स) के साथ रहें और ज़िन्दगी के नागवार हवादिस में आपको तसल्ली बख़्शती थीं, इस्लाम की दावत के दौरान आपकी ज़िन्दगी में जो मुश्किलात और मशक़्क़तें पेश आ रही थीं। हज़रत खदीजा (स) ने आप की ख़ातिर उन्हे तहम्मुल किया।
कौसर का सदफ़
हज़रत ख़दीजा (स) के ज़रिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) साहिबे औलाद बने। जिन में दो बेटे और एक बेटी थी। बेटे तो बचपने में इस दुनिया से रुख़सत हो गये लेकिन बेटी इस कायनात का चश्म ए जारी, गयारह इमामों की माँ, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) हैं।
हज़रत ख़दीजा (स) की तारीख़े वफ़ात
ज़ाहिरी तौर पर इस में कोई इख़्तिलाफ़ नही है कि हज़रत खदीजा (स) की वफ़ात माहे रमज़ान हुई।[26] तबरी ने हज़ार साल क़ब्ल हज़रत खदीजा (स) के वफ़ात की दक़ीक़ तारीख़ बेसत के दसवें साल दस रमज़ानुल मुबारक बताई है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) आप की क़ब्र में उतरे और अपने हाथों से आप के जिस्मे मुबारक को क़ब्र में रखा। उस वक़्त तक नमाज़े मय्यत शरीयत में नही थी। हज़रत ख़दीजा की वफ़ात हज़रत अबू तालिब (अ) की वफ़ात के तीन माह बाद वाक़े हुई। जिसकी वजह से पैग़म्बर (स) बहुत ज़्यादा महज़ून हुए।
हज़रत ख़दीजा (स) की वसीयतें
हज़रत ख़दीजा (स) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात में कुछ वसीयतें कीं जिन की तरफ़ हम इशारा कर रहे हैं:
1. मेरे लिये दुआ ए ख़ैर करना।
2. मुझे अपने हाथों से क़ब्र में दफ़्न करना।
3. दफ़्न से क़ब्ल क़ब्र में दाख़िल होना।
4. वह अबा जो नुज़ूले वही के वक़्त आप के कंधों पर रहती थी उसे मेरे कफ़न पर डाल देना।
source : alhassanain