शेर
बर सरे आम मजालिस मे तबर्रा पढ़ कर
अपनी महफिल मे किसी ग़ैर को आने न दिया
रह गया दीन की तबलीग़ का हक़ गर्दन पर
तुमने शब्बीर का पैग़ाम सुनाने न दिया।
शेर
बर सरे आम मजालिस मे तबर्रा पढ़ कर
अपनी महफिल मे किसी ग़ैर को आने न दिया
रह गया दीन की तबलीग़ का हक़ गर्दन पर
तुमने शब्बीर का पैग़ाम सुनाने न दिया।