आज कल शियो के दरमियान मासूमीन अ.स. की विलादत पर लफ्ज़े ज़ुहुर का इस्तेमाल हो रहा है और हम भी इसे एक फज़ीलत समझ कर खुश हो रहे है औऱ हद तो ये है कि बाज़ लोग लफ्ज़े विलादत का इस्तेमाल करना मासूमीन अ.स. की तौहीन समझ रहे हैं जबकि हमारी तमाम मोतबर किताबो मे ख़ुद मासूमीन अ.स. की ज़बाने मुबारक से लफ़्ज़े विलादत या इससे मिलते जुलते लफ़्ज़ो का इस्तेमाल हुआ है इसके अलावा हमारे बड़े और पुराने आलिमो जैसे शैख मुफीद, शैख़ सुद़ुक़ और सैय्यद रज़ी वगैरा ने भी कभी विलादत की जगह लफ़्ज़े ज़ुहुर का इस्तेमाल नही किया है।
तो फिर ये ताबीर आई कहाँ से...................??????
तारीख़ गवाह है कि दुश्मन मे जब भी हम मे सामने से मुक़ाबिला करने की हिम्मत नही होती तो वो हमारे ही लिबास मे आकर हमारी कमर मे निफाक़ का खंजर मार देता है।
* क्या ये नई नवेली ताबीर इसी का एक हिस्सा तो नही...... ? ? ? ? ?
*अगर विलादत के लिऐ लफ्ज़े ज़ुहुर का इस्तेमाल फ़ज़ीलत है तो किसी भी मासूम ने हमे बताया क्यों नही?
* क्या मासूमीन के लिऐ लफ्ज़े विलादत का इस्तेमाल इनकी तौहीन है? (जैसा कि बाज़ ग़ाली कहते है)
* अगर ये तौहीन है तो हमारे मासूमीन अ.स. ने खुद इस लफ्ज़ का इस्तेमाल क्यों किया?
* 15 शाबान को इमामे ज़माना (अ.स.) की विलादत का दिन है या ज़ुहूर का?
* अगर किसी के पैदा होने पर लफ़्जे ज़ुहुर का इस्तेमाल होगा तो जब आखरी इमाम (अ.स.) का असलीयत मे ज़ुहुर होगा तो उस वक़्त क्या कहेगें?
* अगर ज़ुहुर के मानी पैदा होने या विलादत के हो जाऐ तो आख़री इमाम के ज़ुहुर के वक़्त क्या दुश्मन ये नही कहेगा कि ये अब पैदा हुऐ है?
* कही ये सब हमारे अक़ीदो से खेलने की कोई साज़िश तो नही है?