इमाम अली नक़ी अ. ने अपनी इमामत के 7 साल मोतसिम अब्बासी के दौर में गुज़ारे, इन वर्षों में इमाम की हर गतिविधि पर हुकूमत के जासूसों कि निगाहें थीं, और आपके पास आने जाने वाले लोगों पर रोक थी, यहाँ तक आपके घर के पास एक जासूस हर वक़्त मौजूद रहता, बग़दाद और सामर्रा में रहने वाले शियों पर भी हुकूमत की कड़ी निगाह थी, यही कारण है कि यह लोग तक़य्या में जीवन बिता रहे थे, और छिप कर, अपनी पहचान बदल कर एक दूसरे से मिल रहे थे। (अल-इरशाद, पेज 286)
मोतसिम की मौत के बाद वर्ष 227 हिजरी में उसके बेटे वासिक़ ने हुकूमत संभाली, उसने अब्बासी शासक मामून के रास्ते को अपनाते हुए दरबार में मुनाज़िरे (बहस) का सिलसिला शूरू किया, और आख़िरकार वर्ष 232 हिजरी में दो तुर्कों के हाथों मार डाला गया, उसके बाद उसके भाई जाफ़र (मुतवक्किल) ने हुकूमत की बागडोर अपने हाथ में ली। (तारीख़े तबरी, जिल्द 7, पेज 341)
वासिक़ एक शराबी, उग्र और कट्टर इंसान था, और मोतज़ेला फ़िरक़े के मशहूर नज़रिया कि क़ुर्आन अल्लाह की किताब है इसका कट्टर विरोधी था और उन्हें काफ़िर समझता था।
मुतवक्किल कट्टरता के साथ आले अली अ. का दुश्मन था और दुश्मनी इस हद तक थी कि इमामों की क़ब्रों की ज़ियारत पर पाबंदी लगा रखी थी, और वर्ष 235 हिजरी में इमाम हुसैन अ. के रौज़े को ढ़हाने का हुक्म दिया। (तारीख़े तबरी, जिल्द 7, पेज 365)
उसके शासन में लाखों शियों को जेल में डाल कर पीड़ा दी गई और शहीद किया गया।
और आख़िरकार वर्ष 247 हिजरी में मुतवक्किल अपने ही बेटे मुन्तसिर के हुक्म पर तुर्कों के हाथों मार डाला गया। (तारीख़े तबरी, जिल्द 7, पेज 397)।
मुन्तसिर भी छः साल से ज़्यादा हुकूमत नहीं कर सका, उसके बाद मुसतईन जो कि मोतसिम के पोता था उसका उत्तराधिकारी बना।
उन दिनों शासन की बागडोर तुर्क के लीडरों के हाथों थी, चारो ओर साज़िश, बवाल, अत्याचार, फ़क़ीरी, भूखमरी, और रिश्वत जैसी बीमारी फैल रही थी, मिस्र, खुरासान और सीस्तान के इलाक़े बनी अब्बास के हाथों से निकल गए थे, और बग़दाद में विद्रोहियों ने मुसतईन की हुकूमत का तख़्ता पलट कर दिया और उसकी जगह वर्ष 252 हिजरी में मोतज़ अब्बासी को बिठा दिया, इसका शासन काल भी तुर्कों के लीडरों के आपसी झगड़े के कारण जल्द ही समाप्त हो गया, उसने वर्ष 255 हिजरी में अपनी जगह वासिक़ के बेटे मोहम्मद मोहतदी को सत्ता में बिठा दिया। (तारीख़े याक़ूबी, जिल्द 2, पेज 505)
बनी अब्बास की इस घटिया राजनिति के समय इमाम हसन असकरी अ. सामर्रा में बहुत क़रीब से यह सब देख रहे थे, क्योंकि मोतवक्किल के हुक्म पर आपको वर्ष 233 हिजरी में सामर्रा लाया गया था। (फ़िरक़ु-श-शिया, पेज 135)
उन दिनों आप पर कड़ी निगाह रखी जा रही थी, आप और आपके असहाब और चाहने वालों का एक दूसरे से मिलना जुलना कठिन हो गया था, अब्बासियों के प्रशासन द्वारा इमाम पर अनेक प्रकार के आरोप लगाए जा रहे थे, छोटी छोटी अफ़वाहों पर इमाम को दरबार में बुला कर पूछताछ की जाती, यहाँ तक मोतवक्किल को इमाम को धमकी देने में भी शर्म नहीं आती थी, हद यह हो गई कि इमाम को उस परेड में आने पर मजबूर कर दिया जिसमें इमाम और आपके चाहने वालों को जंगी तय्यारी दिखा कर डराने की व्यवस्था की थी, ताकि इमाम और आपके साथी उसके शासन के ख़िलाफ़ आंदोलन न कर सकें।
मोतवक्किल दरबार और आम जनता के सामने इमाम अली नक़ी अ. का सम्मान करता लेकिन अकेले में इमाम के विरुध्द षडयंत्र रचता और इमाम को बदनाम करने के लिए अफ़वाहें फैलाता था।
उसने इमाम को शराब वाली सभा में बुलाने का बहुत प्रयास किया लेकिन सफ़ल न हो सका, और एक दिन इमाम पर शराब पीने का दबाव डाला लेकिन इमाम ने फ़रमाया, अभी मेरा ख़ून और मेरे बदन का गोश्त शराब से दूषित नहीं हुआ है, उसने इमाम को शहीद करने के कई नाकाम प्रयास किए और आख़िरकार इमाम को शहीद करने के लिए हाजिब के हवाले कर दिया लेकिन उससे पहले ही मोतवक्किल तुर्कों के हाथों जहन्नम जा पहुँचा और इमाम को शहीद न करा सका। (तारीख़े सियासी इमाम ज़मान, पेज 89)
मोतवक्किल के हलाक होने के बाद उसके बेटे मुन्तसिर ने सत्ता संभाली और यह आले अली अ. ख़ास कर इमाम अली नक़ी अ. पर होने वाले अत्याचार के कम होने का कारण बना, यह और बात है कि अभी दूसरे शहरों में शियों पर उसी तरह अत्याचार जारी था, इमाम ने इस थोड़े से मौक़े का लाभ उठाते हुए शियों से मिलना उनकी समस्याओं को सुनना उसका समाधान बताना शुरू कर दिया, जिस शहर में भी आपके वकील को गिरफ़्तार किया जाता आप उसी समय किसी दूसरे का चयन करते ता कि शियों से संबंध न टूटे।
शेख़ कुलैनी लिखते हैं कि, इमाम अली नक़ी के वकीलों और चाहने वालों पर हुकूमत की कड़ी निगरानी और गिरफ़्तारी का नकारात्मक असर पड़ा, जैसे, मोहम्मद इब्ने हजर का शहीद होना, सैफ़ इब्ने लैस की प्रापर्टी का ज़ब्त करना, और इसी प्रकार आपके सामर्रा में चाहने वालों का गिरफ़्तार होना, और कूफ़ा में आपके वकील अय्यूब इब्ने नूह पर वहाँ के गवर्नर की कड़ी निगरानी रखना। (कश्फ़ुल ग़ुम्मह, जिल्द 2, पेज 381-394)।
आपके युग में इसी प्रकार राजनीतिक गतिविधियाँ जारी रहीं, और इमाम हर प्रकार की सहायता अपने चाहने वालों को पहुँचाते रहे और फिर जब मोतवक्किल का बेटा मोतज़ अपने भाईयों के बाद सत्ता में आया उसने अपने बाप की अत्याचार और क्रूर शैली को बाक़ी रखते हुए इमाम को शहीद कर दिया। (तारीख़े चहारदा मासूमीन, पेज 348-349)