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सूर –ए- अनआम की तफसीर 2



पवित्र क़रआन के सूरए अनआम की 32वीं आयत में आया हैः संसार का जीवन खेल तमाशे के अतिरिक्त कुछ नहीं और परलोक, ईश्वर से डरने वालों के लिए सबसे अच्छा ठिकाना है। क्या तुम चिंतन नहीं करते?


पवित्र क़ुरआन की इस आयत में लोक परलोक के जीवन की तुलना की गयी है जो मनुष्य की परिपूर्णता के मार्ग के लिए एक दूसरे के लिए आवश्यक हैं। व्याख्याकर्ताओं के अनुसार, सांसारिक जीवन को खेल तमाशे की भांति इसलिए बताया गया है कि मनोरंजन व खेल तमाशा, सामान्य रूप से काल्पनिक व बेकार का काम होता है जो वास्तविक जीवन की विषय वस्तु से कोसो दूर है क्योंकि खेल के समाप्त होने के बाद समस्त चीज़े अपने पिछले स्थान को लौट जाती हैं। आपने अवश्य देखा होगा कि मनोरंजन के लिए तैयार की गयी फ़िल्म, जिसमें युद्ध, या प्रेम या लड़ाई झगड़े का चित्रण पेश किया जाता है, फ़िल्म समाप्त होने के बाद कहानी का कोई भी नायक, उसका दृश्य और उसके बारे में कोई अता पता नहीं होता। संसार फ़िल्म के दृश्य की भांति है और उसके नायक इस संसार के लोग हैं। कभी कभी यह खेल व तमाशा, मनुष्य को स्वयं में इतना व्यस्त कर देता है कि जिसके शीघ्र समाप्त होने से भी मनुष्य निश्चेत हो जाता है। संसार को खेल तमाशा बताने के बाद यहां पर ईश्वर परलोक के जीवन की उससे तुलना करता है, अलबत्ता संसार के विदित सुन्दर रूपों के दृष्टिगत इस वास्तविकता को समझना सबके लिए सरल नहीं है। इसीलिए मनुष्य को चिंतन मनन का निमंत्रण देता है और उससे पूछता है कि चिंतन मनन क्यों नहीं करते ताकि पता चले कि परलोक का ठिकाना, सबसे बेहतरीन व अच्छा ठिकाना है। परलोक एक ऐसा ठिकाना है जिसमें मनुष्य अमर हो जाता है, वहां की सारी चीज़े वास्तविक हैं और वहां की विभूतियां कष्ट व पीड़ा से दूर हैं और केवल अनुकंपाओं व विभूतियों की वर्षा ही होती है।


इस सूरे की आयतें सामाजिक व्यवस्था में हर प्रकार के वर्गभेद को नकारती हैं। पवित्र क़ुरआन की व्याख्या की पुस्तक दुर्रे मन्सूर में आया है कि क़ुरैश के कुछ लोग पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम की सभा के किनारे से गुज़र रहे थे कि कुछ निर्धन व ग़रीब मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम के पास बैठे हुए थे। उन्हें यह दृश्य देखकर आश्चर्य हुआ और चूंकि वे लोगों को धन संपत्ति या उसके सामाजिक स्थान से आंकते थे, पैग़म्बरे इस्लाम के ईमान व उनके मोमिन साथियों और उनकी उच्च व श्रेष्ठ भावनाओं को समझने में अक्षम थे। उन्होंने कहा कि हे मुहम्मद, क्या लोगों में से केवल इतने ही लोग बचे हैं, क्या यही वह लोग हैं जिन्हें ईश्वर ने हमारे बीच से चुना है और हमें इनका अनुसरण करना होगा? यदि आप यह चाहते हैं कि हम आपके निकट हों और आपका अनुसरण करें तो जितना जल्दी हो सके इन्हें अपने से दूर करें, उसी समय सूरए अनआम की आयत संख्या 52 और 53 उतरी।


जो लोग सुबह शाम अपने पालनहार को पुकारते हैं और केवल उसी को प्रसन्न करना चाहते हैं, उन्हें अपने पास से मत भगाइये। न उनके हिसाब का दायित्व आप पर है और न आपके हिसाब का दायित्व उन पर है कि आप उन्हें अपने पास से भगा दें और इस प्रकार अत्याचारियों में से हो जाएं। और इस प्रकार हमने उनमें से कुछ की कुछ दूसरों के साथ परीक्षा ली ताकि वे कहें कि क्या यही लोग हैं जिन्हें ईश्वर ने हमारे बीच (से चुना है और इन पर) उपकार किया? क्या ईश्वर, कृतज्ञ लोगों को बेहतर ढंग से पहचानने वाला नहीं है?


इन आयतों में बहुत ही नर्म व स्पष्ट शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से कहा गया है कि किसी भी मोमिन व्यक्ति को चाहे वह समाज के किसी भी वर्ग या जाति का हो, अपने से दूर न करें और हर एक के लिए समान रूप से अपनी बाहें फैलाए रखें।


पवित्र क़ुरआन और इस्लाम धर्म के वैभव की निशानियों में से एक यह है कि बहुत कड़ाई से धनाड्य लोगों की इस प्रकार की मांगों के समक्ष डट गया और वर्ग की काल्पनिक विशिष्टताओं को भर्तसना की।


अबू जेहल इस्लाम धर्म और पैग़म्बरे इस्लाम का बहुत बड़ा शत्रु था, एक दिन उसने पैग़म्बरे इस्लाम का बहुत अनादर किया और उनको कष्ट पहुंचाया। उस समय पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा हज़रत हमज़ा शिकार के लिए मरुस्थल गये हुए थे, जब वह शिकार से लौटे, तो उन्हें अबू जेहल द्वारा अपने भतीजे को पहुंचाए जाने वाले कष्ट के बारे में पता चला। वह क्रोध से उठे और अबू जेहल की तलाश में निकल गये ताकि उसे किए की सज़ा उसे दें। चूंकि कि अबू जेहल का अपने क़बीले और मक्के के लोगों में काफ़ी प्रभाव था इसीलिए वह स्वयं कोई प्रतिक्रिया न दिखा सके। हज़रत हमज़ा ने तब तक इस्लाम स्वीकार नहीं किया था किन्तु अपने भतीजे द्वारा लाये गये धर्म के बारे में सदैव चिंतन मनन करते थे। उस दिन की घटना के बाद वह पैग़म्बरे इस्लाम के पास गये और इस्लाम स्वीकार किया। उस दिन के बाद से अपनी शहादत तक हज़रत हमज़ा औपचारिक रूप से इस्लाम के एक वरिष्ठ सेनापति के रूप में सदैव से इस्लाम धर्म की रक्षा करते रहे। इस अवसर पर सूरए अनआम की आयत संख्या 122 उतरी। इस आयत में उस व्यक्ति की ओर संकेत किया गया है जिसका हृदय ईमान के प्रकाश से प्रज्वलित है, उनकी अबू जेहल जैसे लोगों से तुलना की गयी जो अनेकेश्वरवाद के अंधकार में डूब गया।


क्या वह व्यक्ति जो मरा हुआ था फिर हमने उसे जीवित किया और उसे प्रकाश दिया जिसके माध्यम से वह लोगों के बीच चलता है, उस व्यक्ति की भांति हो सकता है जो अंधकारों में (पड़ा हुआ) हो और उनसे निकल भी न सकता हो। इसी प्रकार काफ़िरों के लिए उनके कर्मों को सजा दिया गया है।


इस आयत में उन लोग को जो पथभ्रष्टता में थे, सत्य व ईमान को स्वीकार करके अपने मार्ग को परिवर्तित किया, ऐसे मरे हुए लोगों की भांति बताया गया जो ईश्वरीय कृपा से जीवित हो उठे। पवित्र क़ुरआन ने निरंतर मौत व जीवन को अनेकेश्वरवाद और एकेश्वरवाद के समान बताया है। पवित्र क़ुरआन का यह सूक्ष्म संकेत इस बात को दर्शाता है कि ईमान केवल एक शुष्क व ख़ाली आस्था नहीं है बल्कि वह आत्मा की भांति है मुर्दा शरीर और बेईमान व्यक्ति में फूंकी जाती है और उसके पूरे अस्तित्व को प्रभावित कर देती है और उसे जीवित कर देती है।


सूरए अनआम की कुछ आयतें सृष्टि की रचना में ईश्वर की युक्ति व उसकी तत्वदर्शिता को रेखांकित करता है। यह आयतें कभी ईश्वर के विशेष गुणों को बयान करती हैं और कभी सृष्टि में उसकी अद्वितीय शक्ति को बयान करती हैं। इसी संबंध में सूरये अनआम की आयत संख्या 59 में आया है कि गुप्त ख़ज़ाने केवल ईश्वर ही के पास हैं जिन्हें उसके अतिरिक्त कोई नहीं जानता। और जो कुछ धरती और समुद्र में है वह उसका जानने वाला है और (पेड़ से) जो पत्ता भी गिरता है उसे उसका ज्ञान होता है। धरती के अंधकारों में कोई दाना और कोई गीली या सूखी (वस्तु) ऐसी नहीं है जो (ईश्वर की) स्पष्ट किताब में न हो।


इस आयत की व्याख्या में यह कहा जा सकता है कि अनन्य ईश्वर ने समुद्र की गहराईयों में अरबों प्राणियों, पवर्तों व जंगलों में वृक्षों के पत्तों की खडखड़ाहट, कलियों के फलने व उनके मुस्कुराने, जंगलों और मरुस्थलों में बहने वाली हवाओं, हर मनुष्य के शरीर में पायी जाने वाली कोशिकाओं और उसके रक्त में पायी जाने वाली हेमोग्लोबीन से भी अवगत है। इसी प्रकार वह संसार में वृक्ष से गिरने वाले हर पत्ते से अवगत है। यह जो उदाहरण दिए गये हैं वह उसके असीम ज्ञान की एक छोटी सी झलक है और ईश्वर संसार की हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी वस्तु से अवगत है।


इस सूरे के एक अन्य स्थान पर सृष्टि में पाये जाने वाले जीवित रहस्यों और बहुत ही आकर्षक शब्दों में एकेश्वरवाद को सिद्ध किया गया है। सूरए अनआम की आयत संख्या 95 में आया है कि निसंदेह ईश्वर दाने और गुठली का फाड़ने वाला है, वह जीवित को मरे हुए से और मरे हुए को जीवित से निकालता है। वही तुम्हारा ईश्वर है तो तुम कहां बहके जा रहे हो।  


गुठली का फटना, एक ऐसी घटना है जिसे पवित्र क़ुरआन ने एकेश्वरवाद को सिद्ध करने के लिए प्रयोग किया है। यह आयत जीवन और मौत की व्यवस्था और प्राणियों को एक स्थिति से दूसरी स्थिति की ओर परिवर्तित करने की ओर संकेत करती है। कभी वह कार्बनिक योगिकों से समुद्रों की गहराइयों, जंगलों और मरुस्थलों में जीवन की संरचना करता है और कभी एक ही क्षण में एक शक्तिशाली जीवित प्राणी को निर्जिव प्राणी में परिवर्तित कर देता है।


सृष्टि में जीवन का विषय चाहे वह वनस्पतियों से संबंधित हो या जानवरों से, बहुत ही जटिल विषय है जिसके रहस्य को मानव ज्ञान विज्ञान खोज नहीं सका है ताकि उसे पता चले कि किसी प्रकार एक प्राकृतिक तत्व व एक कार्बनिक योगिक, जीवित प्राणी में कैसे परिवर्तित हो जाता है। इसीलिए पवित्र क़ुरआन ने ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए बारंबार इस विषय पर भरोसा किया है। पवित्र क़ुरआन ने धरती, आकाश और तारों के चमकने को बुद्धिमान व चिंतन मनन करने वालों के लिए निशानियां बताई हैं और घोषणा की है कि कैसे संभव है कि इस संसार को लक्ष्यहीन बनाया गया हो? इसीलिए ईश्वर की विशेष रचना के रूप में मनुष्य को अपना ध्यान रखना चाहिए और अपनी कथनी व करनी को नियंत्रित करना चाहिए। इस आधार पर हज़रत इब्राहीम और हज़रत मूसा जैसे बड़े ईश्वरीय दूत भी फ़िरऔन और नमरूद जैसे अत्याचारी शासकों के मुक़ाबले में, सर्वसमर्थ और अनन्य ईश्वर की ओर से सृष्टि की रचना और जीवन प्रक्रिया की ओर संकेत करते हुए तर्क पेश करते हैं।

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