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शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी

शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी

मोहर्रम का दुःखद महीना फिर आ गया। लोग मोहर्रम मनाने की तैयारी करने लगे हैं। मोहर्रम आने पर बहुत से लोग यह सोचने लगते हैं कि आखिर क्या वजह है कि १४ शताब्दियां बीत जाने के बावजूद आज भी लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाते हैं। प्रायः होता यही है कि जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो कुछ दिनों और सालों के बाद उसकी याद कम हो जाती है या लोग उसे भुला देते हैं परंतु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद हुए १४ शताब्दियां बीत गयीं हैं परंतु उनकी याद में मनाये जाने वाले शोक न केवल कम नहीं हो रहे हैं बल्कि उनमें दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। मोहर्रम में जहां जहां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाया जाता है चारों ओर लोग काले वस्त्र धारण करते हैं। बहुत से लोग यह सोचने पर बाध्य हो जाते हैं कि अज़ादारी का रहस्य व कारण क्या है?


हर समाज की अतीत की घटनाएं उस समाज पर यहां तक कि दूसरे समाजों पर भी विभिन्न प्रभाव डाल सकती हैं। अगर अतीत की घटना लाभदायक एवं प्रभावी होती है तो उसके प्रभाव भी लाभदायक होते हैं। दूसरी ओर अगर वह समाज अतीत की महत्वपूर्ण घटनाओं को भुला देता है तो उससे मानव समाज के लिए बहुत क्षति पहुंचती है। क्योंकि इस प्रकार की घटनाओं के लिए हर राष्ट्र व समाज को बहुत कुछ खोना पड़ता है। जैसे महान हस्तियों को हाथ से खो देना और नाना प्रकार की समस्याओं का सामना करना आदि। इस आधार पर बड़ी घटनाओं से मानवता को बहुत पाठ मिलते हैं और उन्हें राष्ट्रों के लिए बहुत मूल्यवान समझा जाता है और हर इंसान की बुद्धि यह कहती है कि इस प्रकार की मूल्यवान पूंजी की रक्षा की जानी चाहिये और यथासंभव उससे लाभ उठाया जाना चाहिये।


इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आशूरा की घटना विभिन्न पहलुओं से बहुत मूल्यवान है क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों ने महान ईश्वर के मार्ग में अपने प्राणों की जो आहूति दी है और उनके परिजनों ने जो कठिनाइयां सहन की हैं उसका कोई उदाहरण नहीं मिलता। दूसरी ध्यान योग्य बात यह है कि कर्बला की घटना किसी व्यक्ति, गुट या राष्ट्र के हितों की पूर्ति के लिए नहीं हुई है बल्कि कर्बला की घटना समस्त मानवता के लिए सीख है वह किसी जाति, धर्म या दल से विशेष नहीं है। इसमें जो पाठ हैं जैसे न्याय की मांग, अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ व प्रतिरोध, प्रतिष्ठा, अच्छाई का आदेश देना, और बुराई से रोकना समस्त मानवता के लिए पाठ है। अगर कर्बला की एतिहासिक घटना से मिलने वाले पाठों को एक पीढी से दूसरी पीढी तक स्थानांतरित किया जाये तो पूरी मानवता उससे लाभ उठा सकती है।


पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाने पर बहुत बल दिया है। दूसरे शब्दों में मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों ने जो अद्वीय कुर्बानी दी है उसकी याद मनाये जाने पर बल दिया है। कर्बला की एतिहासक घटना से जो सीख मिलती है उसमें से एक एकता है। इमाम हुसैन और उनके वफादार साथियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि मूल उद्देश्य को लेकर किसी में कोई मतभेद नहीं था छोटे, बड़े, महिलाएं और बच्चे सब के सब एक ही दृष्टिकोण रखते थे, सबका लक्ष्य एक था। कर्बला की एतिहासिक घटना से सीख लेते हुए आज विभिन्न जाति व समुदाय के हजारों लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की याद में शोक समारोह आयोजित करते हैं। वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करके उनके मध्य अद्वतीय शक्ति व क्षमता उत्पन्न कर दी है। इस बेजोड़ शक्ति का एक उदाहरण ईरानी जनता ने शाह की अत्याचारी सरकार के काल में नवीं और दसवीं मोहर्रम को पेश किया था जिससे तानाशाही सरकार की बुनियादें हिल गयीं थीं।


जर्मनी के मध्यपूर्व विशेषज्ञ मारबिन अपनी किताब में लिखते हैं कि हमारे कुछ इतिहासकारों की अनभिज्ञता इस बात का कारण बनी कि उन्होंने शीयों की अज़ादारी को पागलपन लिख दिया पंरतु इन्होंने अर्थहीन बातें कहीं और शीयों पर आरोप लगाया। हमनें शीयों की भांति किसी जाति व राष्ट्र को जिन्दा नहीं देखा। क्योंकि शीयों ने अज़ादारी करके तर्कसंगत नीति अपनायी और लाभप्रद धार्मिक आंदोलन को अस्तित्व प्रदान किया है। इसी प्रकार जर्मनी के मध्यपूर्व विशेषज्ञ मारबिन लिखते हैं” किसी भी चीज़ ने अज़ादारी की भांति मुसलमानों के मध्य राजनीतिक जागरुकता पैदा नहीं की है। अज़ादारी महाक्रांतिकारी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ एक प्रकार की वचनबद्धता और अत्याचार के प्रति विरोध है। महान ईरानी बुद्धिजीवी उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी के शब्दों में” शहीद पर रोना उसकी शूरवीरता में भागीदारी है”


इस आधार पर अज़ादारी से लोगों में आध्यात्मिक परिवर्तन होता है जिससे सामाजिक परिवर्तन की भूमि प्रशस्त होती है और वास्तव में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के लक्ष्यों को बाकी रखने की भूमि समतल होती है। शहीदों के लिए अज़ादारी विशेष कर इमाम हुसैन के नाम और काम के बाक़ी रहने कारण है और उससे लोगों में एक प्रकार से अत्याचार से मुकाबले की भावना पैदा होती है। ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने कहा है कि इस प्रकार रोने, इस प्रकार नौहे और शेर पढने से हम इस परम्परा को सुरक्षित करना चाहते हैं जैसाकि अब तक सुरक्षित रहा है।


ईश्वरीय धर्म इस्लाम और पैग़म्बरे इस्लाम की उपलब्धियों की सुरक्षा उनके पवित्र परिजनों की शिक्षाओं की छत्रछाया में रहा है और चूंकि अत्याचारी शासक सदैव अहले बैत की संस्कृति व शिक्षाओं को मिटाने की कुचेष्टा में थे इसलिए स्वयं अज़ादारी ने राजनीति का रूप धारण कर लिया। मोहरर्रम में रोना और अज़ादारी वास्तव में अत्याचार से संघर्ष की भावना को जीवित रखना है।


कर्बला की एतिहासिक घटना में महान ईश्वर की उपासना और बंदगी सर्वोपरि है। मुसलमानों की प्रतिष्ठा, ईमान और आध्यात्म में है। कर्बला की इतिहासिक घटना का महत्वपूर्ण संदेश अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष था। शीयों की संस्कृति में धार्मिक पथप्रदर्शकों विशेषकर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों के शोक में अज़ादारी आयोजित करना उपासना है। क्योंकि अज़ादारी अध्यात्म में विकास व वृद्धि का कारण बनती है और मनुष्य को परिपूर्णता के उच्च शिखर पर पहुंचने में सहायता करती है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मुसीबतों पर रोना और दुःखी होना इंसान के अंदर परिवर्तन का कारण बनता है और तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय व सदाचारिता की भूमि प्रशस्त होती है। अज़ादारी करके लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आज्ञा पालन के प्रति कटिबद्धता व्यक्त करते हैं। इसी तरह जो इंसान अज़ादारी करता है वह अपने व्यवहार से इस बात को दर्शा देता है कि वह अत्याचारियों से कोई समझौता नहीं करेगा और न तो अपमान का मार्ग स्वीकार करेगा। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का प्रसिद्ध कथन है कि इज़्ज़त की मौत अपमान के जीवन से बेहतर है। जो व्यक्ति अज़ादारी करता है वास्तव में वह इस बात की घोषणा करता है कि वह इमाम हुसैन के पथ पर चलेगा यानी अत्याचार और अत्याचारी के समक्ष सिर नहीं झुकायेगा चाहे उसे सत्य के लिए सिर ही कटाना क्यूं न पड़े। सच्चाई के प्रति वफादारी वह चीज़ है जो साम्रराज्यवादियों के मुकाबले में राष्ट्रों की सुरक्षा करती है।


इतिहास अनगिनत सीखों से भरा पड़ा है और अगर इतिहास की सीखों पर ध्यान न दिया जाये तो कटु घटनाओं की पुनरावृत्ति हो सकती है। पवित्र कुरआन हज़रत यूसुफ और उनके भाइयों की घटना बयान करने के बाद कहता है” उनकी  आप बीती घटनाएं चिंतन मनन करने वालों के लिए सीख हैं” हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में फरमाते हैं” दुनिया के अतीत से भविष्य के लिए सीख लो”


इस आधार पर जिस चीज़ से अनगिनत पाठ मिलते हैं वह कर्बला की इतिहासिक घटना है। लोग अज़ादारी करते हैं ताकि आशूरा की याद ताज़ा हो और मौजूद लोग एवं भविष्य में आने वालों के लिए पाठ हो”


ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों पर अज़ादारी और रोने को महान ईश्वर की एक एसी अनुकंपा मानते हैं जिस पर ईश्वर का आभार करना चाहिये। वरिष्ठ नेता के अनुसार इस्लामी जागरुकता में विस्तार आशूरा महाआंदोलन का परिणाम है और इस अनुकंपा की संवेदनशीलता को हम उस समय समझते हैं जब हम यह जान जायें कि ईश्वरीय अनुकंपा के मुकाबले में सबसे पहले बंदों का दायित्व ईश्वर का आभार करना और उसके पश्चात उसकी सुरक्षा के लिए प्रयास करना है। वरिष्ठ नेता ने फरमाया है कि एक समय एसा होता है कि किसी के पास कोई अनुकंपा नहीं है और उससे इसके बारे में पूछा भी नहीं जायेगा पंरतु जिसके पास अनुकंपा है उससे उसके बारे में सवाल किया जायेगा। एक बड़ी अनुकंपा याद करने की है यानी शोक सभा की अनुकंपा, मोहरर्रम की अनुकंपा और हमारे शीया समाज के लिए आशूरा की अनुकंपा। यह महान अनुकंपा दिल को ईमान के इस्लामी स्रोत से मिला देती है। इस अनुकंपा ने एसा कार्य किया है कि पूरे इतिहास में अत्याचारी आशूरा और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र से भयभीत रहे हैं। इस अनुकंपा से लाभ उठाना चाहिये। लोगों और धर्मगुरूओं को इस अनुकंपा से लाभ उठाना चाहिये। लोगों का लाभ उठाना यह है कि वे शोक सभाओं में रूचि लें और उनका आयोजन करें। लोग जितना कर सकें अज़ादारी को विभिन्न स्तरों पर विस्तृत करें”


कर्बला की एतिहासिक घटना और महाआंदोलन समस्त इतिहास और पूरी मानवता के लिए सीख है और जो भी कर्बला के महाआंदोलन के संदेशों पर अमल करेगा उसका जीवन लोक- परलोक में सफल होगा।

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