अभी कुछ दिनों से यह सुनने में आ रहा है की शियो में कुछ जवान अपने आप को मलंग कहने लगे हैं सुनने में ये भी आया है की कुछ लोग उनमे से सिरिया गए थे वहां से अपने कानो में बुँदे पहन कर वापस आये और आने के बाद अपने बारे में मलंग होने का एलान कर रहे हैं।
ज़ाहिरन तो अभी ऐसी कोई बात नज़र नहीं आ रही है जिसे लेकर कोई परेशानी हो सिवाय इसके की इनमे से कुछ लोग खुद को बहुत बड़ा मोहिब्बे अहलेबैत समझ रहे है और अपने अलावा दुसरो को दुसरे दर्जे का मोहिब्बे अहलेबैत समझ रहे है।
हालाँकि ये बात भी अपनी जगह सही नहीं है की हम सिर्फ खुद को अहलेबैत को सच्चा चाहने वाला समझें और अपने अलावा सारी दुनिया को अपने से कमतर दर्जे का मोहिब्बे अहलेबैत तसव्वुर करने लगें कोंन कितना बड़ा मोहिब्बे अहलेबैत है ये सिर्फ दावा करने से साबित होने वाली चीज़ नहीं है हकीक़त तो यह है की सब से बड़ा मुहिब्बे अहलेबैत तो वो है जो सब से ज़्यादा अहलेबैत के अहकाम पर अमल कर रहा हो बहरहाल मलंग लफ्ज़ सुनने के बाद कुछ सवाल जहन में उठते है और जब तक इन सवालों का कोई मुनासिब जवाब न मिले उस वक़त तक इस लफ्ज़ से परहेज़ ही करना बेहतर है।
(1) सवाल यह है की हम अलने आप को मलंग क्यों कहे क्या पैग़म्बर और अहलेबैत का हमे दिया हुआ नाम (शिया) ग़लत है या इसमें कुछ कमी रह गयी थी जिसको पूरा करने के लिये मलंग का इजाफा करना हमारे लिये ज़रूरी हो गया है?
(2) अगर ये लफ्ज़ इतना ही ज़रूरी और अच्छा था तो इसको हमारे बुज़ुर्ग उलेमा ने अपने लिये क्यों नहीं इस्तेमाल किया?
(3) हमें ये लफ्ज़ इसलिये भी पसंद नहीं है क्योकि अब तक यह लफ्ज़ अहले सुन्नत का सूफी तबका अपने लिये इस्तेमाल करता रहा है अफगानिस्तान से लेकर मुजफ्फरपुर (बिहार) तक तकरीबन दस सूफी मलंग बाबाओं के मज़ार मौजूद हैं एक मजार हाजी मलंग बाबा के नाम से मुंबई में भी मौजूद है इन बाबाओं के हालात पढ़ने से पता चलता है की ये सब सूफी (सुन्नी ) थे तो क्या हम भी अपने आप को इन्ही लोगो के साथ जोड़ लें?
(4) आज तक जिस लफ्ज़ के बारे में ये पता न चल सका हो की ये कहाँ से आया है किस ज़बान का लफ्ज़ है और इसके क्या माना हैं हम इसे क्यों अपनाएं क्योंकि कुछ लोगो का कहना है की अफगानिस्तान में एक गाँव मलंग नाम का है जहाँ से ये सुफिओं का मसलक चला है कुछ लोगो का कहना है की यह संस्कृत का लफ्ज़ है और आपको यह जान कर हैरत होगी की कुछ जगहों पर हिन्दुओं के बीच भी इस लफ्ज़ चलन है वहां भी भगवान शिव के मलंग पाए जाते है?
(5) शायद कुछ लोगो को मलंगो का अली हक अली हक कहते रहना अच्छा लगता हो लेकिन उन्हें इसके अलावा भी तो मलंगो के हालात देखने चाहिए नमाज़ और रोज़े से दूर दिन भर तबला और सारंगी लिये अली हक अली हक कहते रहने से क्या अमीरुल मोमनीन (अ. स) खुश होंगे ?
अगर ऐसा नहीं है तो हम क्यों खुद को शिया न कह कर मलंग कहें या शिया के साथ मलंग लफ्ज़ जोड़ कर अपने आप को शिया मलंग कहें?
(6) क्या ये बताया जा सकता है की कान में सुराख़ करवाकर बुँदे पहनने की रस्म कहाँ से चली है क्या इसका रिवाज आइम्मा के दौर में था फिर इसे दीन की पसंदीदा चीज़ समझ कर क्यों अपनाया जा रहा है?
वा अस्सलामो आलेकुम व रहमतुल्लाह व बराकातोह