हज़रत फ़तिमा स्त्रीयों को क़ुरआन व धार्मिक निर्देशों की शिक्षा देती व उनको उनके कर्तव्यों के प्रति सजग करती रहती थीं। आप की मुख्यः शिष्या का नाम फ़िज़्ज़ा था जो गृह कार्यों मे आप की साहयता भी करती थी। वह क़ुरआन के ज्ञान मे इतनी निःपुण हो गयी थीं कि उनको जो बात भी करनी होती वह क़ुरआन की आयतों के द्वारा करती थीं। हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा दूसरों को शिक्षा देने से कभी नही थकती थीं तथा सदैव अपनी शिष्याओं का धैर्य बंधाती रहतीं थीं।
एक दिन की घटना है कि एक स्त्री ने आपकी सेवा मे उपस्थित हो कर कहा कि मेरी माता बहुत बूढी हैं और उनकी नमाज़ सही नही है। उनहों नें मुझे आपके पास भेजा है कि मैं आप से इस बारे मे प्रश्न करूँ ताकि उनकी नमाज़ सही हो जाये। आपने उसके प्रश्नो का उत्तर दिया और वह लौट गई। वह फिर आई तथा फिर अपने प्रश्नों का उत्तर लेकर लौट गई। इसी प्रकार उस को दस बार आना पड़ा और आपने दस की दस बार उसके प्रश्नों का उत्तर दिया। वह स्त्री बार बार आने जाने से बहुत लज्जित हुई तथा कहा कि मैं अब आप को अधिक कष्ट नही दूँगी।
आप ने कहा कि तुम बार बार आओ व अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करो । मैं अधिक प्रश्न पूछने से क्रोधित नही होती हूँ। क्योंकि मैंने अपने पिता से सुना है कि" कियामत के दिन हमारा अनुसरण करने वाले ज्ञानी लोगों को उनके ज्ञान के अनुरूप मूल्यवान वस्त्र दिये जायेंगे। तथा उनका बदला (प्रतिकार) मनुष्यों को अल्लाह की ओर बुलाने के लिए किये गये प्रयासों के अनुसार होगा।"