वह सम्प्रदाय जिनका कोई ईश्वरीय अस्तित्व नहीं है, वह लोगों को आपनी तरफ़ खींचने, और अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिए के हर प्रकार के लोगों के लिए कुछ नया और आकर्शित करने वाली चीज़ तैयार करें। कुछ लोग ईश्वर और धर्म की तलाश में हैं तो उनको अपने धार्मिक रूप और दीनी सूरत से अकर्शित करते हैं, और वह लोग जो स्वतंत्रता और वासना की तलाश में हैं उनको हर प्रकार की पाबंदियों को हटा कर और झूठी आज़ादी के नाम पर उनको धोखा देते हैं।
बहाईयत भी इस श्रेणी से बाहर नहीं है, पहले वह अपनी बारह शिक्षाओं के साथ सामने आते हैं ताकि सामने वाले की प्रतिक्रिया को देख सकें, अगर वह ईश्वरीय शिक्षा की तलाश में होगा तो वह एकेश्वरवाद और नबूवत की बात करते हैं, और अगर अहकाम एवं धार्मिक आदेशों से आज़ादी और दूर रहने की बात करता है तो उसको यौन स्वतंत्रता दिखाते हैं।
हम इस लेख में बहाईयत के दूसरे हर्बे यानी बहाईयत के अहकाम में हर चीज़ के हलाल करने और यौन स्वतंत्रता के बारे में बात करेंगे और उसके कुछ नमूनों की तरफ़ इशारा करेंगे।
हुसैन अली नूरी, समलैंगिग्ता और महरमों के साथ शादी एवं शारीरिक संबंध के बारे में लिखते हैं
लवात (मर्द का मर्द के साथ संबंध बनाना) :
«انا نستحیی ان نذکر حکم الغلمان اتقوا الرحمن یا ملا الامکان و لا ترتکبوا ما نهیتم عنه فی اللوح و لاتکونوا فی هیماء الشهوات من الهائمین؛
हमको लज्जा आती है कि लड़को के बारे में अहकाम को बयान करें, ख़ुदा से डरो हे लोगों और जिस चीज़ से लौह (आकाश) में रोका गया है उसको ना करों और वासना को मैदान में हैरान हो जाने वालों में से ना हो जाओ (1)
महरमों से शादीः
«قد حرمت علیکم ازواج آبائکم؛ زن های پدرانتان بر شما حرام شده اند.»
अब्दुल बहा ने शादी के मसले में केवल अपने पिता की बीवी (यानी मां) से शादी करना हराम जाना है, इसका अर्थ यह है कि दूसरे महरमों (जैसे भाई, बहन, बेटी..) से शादी करना हराम नहीं है, जैसा कि कुछ बहाई इसी प्रकार की बातें करते हैं, जैसे वह बहाई जिसने ईरान के शहर मशहम में अपनी लड़की से शादी कि और जब उससे इस घिनौने कार्य के बारे में पूछा गया तो उसने कहा कि बेटी से शादी करना हलाल है। (2)
ज़िना (शारीरिक संबंध):
قَد حَکَم الله لِکُل زان و زانیه دیه المسلمه الی بیت العدل و حی تسعه مثاقیل من ذهب و ان عادا مره اخری ادوا بِضعف الجزاء هذا ما حَکَم بِهی مالک الاسما فی الولی و فی الخری قدر لهما عذاب مهیمن
ख़ुदा ने हर बलात्कार करने वाले मर्द और औरत के लिए आदेश दिया है कि वह बैतुल इद्ल का दियत (जुर्माना) दें और वह 9 मिस्क़ाल सोना है, और दूसरी बार ऐसा करने पर यह जुर्माना दुगना हो जाएगा यह है वह चीज़ जिसे नामों के मालिक ने दुनिया में आदेश दिया है। (3)
कितने आश्चर्य की बात है कि बहाईयों का ईश्वर केवल माल एकत्र करने और बहाईयों की व्यवस्था को देख रहा है और उसकी निगाह में परिवार और उसकी पवित्रता की कोई अहमियत नहीं हैः इसीलिए वह यह कह रहा है कि जो भी बलात्कार करे वह 9 मिस्क़ाल सोना जुर्माना दे और अगर दोबारा करें तो यह जुर्माना दोगुना हो जाएगा,
इसका अर्थ क्या हुआ? इसका अर्थ यह ह कि जो जितना भी मालदार है, उसकी स्वतंत्रता और यह झूठी आज़ादी भी उतनी ही अधिक है, वह जब चाहे जिससे भी चाहे बलात्कार कर सकता है और शारीरिक संबंध बना सकता है।
और शायद यही कारण है कि अब्दुल बहा ने विवश हो कर शारीरिक संबंध की संवेदनशीलता को समाप्त करने का आदेश दिया, क्योंकि धर्म में शारीरिक सम्बंध की खुली अनुमित, इस संवेदनशीलता के साथ सही नही थी, अगर एक बहाई इस पर संवेदनशीलता दिखाएगा तो वह कभी भी इस बात को बर्दाश्त नहीं करेगा कि कोई भी उसकी परिवार की तरफ़ निगाह उठा कर देखे और वह चुप रहे!!
सही सोंच रखने वाला कोई भी इन्सान इस प्रकार के गंदे और लज्जा के विपरीत अहकाम को देखकर ही किसी धर्म के ईश्वरीय या ग़ैर ईश्वरीय होने का पता लगा सकता है।
इसीलिए हमको अपने पाठकों पर पूर्ण विश्वास है और हम फ़ैसला आपके ही हाथ में छोड़ते हैं।
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संदर्भ
(1) अक़दस, हुसैन अली नूरी, पेज 64
(2) अक़दस, हुसैन अली नूरी, पेज 64
(3) अक़दस, हुसैन अली नूरी, पेज 21
http://www.adyannet.com/ (विभिन्न धर्मों का व्यापक डेटाबेस.)