हमारा अक़ीदह है कि इंसान की अक़्ल बहुत सी चीज़ों के हुस्न व क़ुब्ह (अच्छाई व बुराई )को समझती है। और यह उस ताक़त की बरकत से है जो अल्लाह ने इंसान को अच्छे और बुरे में तमीज़ करने के लिए अता की है। यहाँ तक की आसमानी शरीयत के नुज़ूल से पहले भी इंसान के लिए मसाइल का कुछ हिस्सा अक़्ल के ज़रिये रौशन था जैसे नेकी व अदालत की अच्छाई,ज़ुल्म व सितम की बुराई,अख़लाक़ी सिफ़ात जैसे सदाक़त,अमानत,शुजाअत,सख़ावत और इन्हीं के मिस्ल दूसरी सिफ़तों की अच्छाईयाँ,इसी तरह झूट,ख़ियानत,कंजूसी और इन्हीँ के मानिंद दूसरे ऐबों की बुराईयाँ वग़ैरह ऐसे मसाइल हैं जिन को इंसान की अक़्ल बहुत अच्छे तरीक़े से समझती है। अब रही यह बात कि अक़्ल तमाम चीज़ों के हुस्न व क़ुब्ह को समझने की सलाहियत नही रखती और इंसान की मालूमात महदूद है,तो इस के लिए अल्लाह ने दीन,आसमानी किताबों व पैग़म्बरों को भेजा ताकि वह इस काम को पूरा करें अक़्ल जिस चीज़ को दर्क करती है उसकी ताईद करे और अक़्ल जिन चीज़ों को समझने से आजिज़ है उनको रौशन करे।
अगर हम अक़्ल की ख़ुदमुखतारी को कुल्ली तौर पर मना करदें तो मस्ला-ए-तौहीद,खुदा शनासी,पैग़म्बरों की बेअसत व आसमानी अदयान का मफ़हूम की ख़त्म हो जाता है क्योँ कि अल्लाह के वुजूद और अम्बिया की दवत की हक़्क़ानियत का इसबात करना अक़्ल के ज़रिये ही मुमकिन है। ज़ाहिर है कि शरीअत के तमाम फ़रमान उसी वक़्त क़ाबिले क़बूल हैं जब यह दोनों मोजू (तौहीद व नबूवत)पहले अक़्ल के ज़रिये साबित हों जायें और इन दोनों मोज़ू को तनहा शरीअत के ज़रिये साबित करना नामुमकिन है।