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वहाबियत, सुन्नी उलेमा की निगाह में।

वहाबियत, सुन्नी उलेमा की निगाह में।



अहले सुन्नत के उलेमा ने इब्ने तैमिया के समय ही से इस का विरोध और उसके विचारों पर आपत्ति जताना शुरू कर दी थी, उसके समय और उसके मरने के बाद ही से सुन्नियों के बड़े बड़े उलेमा ने उसके अक़ाएद का कड़ा विरोध करते हुए उसे गुमराह और उसके अक़ाएद को इस्लाम विरोधी अक़ाएद बताते हुए उन्हें रद्द किया है। जिन में से कुछ को हम यहाँ पेश कर रहें हैं........

इब्ने तैमिया और उसके समर्थकों के विरुध्द सुन्नी उलेमा की प्रतिक्रिया इब्ने तैमिया ने 33 साल की उम्र से अपने गुमराह अक़ाएद और विचारों को लोगों के सामने ज़ाहिर किया तभी से मुसलमानों के बीच नाराज़गी शुरू हो गई थी, यहाँ तक कि बहुत से सुन्नी उलेमा ने उसे काफ़िर कहते हुए उसके विचारों को रद्द करते हुए किताबें भी लिखीं।

जैसे तक़ीउद्दीन सुबकी ने इसके अक़ाएद और विचारों को रद्द करते हुए शेफ़ाउस्सेक़ाम फ़ी ज़ियारति ख़ैरिल अनाम और अल-दुर्रतुल-मुज़िअह फ़ी अल-रद्द अला इब्ने तैमिया नाम से 2 किताबें लिख़ी।

इब्ने हजर असक़लानी जिन्होंने सहीह बुख़ारी की शरह करते हुए फ़त्हुल-बारी नाम से किताब लिखी, मुल्ला क़ारी हनफ़ी, इब्ने शाकिर कतबी, महमूद कौसरी मिस्री, यूसुफ़ इब्ने इस्माईल इब्ने यूसुफ़, हुसनी दमिश्क़ी जैसे बड़े सुन्नी उलेमा ने इब्ने तैमिया के अक़ाएद और विचारों को बातिल कहते हुए किताबें लिखी हैं।

इब्ने हजर हैसमी जिन का शुमार भी सुन्नियों के बड़े उलेमा में होता है वह इब्ने तैमिया के बारे में लिखते हैं कि अल्लाह ने उसे ज़लील, गुमराह और अंधा बहरा बना दिया है, और उसके समय के शाफ़ेई, मालिकी और हंबली उलेमा ने उसके बातिल अक़ीदों और गुमराह विचारों पर कड़ा विरोध जताया है, इब्ने तैमिया ने कुछ जगहों पर इमाम अली अ.स. और सुन्नी मुसलमानों के दूसरे ख़लीफ़ा उमर इब्ने ख़त्ताब के कामों पर भी आपत्ति जताई है, वह बिदअत को बढ़ावा देने वाला एक गुमराह और असंतुलित इंसान था, आखिर में दुआ करते हुए लिखते हैं, ख़ुदाया, उसको बिना रहेम के सज़ा दे, और हमें उसके विचारों और उसके नाम से भी बचा। (अल-फ़तावल-हदीसा, पेज 86)

सुन्नियों के एक और आलिम सुबकी इब्ने तैमिया के बारे में लिखते हैं, उसने क़ुर्आन और हदीस की आड़ लेकर इस्लामी अक़ाएद में बिदअत का सहारा लेते हुए इस्लामी बुनियादों से खिलवाड़ किया, उसने सभी मुसलमानों का विरोध करते हुए अल्लाह को जिस्म वाला और कई चीज़ों से मिल कर बनने वाला कह दिया, और वह इस विचार और उसके मानने वालों के कारण वह 73 फ़िरक़ों से बाहर हो गए। ( अल-दुर्रतुल-मुज़िअह फ़ी अल-रद अला इब्ने तैमिया, पेज 5)

इसी प्रकार सुन्नियों के मशहूर आलिम शौकानी ने लिखा है कि मोहम्मद बुख़ारी ने इब्ने तैमिया के कुफ़्र और बिदअत का ज़िक्र करते हुए इस प्रकार कहा कि अगर कोई इब्ने तैमिया को शैख़ुल-इस्लाम कहे वह काफ़िर है। (अल-बद्रुल-तालेअ, जिल्द 2, पेज 262)

असक़लानी का बयान है कि शाफ़ेई और मालिकी फ़िरक़े के दो क़ाज़ियों ने मिल कर फ़तवा भी दे दिया था कि जो भी इब्ने तैमिया के विचारों का समर्थक होगा उसका माल और दौलत दूसरों के लिए हलाल रहेगा। (अल-दोररोल कामेलह, जिल्द 1, पेज 471)

शैख़ ज़ैनुद्दीन इब्ने रजब हंबली भी इब्ने तैमिया को काफ़िर मानते और खुलेआम ऐलान करते कि इब्ने तैमिया और उसके समर्थकों को काफ़िर कहने में कोई हर्ज नहीं है। (दफ़ओ शुबहति मन शब्बहा व तमर्रदा, पेज 123)

मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब के विरुध्द सुन्नी उलेमा की प्रतिक्रिया सुन्नी उलेमा की मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब के विरुध्द प्रतिक्रिया उसी के जीवन से शुरू हो कर बाद तक जारी रही, सबसे पहले उसके ही बाप जिनका शुमार सुन्नियों के हंबली उलेमा में होता था, वह भी इस के अक़ाएद और विचारों को रद करते हुए लोगों से इस से दूर रहने को कहते थे। (कश्फ़ुल-इरतियाब, सैय्यद मोहसिन अमीन, पेज 7) इसी प्रकार उसके अपने भाई ने सुलैमान इब्ने अब्दुल वहाब ने भी उसका कड़ा विरोध जताते हुए दो किताबें अल-सवाएक़ुल इलाहियह फ़ी अल-रद अला अल-वहाबियह और फ़सलुल ख़िताब फ़ी अल-रद अला मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब लिखीं।
वहाबियत के बारे में सुन्नी उलेमा के अक़वाल अहले सुन्नत के बड़े बड़े उलेमा ने वहाबियों के विचारों गुमराह और भटके हुए बताया है, जिनमें से कुछ की ओर हम यहाँ इशारा कर रहे हैं.....
शैख़ जमील ज़ोहावी का वहाबियत के बारे में कहना है कि, ख़ुदा वहाबियत को नाबूद करे, क्योंकि इसी फ़िरक़े ने मुसलमानों को काफ़िर कहने की हिम्मत की है, और इनका पूरा प्रयास और मक़सद सबको काफ़िर साबित करना है, आप देख ही रहे हैं कि यह लोग पैग़म्बर के वसीले से अल्लाह की बारगाह में दुआ करने वाले को काफ़िर बताते हैं। (सफ़हतो अन आलि सऊदिल वहाबिय्यीन, सैय्यद मुर्तज़ा, पेज 120) सुन्नियों के इस आलिम ने वहाबियों के विरुध्द और उनके विचारों और अक़ाएद को रद करते हुए अल-फ़जरोस सादिक़ो फ़ी अल-रद अला मुनकेरित-तवस्सुल वल करामात वल ख़वारिक़ नामक किताब लिखी है। मक्के के मुफ़्ती ज़ैनी देहलान ने ज़ुबैद के मुफ़्ती अब्दुल रहमान अहदल की बात को नक़्ल करते हुए कहते हैं कि, वहाबियत की रद की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनकी रद में पैग़म्बर की हदीस काफ़ी है जिस में आप ने फ़रमाया कि उनकी अलामत यह होगी कि वह अपने सर को मुंडवाएंगे, अब्दुल वहाब ने अपने सभी समर्थकों के लिए सर का मुंडवाना ज़रूरी कहा था। (सफ़हतो अन आलि सऊदिल वहाबिय्यीन, सैय्यद मुर्तज़ा, पेज 121) शैख़ ख़ालिद बग़दादी कहता है कि, अगर वहाबियों कि किताबों को ध्यान से पढ़ा जाए तो आसानी से समझ आ जाएगा कि उनकी किताबें नास्तिक और बे दीन लोगों की किताबों जैसी हैं, कि वह अपने बातिल और गुमराह विचारों और अक़ाएद द्वारा लोगों को धोका देते हैं। (सफ़हतो अन आलि सऊदिल वहाबिय्यीन, सैय्यद मुर्तज़ा, पेज 125)

 

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