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सूर - ए - बक़रा की तफसीर 1

सूर - ए - बक़रा की तफसीर 1

इस सूरे में 286 आयते हैं और पवित्र क़ुरआन के तीस भागों में से दो से ज़्यादा भाग इसी सूरे से विशेष हैं। पवित्र क़ुरआन के उतरने वाले सूरों के क्रमांक की दृष्टि यह 86वें नंबर पर उतरने वाला सूरा है किन्तु क़ुरआन में सूरे हम्द के बाद दूसरे नंबर पर है।


सूरे बक़रह पैग़म्बरे इस्लाम के मक्का से मदीना पलायन के बाद उतरा इसलिए यह मदनी सूरा है। मदनी सूरा वह सूरा है जो मदीने में उतरा। आइये इस सूरे की पहली दो आयतें सुनते हैं।


बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीमः अलिफ़ लाम मीम, ज़ालेकल किताबु ला रैबा फ़ीहे हुदल लिल मुत्तक़ीनः ईश्वर के नाम से जो बहुत कृपाशील व दयावान है। अलिफ़ लाम मीम। यह वह किताब है जिसकी सत्यता में कोई संदेह नहीं है और यह सदाचारियों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है।


अलिफ़ लाम मीम, अलग अलग अक्षर हैं जिनसे यह सूरा आरंभ होता है। पवित्र क़ुरआन के 29 सूरों के आरंभ में जैसे सूरे बक़रह, आले इमरान, आराफ़, यूनुस, ताहा, शोअरा, क़सस इत्यादि सूरों का आरंभ इन्हीं अलग अलग अक्षरों से होता है। इन्हें क़ुरआनी शब्दावली में हुरूफ़े मुक़त्तेआत कहते हैं और यह पवित्र क़ुरआन की रचनात्मकता है जो दूसरी आसमानी किताबों में नहीं मिलती। ये अक्षर क़ुरआन की रहस्यमय बातों का भाग हैं। समय बीतने और पवित्र क़ुरआन पर होने वाले शोध कार्यों ने हुरूफ़े मुक़त्तेआत के बारे में नए बिन्दु पेश किए हैं। इस संदर्भ में पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकारों ने अनेक दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं। पवित्र क़ुरआन की व्याख्या की प्रसिद्ध किताब मजमउल बयान में हुरूफ़ मुक़त्तेआत के संबंध में कुछ दृष्टिकोणों का उल्लेख किया गया है। कुछ व्याख्याकारों ने कहा है कि अलग अलग अक्षरों को पेश करने के पीछे यह बताना था कि पवित्र क़ुरआन इन्हीं शब्दों पर आधारित है जिन पर सबका अधिकार है किन्तु इसके बावजूद मानवजाति इसका जवाब न ला सकी। जिससे पता चलता है कि यह ईश्वर का कथन है और महाचमत्कार है। कुछ शोधकर्ताओं ने हुरूफ़े मुक़त्तेआत को ईश्वर और उसके दूत के बीच कोडवर्ड कहा है। जबकि कुछ दूसरे व्याख्याकारों का कहना है कि ये अक्षर ईश्वर की विशेष प्रकार की सौगंद है और इन्हें क़ुरआन की शब्दावली में इस्मे आज़म कहा जाता है।


दूसरी आयत इस बात का उल्लेख करती है कि क़ुरआन मार्गदर्शन का स्रोत है किन्तु साथ ही इस बिन्दु पर बल देती है कि पवित्र व सदाचारी व्यक्ति ही क़ुरआन के मार्गदर्शन से लाभान्वित हो सकते हैं। अलबत्ता पवित्र क़ुरआन दूसरी आयतों में स्पष्ट करता है कि यह किताब पूरे विश्ववासियों के लिए मार्गदर्शन है और इस आयत में जो यह कहा गया हे कि क़ुरआन सदाचारियों का मार्गदर्शन करता है इसका एक कारण यह है कि जब तक व्यक्ति अपने भीतर ज़रूरी परिवर्तन न लाए और मन को पवित्र न बनाए और अपनी बुद्धि व प्रवृत्ति से समन्वित कार्य न करे उस समय तक क़ुरआन से मार्गदर्शन प्राप्त नहीं कर सकता। मनुष्य का अस्तित्व ऐसा है कि जब तक वह भेदभाव और हठधर्मी से दूर नहीं होगा उस समय तक उसका मार्गदर्शन नहीं हो सकता। अलमीज़ान नामक पवित्र क़ुरआन की व्याख्या पर आधारित प्रसिद्ध किताब के लेखक अल्लामा तबातबायी कहते हैं कि ईश्वर से वही लोग डरते हैं जो पहले अपनी स्वच्छ प्रवृत्ति से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और फिर पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं से दूसरे मूल्य अपने भीतर पैदा करते हैं और उसी तुलना में उनके मार्गदर्शन के चरण बढ़ते जाते हैं। इस बात में शक नहीं कि जिस व्यक्ति का मन जितना पवित्र व स्वच्छ होगा वह क़ुरआन से उतना ही लाभ उठाएगा और उसके प्रकाश से मन को उतना ही प्रकाशमय बनाएगा।      


बाद की आयतों में ईश्वर मोमिनों और सदाचारियों की वैचारिक व व्यवहारिक विशेषताओं का उल्लेख करता है और बल देता है कि ऐसे लोग मार्गदर्शन पर हैं और मुक्ति पाने वाले हैं।


जैसा कि सूरे बक़रह की आयत क्रमांक तीन, चार और पांच में ईश्वर कह रहा है, अल्लज़ीना यूमेनूना बिलग़ैबे व युक़ीमूनस्सलाता व मिम्मा रज़क़नाहुम युन्फ़ेक़ून, वल्लज़ीना यूमेनूना बेमा उन्ज़िला इलैका वमा उन्ज़िला मिन क़ब्लिका वबिल आख़िरते हुम यूक़ेनून, उलाएका अला हुदम मिर रब्बेहिम व उलाएका हुमुल मुफ़लेहून। अर्थात सदाचारी वे लोग हैं जो उस चीज़ पर आस्था रखते हैं जो उनसे छिपी हुयी है। नमाज़ पढ़ते हैं और जो अनुकंपाएं उन्हें दी गयी हैं उसे दूसरों में बांटते हैं। और वे जो कुछ आप (पैग़म्बर) पर उतरा है और जो पहले वाले दूतों पर उतरा है उस पर आस्था रखते हैं और प्रलय के दिन पर विश्वास रखते हें। ऐसे ही लोग अपने ईश्वर की ओर से मार्गदर्शन पर हैं और केवल ऐसे ही लोग मुक्ति पाएंगे।
सूरे बक़रह की आरंभिक आयतें सामाजिक, और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से समाज के तीन वर्ग का उल्लेख कर रही हैं। ये तीन वर्ग हैं ईश्वर से डरने वाले, उसका इंकार करने वाले और मिथ्याचारी। इनमें से हर एक समाज में विशेष कर्म व व्यवहार अपनाते हैं। इन आयतों में ईश्वर से डरने वालों और उसका इंकार करने वालों के विचारों व विशेषताओं की ओर इशारा किया गया है किन्तु मिथ्याचारियों के संबंध में उनके दोमुखी व धूर्त्तापूर्ण व्यवहार के संबंध में अधिक विस्तार से बात की गयी है। ये आयतें वास्तव में ऐसे मानदंड पेश करती हैं जिन पर वास्तविक मोमिनों को झूठे दावे करने वालों से परखा जा सकता है। ईश्वर से वे लोग डरते हैं जिन्होंने इस्लाम को मन से स्वीकार किया है। नास्तिक इसके विपरीत हैं वे न तो ईश्वर पर और ही प्रलय के दिन पर विश्वास रखते हैं। किन्तु मुनाफ़िक़ अर्थात मिथ्याचारी धोखेबाज़ व आडंबरी होते हैं। वे विदित रूप से स्वयं को ईमानवाला कहते हैं किन्तु मन से इंकार करते हैं। ये लोग अपनी बुरी नियत को छिपाए रखते हैं और इनके दो चेहरे होते हैं। इसी प्रकार ये लोग षड्यंत्रकारी होते हैं। ऐसे लोग इस्लाम और मुसलमानों के लिए अधिक ख़तरनाक हैं। शायद यही कारण है कि पवित्र क़ुरआन में इस वर्ग की अधिक धिक्कार की गयी है।


यद्यपि सूरे बक़रह की आयतें धीरे-धीरे उतरीं और इस सूरे में अनेक विषयों का उल्लेख किया गया है किन्तु सबका उद्देश्य एक है और वह सर्वसमर्थ ईश्वर की वंदना, उसके दूतों और आसमानी किताबों पर आस्था रखना है। यही कारण है कि पवित्र क़ुरआन में नास्तिकों और मिथ्याचारियों की भर्त्सना की गयी है क्योंकि वे ईश्वर, उसके दूतों और आसमानी किताबों पर आस्था नहीं रखते। इसी प्रकार दूसरी आसमानी किताबों के मानने वालों की इसलिए आलोचना की गयी क्योंकि उन्होंने धर्म में ग़लत चीज़ें शामिल कीं और ईश्वरीय दूतों में भेद किया।


बक़रह शब्द का अर्थ गाय है। इस सूरे में गाय की कहानी की ओर संकेत किया गया है जो बहुत आश्चर्यजनक व पाठ लेने योग्य है। इसलिए  इस सूरे का नाम बक़रह है। सूरे बक़रह की आयत क्रमांक 67 से 73 तक इस घटना का उल्लेख है। कहानी कुछ इस प्रकार है कि बनी इस्राईल के एक व्यक्ति का रहस्मय क़त्ल हो जाता है और हत्यारे का पता नहीं लग पाता और यह घटना बनी इस्राईल के बीच विवाद व झड़प का कारण बनी। शत्रुता को ख़त्म करने के लिए लोग हज़रत मूसा के पास गए और उनसे इसका हल पूछा। हज़रत मूसा ने ईश्वर से प्रार्थना की तो आकाशवाणी सुनायी दी कि हे मूसा एक गाय ज़िब्ह करो और उसका थोड़ा सा ख़ून मृतक के बदन पर डाल दो तो वह ज़िन्दा हो जाएगा और अपने हत्यारे की पहचान बताएगा। बहाने ढूंढने के लिए मशहूर बनी इस्राईल ने गाय के संबंध में हर बार एक नया प्रश्न किया। जैसे बनी इस्राईल ने कहा, हे मूसा ईश्वर से पूछिए कि यह गाय कैसी हो? हज़रत मूसा ने ईश्वर से पूछकर उन्हें बताया, न बूढ़ी और न ही जवान, बल्कि इन दोनों के बीच की हो। फिर बनी इस्राईल ने पूछाः उस गाय का रंग कैसा हो? ईश्वर ने कहा, पीले रंग की कि जिसे देख कर लोग प्रसन्न हों। बनी इस्राईल ने फिर हज़रत मूसा से कहा कि ईश्वर से कहिए कि गाय के बारे में कुछ और विस्तार से बताए। ईश्वर ने कहा, गाय ऐसी हो जिसे हल चलाने के लिए प्रयोग न किया गया हो। इस प्रकार बनी इस्राईल के हर सवाल का ज़रूरी उत्तर दिया गया यहां तक कि एक ऐसी गाय का पता लगा जो इन विशेषताओं से संपन्न एकमात्र गाय थी। इस गाय का मालिक एक निर्धन व्यक्ति था जो बहुत ही सदाचारी था। बनी इस्राईल ने मजबूर होकर बहुत बड़ी क़ीमत पर उस गाय को उस सदाचारी व्यक्ति से ख़रीदा और उसे ज़िब्ह किया और फिर ख़ून को मृतक के शव पर डाला। वह ईश्वर के आदेश से ज़िन्दा हो गया और उसने अपने हत्यारे का पता बताया।


सूरे बक़रह का दूसरा नाम फ़ुस्तातुल क़ुरआन भी है। फ़ुस्तात का अर्थ छाव व तंबू के हैं। जिस प्रकार तंबू अपने भीतर एक परिवार को इकट्ठा कर लेता है उसी प्रकार इस सूरे में क़ुरआन के आदेशों का बड़ा भाग मौजूद है। इस सूरे में नमाज़, रोज़ा और हज के आदेश दिए गए हैं। इसी प्रकार सूरे बक़रह में एकेश्वरवाद, प्रलय, मनुष्य के अस्तित्व में आने, बनी इस्राईल के हालात, हज़रत मूसा, हज़रत ईसा और यहूदी जाति से संबंधित घटनाओं, बैतुल मुक़द्दस से काबे की ओर क़िबला की दिशा का निर्धारण, और ईश्वर की ओर से ली जानी परीक्षाओं का उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त बदला लेने, खाने पीने की चीज़ों के वर्जित व वैध होने, लोगों के बीच हर प्रकार का संभव दान-दक्षिणा, ईश्वर के मार्ग में संघर्ष, महिलाओं और तलाक़ से संबंधित मामले, ब्याज पर रोक, और आत्मज्ञान, समाज तथा प्रशिक्षण से संबंधित दूसरे बहुत से विषयों का इस सूरे में उल्लेख किया गया है।

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