Hindi
Wednesday 27th of November 2024
0
نفر 0

चेहलुम, इमाम हुसैन की ज़ियारत पर न जाने का अज़ाब

चेहलुम, इमाम हुसैन की ज़ियारत पर न जाने का अज़ाब

आज जब कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की हर तरफ़ धूम है जिसको देखो वहीं आपकी ज़ियारत के लिये दुनिया के कोने कोने से चला जा रहा है तो इस समय कुछ इस्लाम के दुश्मन और हुसैनियत से दूर लोग इसके विरुद्ध दुषप्रचार कर रहे हैं और हर प्रकार से इसको इस्लाम के विरुद्ध और बिदअत बताने का प्रयत्न कर रहे हैं और कहते हैं कि चूँकि यह पैदल यात्रा चेहलुम में कर्बला जाना पैग़म्बर (स) के ज़माने में नहीं था इसलिये यह बिदअत है और मुसलमानों को यह नहीं करना चाहिए यह शिर्क है आदि, लेकिन इन बिदअत कहने वालों ने एक बार भी यह नहीं सोंचा कि पैग़म्बर के ज़माने में तो स्वंय इनका भी वजूद नहीं था तो क्या यह स्वंय भी बिदअत की पैदाइश हैं?!


बहरहाल इस लेख में हमाला मक़सद बिदअत पर बहस करना नहीं है, लेकिन चूँकि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के विरुद्ध आज यह वहाबी लोग बहुत कुछ बोल रहे हैं इसलिये हम इस लेख में अहलेबैत (अ) की हदीसों द्वारा इमाम हुसैन (अ) ज़ियारत को छोड़ देने के नतीजों और प्रभावों के बारे में बातचीत करेंगे।


1.    हलबी ने इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः जो भी इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को छोड़ दे, जब कि वह इस कार्य पर सामर्थ हो तो उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की अवहेलना की है।


2.    अबदुर्रहमान बिन कसीर रिवायत करते हैं कि इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः अगर कोई पूरा जीवन जह करता रहे, लेकिन इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत न करे उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अधिकारों में से एक अधिकार का हनन किया है, एक दूसरी रिवायत में आया हैः अगर तुम में से कोई हज़ार हज करे, लेकिन हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत के लिये न जाए उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अधिकारों में से एक अधिकार का हनन किया है।


3.    मोहम्मद बिन मुस्लिम ने अबू जाफ़र (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः जो भी हमारे शियों मे से इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत पर न जाए उसका ईमान और दीन ख़राब हो गया है।


4.    एक दूसरी रिवायत में आया है कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत का न करना आप पर ज़ुल्म है। अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने फ़रमायाः मेरे पिता, हुसैन (अ) पर क़ुरबान हो जाएं, वह कूफ़ा के द्वार पर क़ल्त किया जाएगा, मैं देख रहा हूँ कि जंगली जानवरों ने अपनी गर्दनों को उसके शरीर पर झुका रखा है और सुबह तक उस पर मरसिया पढ़ते हैं, जब ऐसा है, मेरे हुसैन (अ) पर अत्याचार करने से बचो।


5.    इब्ने मैमून ने रिवायत की है कि इमाम सादिक़ (अ) ने मुझ से फ़रमायाः मुझे सूचना मिली है कि हमारे कुछ शिया एक साल, दो साल और इससे अधिक उमर उनकी बीत चुकी है लेकिन वह हुसैन इब्ने अली बिन अबीतालिब (अ) की ज़ियारत को नहीं जाते हैं। (यानी कई कई साल हुसैन की ज़ियारत के लिये कर्बला नहीं जाते हैं)


मैंने कहाः मेरी जान आप पर क़ुरबान! मैं ऐसे बहुत अधिक लोगों को नहीं जानता हूँ (कि वह ज़ियारत को न जाएं)


आपने फ़रमायाः ईश्वर की सौगंध उन्होंने ग़ल्त किया और ईश्वर के सवाब को बरबाद किया और मोहम्मद (स) के पड़ोस से दूर हो गये।


मैंने पूछाः अगर कोई हर साल एक बार ज़ियारत पर जाए तो क्या यह काफ़ी है?


आपने फ़रमायाः हाँ, उसका बाहर निकलना ही अल्लाह के नज़दीक़ बहुत सवाब रखता है और उसके लिये नेकी है।


कहा गया है कि आपकी यह बात (कि उसने ईश्वर के सवाब को बरबाद किया है) उस व्यक्ति के लिये भी सही है जो बहुत दूर रहता है और इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत पर जाने पर सामर्थ भी रखता है लेकिन तीन साल तक न जाए।


6.    बहुत सी रिवायतों में आया है कि ज़ियारत पर न जाना आयु को घटाता है, दूसरी रिवायत में आया है कि आपकी ज़ियारत को छोड़ना, जीवन से एक साल कम कर देता है, और इसमें कोई संदेह नहीं है।


7.    एक रिवायत के अनुसार, आपकी ज़ियारत को छोड़ने वाला, अगर स्वर्ग में प्रवेश करे, उसका स्थान स्वर्ग के हर मोमिन के स्थान से नीचा होगा, और पैग़म्बर (स) के पड़ोस से दूर है।


8.    इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को छोड़ने वाला नर्क वालों मे से है और वह लज्जित और अपमानित होगा।


(ख़साएसे हुसैनिया किताब से लिया गया)

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

वहाबियों और सुन्नियों में ...
नमाज.की अज़मत
नक़ली खलीफा 3
दुआ ऐ सहर
क़ुरआन
आदर्श जीवन शैली-६
चेहलुम के दिन की अहमियत और आमाल
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलमा का जन्म ...
म्यांमार अभियान, भारत और ...

 
user comment