यह सवाल हमेशा से इंसान को परेशान करता रहा है। दुनिया का हर मज़हब मौत के बाद जिंदगी का यकीन दिलाता है जबकि मज़हब से इतर लोगों का मानना है कि मौत के बाद जिस्म सड़ गल कर मिट्टी हो जाता है और उसके बाद दूसरी जिंदगी का सवाल ही नहीं उठता।
इस्लाम इसका यकीन दिलाता है कि मौत के बाद जिंदगी है, और एक फैसले का दिन (कयामत) मुकर्रर है, उस दिन हर शख्स के आमाल देखे जायेंगे। वहाँ नेक अमल करने वालों के लिये अच्छी जगह यानि जन्नत व बुरे काम करने वालों के लिये बुरी जगह यानि जहन्नुम है।
कैसी होगी जन्नत या कैसा होगा जहन्नुम? इस बारे में हम कोई कल्पना नहीं कर सकते। इसलिये कि मौत के बाद की सारी चीजें इस दुनिया से पूरी तरह अलग होंगी। मिसाल के तौर पर दुनिया की आग आम तौर पर लाल और ज्यादा से ज्यादा सफेद होती है। लेकिन जहन्नुम की आग काले रंग की है। हम बस इतना समझ सकते हैं कि जन्नत इस दुनिया से इतनी बेहतर होगी और जहन्नुम इस दुनिया से इतना बदतर होगा जितना हम सोच ही नहीं सकते।
कयामत के दिन मैदान-ए-हश्र (जहाँ लोगों का फैसला होगा) की तरफ जहन्नुम को लाया जायेगा और उसके ऊपर एक पुल कायम किया जायेगा। जिसे पुले सिरात कहते हैं। उस पुल के ऊपर से हर व्यक्ति को गुजरना होगा। जो हक पर होंगे और जिनके कर्म अच्छे होगे वो उस पुल से गुजर कर जन्नत में दाखिल हो जायेंगे। और बुरे कर्म वाले बीच ही में गिर कर जहन्नुम की आग में घिर जायेंगे।
अब यहाँ कुछ सवाल लोगों के ज़हन में पैदा होते हैं।
1- जन्नत और जहन्नुम का फैसला मौत के बाद क्यों? इसी जिंदगी में क्यों नहीं? जिससे कि उसे देखकर दूसरे लोग सुधर जायें।
दरअसल अल्लाह बुरे इंसान को आखिरी साँस तक सुधरने का मौका देता है ताकि वह तौबा करके अच्छा इंसान बन जाये और उसके गुनाह माफ हो जायें। इसलिये इस जिंदगी में उसे कोई सजा नहीं दी जाती। इसी तरह मौत से पहले अगर उसे उसकी नेकियों का बदला मिल जाये तो बाद में जो वह नेकियां करेगा? उसका बदला उसे कैसे मिलेगा? कुछ नेकियां ऐसी भी होती हैं जिनका बदला इंसान को मरने के बाद भी मिलता रहता है। अगर किसी व्यक्ति ने किसी रेगिस्तानी इलाके में कुएं का निर्माण कराया है तो जब तक लोग उस कुएं से अपनी प्यास बुझाते रहेंगे, उसे इस नेकी का सवाब मिलता रहेगा। इसी तरह अगर उसकी औलाद में से किसी ने कोई अच्छा काम इस नीयत के साथ किसा कि उसका सवाब उसके माँ बाप को मिले तो ये नेकी भी उसके माँ बाप को मिलेगी। इसीलिये अल्लाह ने फैसले का वक्त कयामत के रोज का रखा है जब यह पृथ्वी व सूर्य सभी खत्म हो जायेंगे। उस वक्त नेकी या बदी के सारे एकाउंट बन्द हो जायेंगे।
2- जन्नत और जहन्नुम का फैसला कयामत के दिन किया जायेगा। जब यह दुनिया खत्म हो जायेगी। तो सवाल ये है कि कयामत शायद लाखों साल बाद आने वाली है। तो अभी से उसकी फिक्र क्यों? और मौत के बाद इन लाखों सालों में इंसान की रूह अर्थात आत्मा क्या कर रही होगी? इस दौरान क्या वह सोयी हुई है या किसी और दुनिया में है?
ऐसा भी नहीं है कि सारे फैसले कयामत के ही रोज होंगे। जैसे ही किसी शख्स की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा एक दूसरे लोक में पहुंच जाती है जिसे बरज़ख का नाम दिया गया है। इस लोक में भी कयामत की ही तरह अच्छे लोगों के लिये जन्नत के मिस्ल अच्छी चीजें हैं और बुरे लोगों के लिये बुरी चीजें।
बरज़ख की तरफ कुरआनी आयतों में कुछ इस तरह जिक्र आया है :
40.46 और अब तो कब्र में दोज़ख की आग है, कि वह लोग सुबह और शाम उसके सामने ला खड़े किये जाते हैं। और जिस दिन क़यामत बरपा होगी, (हुक्म होगा) फिरऔन के लोगों को सख्त से सख्त अजाब में झोंक दो।
यहां पर दोजख की आग बरज़ख में है इसलिये क्योंकि कयामत के दिन रात और दिन का मामला खत्म हो जायेगा। कयामत में न यह जमीन बाकी रहेगी न आसमान।
11.106-108 तो जो लोग बदबख्त हैं वह दोज़ख में होंगे और उसी में उनकी हाय व चीख पुकार होगी। वह लोग जब तक आसमान व ज़मीन में हैं, हमेशा उसी में रहेंगे मगर जब तुम्हारा परवरदिगार चाहे। बेशक तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है कर ही डालता है।
चूंकि कयामत में न यह जमीन बाकी रहेगी न आसमान तो यह आयत बरजख की बात कर रही है। और जो लोग नेकबख्त हैं वह तो बहिश्त में होंगे जब तक आसमान व ज़मीन है वह हमेशा उसी में रहेंगे मगर जब तुम्हारा परवरदिगार चाहे।
यहाँ ये भी साफ हो रहा है कि जिन लोगों के गुनाह बरजख की आग में खत्म हो जायेगे वह कयामत के दिन जन्नत में भेज दिये जायेगे। और इसका उल्टा भी मुमकिन है।
36. 25-26 मैं तो तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान ला चुका हूं। मेरी बात सुनो और मानो। मगर उन लोगो ने उसे संगसार कर डाला। तब उसे अल्लाह का हुक्म हुआ कि बहिश्त में जा।
इस आयत में भी बरज़खी बहिश्त (जन्नत) की बात हो रही है।
इस तरह की कई आयतें बरज़ख की बात करती हैं। बरजख मौत के बाद रूहों का घर है।
किताबों में बरजख के दो हिस्से बताये गये हैं : (1) वादियुस्सलाम (सलामती की वादी) यहाँ अच्छी रूहें आराम से रहती हैं। और (2) वादिये बरहूत (भयानक वादी) यहाँ बुरी तकलीफ के साथ रूहें रहती हैं।
अगर कोई अच्छा व्यक्ति गुमराही का मौत मर गया। यानि उसे किसी ने सही रास्ता बताया ही नहीं। तो उसके लिये बरज़ख एक चाँस भी देता है कि कयामत के लिये अपने को सही राह पर लगा ले।
बरज़ख में बलात्कारी की सजा : किताबों में है कि अगर कोई व्यक्ति बलात्कार करता है तो उसकी कब्र में अजाब के तीन सौ दरवाजे खुल जाते हैं। हर दरवाजे से आग के साँप और बिच्छू बरामद होते हैं और वह कयामत तक जलता रहता है।
बरजख सिर्फ आत्मा के लिये है। पदार्थिक जिस्म से उसका कोई ताल्लुक नहीं है। बरजख में आत्मा को एक काल्पनिक जिस्म उसी तरह मिल जाता है जैसे कि सपने में होता है। जबकि कयामत का ताल्लुक जिस्म और आत्मा दोनों के लिये है। कयामत में इंसान का जिस्म उसी नुक्ते से दोबारा पैदा किया जायेगा जिस नुक्ते से पहली बार पैदा किया गया। और फिर उस जिस्म को उसकी आत्मा के साथ जोड़ दिया जायेगा।
कयामत के दिन इंसान के होंठ सिल जायेंगे और हाथ पैर गवाही देंगे। कि उस इंसान ने पूरी जिंदगी कैसे कर्म किये। उस दिन हर व्यक्ति को हर उस व्यक्ति को बदला देना पड़ेगा जिसका हक उसने इस दुनिया में मारा था। यह बदला उसे अपनी नेकियों में से देना होगा।
अब एक सवाल और उठता है अल्लाह ने जन्नत और जहन्नुम बनाया ही क्यों? वह इंसान को भी फरिश्तों की तरह पैदा कर सकता था, जिनमें सिर्फ नेकी और अल्लाह की इबादत का ही विचार आता है। और बुरे विचारों से ये लोग दूर रहते हैं।
इसका जवाब ये है कि अल्लाह ने पहले जिन्नातों को बनाया और फिर इंसान को पैदा करने का इरादा किया। इंसान एक ऐसी मखलूक, जिसमें अच्छाई और बुराई के बारे में सोचने की ताकत हो। और जो अपने कर्मों को आजादी के साथ कर सकता हो। अल्लाह के इल्म से जिन्नातों और फरिश्तों को मालूम था कि इंसान का मिजाज क्या है। इसलिये जब अल्लाह ने कहा कि ज़मीन का मालिक इंसानों में से ही होगा तो इन लोगों ने एतराज जताया कि इंसान जमीन पर हमेशा तबाही और मारकाट मचाता रहेगा। ऐसे को जमीन का मालिक बनाना क्या उचित है? जवाब में अल्लाह ने कहा कि अपनी कमजोरियों के बावजूद वह अपने ज्ञान की वजह से तुम सबसे बेहतर है। सब ने अल्लाह के फैसले पर सर झुका दिया सिवाय इबलीस के जिसने अल्लाह के फैसले के बावजूद इंसान को अपने से नीचा समझा। उसने यह ठान लिया कि इंसान को नीचा दिखाने की हर मुमकिन कोशिश करेगा। उसकी सरकशी के लिये अल्लाह ने जहन्नुम की पैदाइश की और फिर उसकी न्यायप्रियता ने इबलीस को भी इतनी आजादी दे दी कि जिसको भी बहकाने में वह कामयाब हो जायेगा वह इंसान भी उसी के साथ जहन्नुम में भेज दिया जायेगा। इसलिये अब जो इंसान इबलीस के बहकाने में न आकर अपने को उससे बेहतर बना देता है उसके लिये जन्नत है और जो अपने को इबलीस से बदतर बना देता है उसके लिये जहन्नुम है। हर बेहतर इंसान अल्लाह के फैसले पर सहमति की मुहर लगाता है। और हर बदतर इंसान इबलीस के एतराज के लिये नया सुबूत बन जाता है। अब हमारे लिये यह फैसला करना है कि बेहतर बनकर अल्लाह के फैसले से सहमति दिखानी है और जन्नत में जाना है या बदतर बनकर इबलीस को और ज्यादा हंसने का मौका देना है और उसके साथ जहन्नुम में रहना है?
पुनश्च : सभी इंसान ज़मीन के मालिक नहीं हैं. हदीसों के अनुसार ज़मीन के मालिक मुहम्मद (स.अ.) व आले मुहम्मद हैं.
source : http://hamarianjuman.blogspot.com