पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
इसके पूर्व लेख मे आप ने पापो के बुरे प्रभाव हज़रत इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम के विस्तृत कथन मे नियामतो को परिवर्तित करने वाले पापो का अध्ययन किया तथा इस लेख मे भी इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम के उसी विस्तृत कथन मे दूसरे पापो का अध्ययन करेगे।
जो पाप लज्जा और पछतावे का कारण होते हैः हत्या करना, आपसी समबंधो का समाप्त करना, समय समाप्त होने तक नमाज मे देरी करना, वसीयत न करना, लोगो के अधिकारो (होक़ूक़) का भुगतान न करना, मृत्यु के संदेश आने तथा उसकी ज़बान बंद होने तक ज़कात का भुगतान न करना।
नियामतो के समाप्त करने वाले पापः खुदराय (जानबूझकर) सितम करना, लोगो पर अत्याचार करना, लोगो का मज़ाक़ उड़ाना, दूसरो लोगो को अपमानित करना।
मानव तक नियामतो (नेमते) के पहुँचने मे बाध्य पापः अपनी अभावग्रस्ती (मोहताजगी) व्यक्त करना, रात्री के एक तिहाई भाग बीतने से पहले बिना नमाज पढ़े इतना सोना कि नमाज का समय समाप्त हो जाए, प्रातः काल नमाज़ का समय समाप्त होने तक सोते रहना, ईश्वर की नियामतो को छोटा समझना तथा ईश्वर से शिकायत करना।
पर्दा उठाने वाले पापः शराब पीना, जुआ खेलना अथवा सट्टा लगाना, मसख़रह करना, वियर्थ का काम करना, मज़ाक़ उड़ाना, लोगो के ऐबो का वर्णन करना, शराबीयो के साथ उठना बैठना।
जो पाप बलाओ के आने का कारण हैः दुखि लोगो की गुहार का ना सुनना, अत्याचार सहन करने वालो (मज़लूमो) की सहायता न करना, अच्छे कामो की दावत तथा बुरे कामो को त्यागना जैसे ईश्वरीय दायित्व को छौड़ना।
जारी