हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह की माअरफ़त के मसाइल में मुहिमतरीन मस्ला माअरफ़ते तौहीद है। तौहीद दर वाक़ेअ उसूले दीन में से एक अस्ल ही नही बल्कि तमाम अक़ाइदे इस्लामी की रूह है। और यह बात सराहत के साथ कही जा सकती है कि इस्लाम के तमाम उसूल व फ़रूअ तौहीद से ही वुजूद में आते हैं। हर मंज़िल पर तौहीद की बाते हैं ,वहदते ज़ाते पाक, तौहीदे सिफ़ात व अफ़आले ख़ुदा और दूसरी तफ़्सीर में वहदते दावते अंबिया, वहदते दीन व आईने ईलाही,वहदते क़िबलाव किताबे आसमानी,तमाम इँसानों के लिए अहकाम व क़ानूने ईलाही की वहदत,वहदते सफ़ूफ़े मुस्लेमीन और वहदते यौमुल मआद (क़ियामत)।
इसी वजह से क़ुरआने करीम ने तौहीद ईलाही से हर तरह के इनहेराफ़ और शिर्क की तरफ़ लगाव को ना बखशा जाने वाला गुनाह कहा है। “इन्ना अल्लाहा ला यग़फ़िरू अन युशरका बिहि व यग़फ़िरु मा दूना ज़ालिका लिमन यशाउ व मन युशरिक बिल्लाह फ़क़द इफ़तरा इस्मन अज़ीमन ”[1] यानी अल्लाह शिर्क को हर गिज़ नही बख़शेगा,(लेकिन अगर)इसके (शिर्क)के अलावा (दूसरे गुनाह हैं तो) जिसके गुनाह चाहेगा बख़्श देगा,और जिसने किसी को अल्लाह का शरीक क़रार दिया उसने एक बहुत बड़ा गुनाह अँजाम दिया।
“व लक़द उहिया इलैका इला अल्लज़ीना मिन क़बलिका लइन अशरकता लयहबितन्ना अमलुका वलतकूनन्ना मिन अलखासिरीना ”[2] यानी बातहक़ीक़ तुम पर और तुम से पहले पैग़म्बरों पर वही की गई कि अगर तुम ने शिर्क किया तो तुम्हारे तमाम आमाल हब्त(ख़त्म)कर दिये जायेंगे और तुम नुक़्सान उठाने वालों में से हो जाओ गे।
[1] सूरए निसा आयत न. 48
[2] सूरए ज़ुमर आयत न. 65
source : http://al-shia.org