लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किताब का नाम: पश्चताप दया की आलंगन
इसी विषय मे कुच्छ बाते बताई थी बाकी बाते आपके सामने है।
ईश्वरीय मार्ग मे ख़ुम्स[1], ज़कात[2], सदक़ा[3] और दान देने मे लोभ से काम लेना, थोडा सा धन हाथ लगने पर परमेश्वर से अनावश्यकता का ढोल बजाना, न्याय के दिन का अस्वीकारना जैसे अर्थ निम्नलिखित छंद मे आए हैः
وَأَمَّا مَنْ بَخِلَ وَاسْتَغْنَى * وَكَذَّبَ بِالْحُسْنَى * فَسَنُيَسِّرُهُ لِلْعُسْرَى
वअम्मामन बख़िला वस्तग़ना * वकज़्ज़बा बिल्हुसना * फ़सानोयस्सिरुहू लिलऊसरा[4]
जब मनुष्य अशीष मे डूब जाए तो उसका ध्यान परमात्मा के एहसान और लोगो की भलाई की ओर अधिक होना चाहिए, परमात्मा की अशीष पर शुक्र, ईश्वर की पूजा तथा लोगो की सेवा करने मे अधिक से अधिक प्रयत्न करे ताकि जीवन क्षेत्र मे अशीष स्थिर रहें और ईश्वर मनुष्य के प्रति अपनी कृपा और अशीषो मे वृद्धि हो।
[1] ख़ुम्स इस्लाम धर्म के शिया समुदाय मे एक प्रकार का टैक्स है जो वर्ष के अंत पर घर मे मौजूद हर वस्तु पर देना अनिवार्य है। ख़ुम्स का भुगतान करने वाला व्यक्ति अपनी देयतिथि खुद निश्चित करता है। और ख़ुम्स मे मौजुद माल का पाचवा भाग या उस भाग के बराबर धन का भुगतान करता है। भुगतान किये गये माल या धन के दो भाग होते है जिसमे से एक भाग हज़रत पैग़म्बर (स.अ.व.व.) की संतान (सैय्यद लोग) का और दूसरा भाग ईश्वर का है (आज कल इस भाग के हक़दार इमामे ग़ायब है, इमाम के ग़ायब होने के कारण यह भाग मरजए तक़लीद - अर्थात शिया समुदाय के वरिष्ठ धर्म गुरु - लेते है। ख़ुम्स से संबंधित अधिक जानकारी के लिए इस विषय की पुस्तको का अध्यन करें। (अनुवादक)
[2] ज़कात भी इस्लाम धर्म मे एक प्रकार का टैक्स है। जिसकी का स्पष्टीकरण पहले किया जा चुका है।
[3] सदक़ा एक प्रकार का दान है। जिसे व्यक्ति कभी अपने शरीर, परिवार वालो, माल, मकान इत्यादि के सुरक्षित रहने हेतु दान करता है।
[4] सुरए लैल 92, छंद 8 - 10