सानीए ज़हरा (स0) को उम्मुल मसाएब और शरीकुल हुसैन (अ0) कहा जाता है इसकी वजह है के ज़ैनब बिन्ते अली (अ0) अहलेबैत अलैहिस्सलाम और इमाम के दरमियान राबता थीं जिनका एक कान अहले हरम के नाले और दूसरा कान मैदाने जंग से हुसैन (अ0) की सदाएं सुनता था, एक आंख ख़ेमों पर तो दूसरी आंख हुसैन (अ0) की तरफ़ लगी थी, और बीबी का जिस्मे अतहर ख़ेमों में था।
पैग़ामात की नशर व इशाअत में जनाबे ज़ैनब (सलामुल्लाहे अलैहा) की खि़ताबत का एक अहम रोल है और यह बीबी की खि़ताबत ही थी के कूफ़े व शाम के माहौल को बदल दिया और तमाशाइयों को रोने पर मजबूर कर दिया और सय्यदा की बेटी का ख़ुतबा दर्द और तासीर में इस क़द्र डूबा था के सामेईन की आंखों में आंसू आ जाते थे इसी लिये आपको फ़सीहा व बलीग़ा कहा जाता है, बीबी ज़ैनब (अ0) की तक़ारीर और ख़ुत्बे जो बाज़ारे कूफ़ा और दरबारे शाम में दिये वह यह बावर कराने के लिये काफ़ी हैं के फ़न्ने खि़ताबत में बीबी ज़ैनब (अ0) का दर्जा बहुत बलन्द है और यह के बीबी आलेमा ग़ैर मोअल्लेमा हैं।
क़ाफ़ेला दमिश्क़ पहुंचा तो इमाम हुसैन (अ0) का सरे अक़दस नैज़े पर बलन्द करके तशहीर किया गया। जब वह एक मक़ाम से गुज़रा तो वहां एक शख़्स सूराए कहफ़ की तिलावत कर रहा था जब वह इस आयत पर पहुंचा ‘‘अम .....................’’ (क्या तुम जानते हो के असहाबे कहफ़ व रक़ीम हमारी क़ुदरत की अजीब निशानी थे)
तो इमाम हुसैन (अ0) का सर बहुक्मे ख़ुदा गोया (बोला) के
(मेरा क़त्ल और मेरे सर को नैज़े पर बलन्द करना और शाम लाना असहाबे कहफ़ के क़िस्से से कहीं ज़्यादा अजीब है)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0) और मख़दूराते अहलेबैत (अ0) को यज़ीद के दरबार में जब लेकर जाया गया तो यज़ीद मलऊन शराब व शतरंज से फ़ारिग़ होने के बाद अली (अ0) की बेटी से बात करना चाहता था|
तब बीबी ने इरशाद फ़रमाया- ‘‘तमाम हम्द व सिपास सिर्फ़ अल्लाह तआला के लिये मख़सूस हैं जो तमाम आलमीन का परवरदिगार है और अल्लाह की तरफ़ से दुरूद व रहमत हो उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम पर और उनकी तमाम अहलेबैत (अ0) पर, अल्लाह बुज़ुर्ग व बरतर ने सच फ़रमाया और वह इसी तरह फ़रमाता है।
‘‘जो लोग बदियों के मुरतकिब हुए वह अपने अन्जाम को पहुये, जिन्होंने अल्लाह तआला की आयात को झुठलाया और उनका तमसख़र उड़ाया’’
ऐ यज़ीदे मलऊन! क्या तू गुमान करता है के हमें क़ैद करके तूने हम पर ज़मीन व आसमान की फ़िज़ा को तंग कर दिया है? क्यों तूने हमें क़ैद करके बाज़ारों और शहरों में फिराया? क्या तू गुमान करता है के तेरे इस अमल से हम अल्लाह तआला के हुज़ूर ज़लील हुए हैं? और इस तरह क्या तूने अल्लाह के सामने एज़ाज़ व मन्ज़िलत हासिल की है? क्या तूने गुमान कर लिया है के अपने इस अमल से तूने अल्लाह के हुज़ूर इतना बड़ा काम सरे अन्जाम दिया है जिसने ग़ुरूर व तकब्बुर से तेरी नाक फुला दी है?
और तू बड़े ग़ुरूर से अपने चारों तरफ़ देखता है, दरआँ हालांके तू इन्तेहा से ज़्यादा ख़ुश और मसरूर है? क्या तू दुनिया को आबाद और अपनी मजीऱ् के मुताबिक़ पाता है? और क्या समझता है के दुनिया के तमाम उमूर तेरी मजीऱ् व मन्शा के मुताबिक़ अन्जाम पाते हैं? नीज़ क्या तू समझता है के हमारे मक़ाम व मन्सब को तूने दुरूस्त जाना है?
यज़ीद! ज़रा ग़ौर कर (और इन ख़यालाते बातिल से बच) क्या तू फ़रमाने अल्लाह बुज़ुर्ग व बरतर को भुला बैठा है जबके वह फ़रमाता है-
‘जो लोग कुफ्र व बेदीनी के मैदान में क़दम रखते हैं, यह गुमान न करें के जो मोहलत हमने उन्हें दी है वह उनके फ़ाएदे में है? बल्कि हमने उन्हें इसलिये मोहलत दी है के उन्हें अपने गुनाहों में इज़ाफ़े की मोहलत ज़्यादा मिले और ज़लील करने वाला अज़ाब उनके लिये मुहय्या है’’
ऐ हमारे आज़ाद किये हुए लोगों की औलाद! क्या यह इन्साफ़ है के तूने अपनी औरतों और कनीज़ों तक को तो पर्दे में बैठा रखा है लेकिन रसूल अल्लाह (स0) की बेटियों को नामहरमों के दरमियान क़ैदी बना रखा है, उनके पर्दाए हुरमत को तूने पारा पारा कर दिया है, उनके चेहरों और सूरतों को और उनके लिबास को ख़राब करके बेपर्दा कर दिया है, यहां तक के दुश्मनाने रब उन्हें देखते हैं, उन्हें तूने शहर ब शहर फिराया है, हत्ता के शहरों और देहातों के बाशिन्दे उन्हें देखते हैं और दूर व नज़दीक के लोगों ने उन्हें तमाशा बना रखा है।
ज़लील व शरीफ़ लोग इनकी तरफ़ अपनी आंखों को खोलते हैं, उनकी कैफ़ियत यह है के उनके मर्द उनकी सरपरस्ती के लिये मौजूद नहीं हैं, न वह सर परस्त व हिमायती रखते हैं, अलबत्ता ऐसे शख़्स की तरफ़ से कैसे अतफ़ व मेहरबानी की तवक़्क़ोअ की जा सकती है जो उनकी औलाद हो जिन्होंने इस्लाम के पाकीज़ा शहीदों के जिगर को चबाना पसन्द किया हो?
ऐसे शख़्स से किस तरह मेहरबानी की तवक़्क़ोअ की जा सकती है जिसका गोश्त शोहदा के ख़ून से बना हो? फिर वह शख़्स किस तरह अहलेबैत (अ0) के साथ अपने बुग़्ज़ व कीना में कमी कर सकता है जिसने हमेशा हम पर बुग़्ज़ व नफ़रत ही की नज़र डाली हो? और वह अपने एहसासे गुनाहकी बजाए अपनी ग़लती और जुर्म को बहुत बुरा जानते हुए भी कहता हो ‘‘के काश मेरे आबा व अजदाद मेरी इस शादमानी व ख़ुशहाली को देखते तो कहते ऐ यज़ीद! तेरे हाथ शल न हों’’
इसके साथ ही तू हज़रत अबाअब्दिल्लाह (इमाम हुसैन (अ0)) के दन्दाने मुबारक पर छुरी मारता है, वही हुसैन (अ0) जो जवानाने जन्नत के सरदार हैं, न सिर्फ़ यह फिर तू अपनी शान में शाएरी व नुक्ता आफ़रीनी भी कर रहा है के हमारे दिल के टुकड़े टुकड़े कर डाले और अपने दिल को ठण्डा करे।
मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम की ज़ुर्रियत के ख़ून को बहा कर, वह मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के अल्लाह जिन पर और जिनके ख़ानदान पर दुरूद भेजता है? यह वही हज़रात हैं जो ख़ानदाने अब्दुल मुत्तलिब (अ0) के दरख़्शां सितारे थे फिर तू अपने आबा व अजदाद को पुकारता है और गुमान करता है के वह तेरे सवाल का जवाब भी देंगे, हालांके तू ख़ुद बहुत जल्द उनके पास पहुंच जाएगा और तू आरज़ू करेगा के
‘‘काश! मेरे हाथ मफ़लूज और ज़बान गूंगी होती ताके जो कुछ मैंने कहा वह न कह पाता और जो कुछ मैंने किया वह न करता’’
परवरदिगार! इन लोगों से हमारे हक़ को वसूल फ़रमा! इन ज़ालिमों से हमारा इन्तेक़ाम ले! अपने ग़ैज़ व ग़ज़ब को उन पर वारिद फ़रमा! इन्होंने हमारा ख़ून बहाया और हमारे हामियों को क़त्ल किया।
यज़ीद (मलऊन)! अल्लाह की क़सम! अपने इस अज़ीम गुनाह से तूने सिर्फ़ अपने गोश्त को पारा पारा किया है और इसके सिवा कुछ नही ंके तूने ख़ुद अपने बदन के गोश्त के टुकड़े टुकड़े किये हैं (रोज़े जज़ा के हिसाब की तरफ़ बीबी ने इशारा किया है)
बहुत जल्द तू परवरदिगार के हुक्म से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के सामने वारिद होगा और जबके उनकी ज़ुर्रीयत का ख़ून तेरी गर्दन पर होगा उनकी इतरत की हतक का गुनाह और उनके गोश्त पोस्त का अज़ाब तू अपनी गर्दन पर रखता होगा।
(व लानतुल्लाहे अला क़ौमिज़्ज़ालेमीन) –