पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
पैगंमबरे इस्लाम (स.अ.व.अ.व.) पापी को संबोधित करते हुए कहते हैः कि
أيُّهَا النَّاسُ اَنْتُم كَالمَرْضَى ، وَرَبُّ العَالَمِينَ كَالطَّبِيبِ ، فَصَلاحُ المَرضَى فِيمَا يَعْمَلُهُ الطَّبيبُ وَيُدَبِّرُهُ لاَ فِيمَا يَشْتَهِيهِ المَريضُ وَيَقْتَرِحُهُ
आय्योहन्नासो अनतुम कलमर्ज़ा, व रब्बुल आलामीना कत्तबीबे, फ़सलाहुल मर्ज़ा फ़ीमा यामलोहुत्तबीबो वयोदब्बेरोहु लाफ़ीमा यशतहीहिलमरीज़ो वयक़तरेहोहु[1]
हे लोगो तुम! रोगीयो के समान हो, और संसार का परमेश्वर चिकित्सक के समान है, रोगी की भलाई उसकी रोगी की इच्छाओ मे नही बलकि चिकित्सक के आदेश का पालन करने मे है।
ईश्वरी शिक्षाओ, क़ुरआनी छंदो तथा पवित्र कथनो मे ईश्वर दूतो, निर्दोष नेताओ तथा विद्वानो को भी चिकित्सक बताया गया है।
दोषी को अपने पापो की चिकित्सा के लिए इन दयालु चिकित्सको से संपर्क, उनकी प्रस्तुत मांगो को स्वीकार, अपने स्वास्थय की ओर लौटने की आशा करना चाहिए, जो पश्चाताप को छोड़कर प्राप्त नही होती।
[1] इद्दतुद्दाई, पेज 37, अलबालुल अव्वल फ़ीहिस्से अलद्दुआ; इरशादुल क़ोलूब, भाग 1, पेज 153, प्रार्थना मे अध्याय 47; बिहारुल अनवार, भाग 81, पेज 61, हदीस 12