पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
हमने इस के पूर्व लेख के अंत मे अब्दुल अज़ीम हसनी ने जो इमाम जवाद से रिवायत उद्धरण की उसको बयान किया इस लेख मे इस बात को प्रस्तुत किया जा रहा है क्या पापी अपने पापो से पश्चाताप के समय को निर्धारित कर सकता है या नही?
पापी को पश्चाताप एवं पछतावे के लिए समय निर्धारित तथा हक़ की ओर जाने वाले कार्यक्रमो को भविष्य पर स्थगित करने और दर्द एवं रोग का इलाज वृद्धा अवस्था मे स्वयं को ख़ुशखबरी देने का हक़ नही है।
पापी के लिए क्या गारंटी है कि वह भविष्य को देख रहा है? एक युवा व्यक्ति के साथ कौन प्रतिबद्ध हुआ है कि जवानी को बीताते हुए वृद्धा अवस्था मे पहुँचे? हक़ से लापरवाही, पापो से संक्रमित, तथा वासनाओ मे ड़ूबे होने के कारण अचानक मौत ना आए?
कितने पापीयो ने पश्चाताप एवं पछतावे को भविष्य पर स्थगित किया परन्तु नही पहुँच सके।
कितने युवा लोगो -जो पापो से संक्रमित है- का कहना हैः कि जब तक जवान है तब तक वासना के आनंद से लाभ उठाये और बुढ़ापे मे पश्चाताप करे, परन्तु मौत ने किशोर अवस्था मे ही उनका शिकार कर लिया।
जारी