हमारा अक़ीदह है कि पैग़म्बरों और रसूलों का का सब से बड़ा इफ़्तेख़ार यह था कि वह अल्लाह के मुती व फ़रमाँ बरदार बन्दे रहे। इसी वजह से हम हर रोज़ अपनी नमाज़ों में पैग़म्बरे इसलाम के बारे में इस जुम्ले की तकरार करते है “व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु। ” यानी मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (स.)अल्लाह के रसूल और उसके बन्दे हैं।
हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह के पैग़म्बरों में से न किसी ने भी उलूहिय्यत (अपने ख़ुदा होने)का दावा किया और न ही लोगों को अपनी इबादत कर ने के लिए कहा। “मा काना लिबशरिन अन युतियहु अल्लाहु अलकिताबा व अलहुक्मा व अन्नबूव्वता सुम्मा यक़ूला लिन्नासि कूनू इबादन ली मिन दूनि अल्लाह ”।[1] यानी यह किसी इँसान को ज़ेबा नही देता कि अल्लाह उसको आसमानी किताब, हिकमत और नबूवत अता करे और वह लोगों से कहे कि अल्लाह को छोड़ कर मेरी इबादत करो।
यहाँ तक कि हज़रत ईसा (अ.)ने भी लोगों को अपनी इबादत के लिए नही कहा वह हमेशा अपने आप को अल्लाह का बन्दा और उस का रसूल कहते रहे। “लन यस्तनकिफ़ा अलमसीहु अन यकूना अब्दन लिल्लाहि व ला अलमलाइकतु अलमुक़र्रबूना”[2] यानी न हज़रत ईसा (अ.)ने अल्लाह के बन्दे होने से इँकार किया और न ही उस के मुक़र्रब फ़रिश्ते उसके बन्दे होने से इँकार कर ते हैं।
ईसाईयों की आज की तारीख़ ख़ुद इस बात की गवाही दे रही है “तसलीस” का मस्ला ( तीन ख़ुदाओं का अक़ीदह)पहली सदी ईसवी में नही पाया जाता था यह फ़िक्र बाद में पैदा हुई।
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