पुस्तक का नामः कुमैल की प्रार्थना का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
हमने इस के पूर्व लेख मे इस बात का वर्णन किया था कि मानव के लिए तीन स्थितिया (प्रथमः अनुपस्थिति की हालत जिसे अस्तित्व प्रदान करने की आवश्यकता है। द्वितीयः उपस्थिती तथा अस्तित्व की हालत जिसे बाक़ी रहने के कारणो की आवश्यकता है। तृतीयः क़यामत (पुनरूत्थान) मे उपस्थिति की हालत जहा उसे माफ़ी और क्षमा की आवश्यकता है)) और ये तीनो स्थितिया तीन नामो (अल्लाह, रहमान और रहीम) मे समाहित है। इस लेख मे अंर्तदृष्टि रखने वाले और दूसरे लोगो के कथन का वर्णन किया गया है।
अंर्तदृष्टि रखने वाले, चातुर्य ज्ञान (दिरायत) वाले तथा हक़ीक़त के आशिक़ो का कथन हैः मनुष्य के हृदय आत्मा तथा श्वास है, नफ़्स को वासना और एहसान, हृदय को परिचय और इमान, आत्मा को कृपा और इच्छा के अनुरोध तीनो इन नामो मे से एक नाम से अपना हिस्सा प्राप्त करते है। हृदय (अल्लाह) नाम से मारफ़त और इमान प्राप्त करता है और (रहमान) नाम से नफ़्स को एहसान और जीविका पहुँचती है, तथा (रहीम) नाम के प्रभाव से दया मिलती है।
जिस व्यक्ति की आत्मा और दिल इन तीन धन्य अवधारणाओ मे डूब जाए, तो ईश्वर के अलावा दूसरे सभी देवी देवताओ (मूर्तियो) की भृत्यभाव और पूजा से छुटकारा मिल जाएगा, ईश्वर अपने दासो को माफ़ तथा क्षमा का सोत्र है सभी को अपनी दया और करूणा का लाभ देगा।