पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
इमाम अली अलैहिस्सलाम ने उस व्यक्ति के बारे मे कहा जिसने ज़बान से “असतग़फ़ेरूल्लाह” कहा था।
हे मानव! तेरी मा तेरे शोक मे बैठे, क्या तू जानता है कि पश्चाताप क्या है? ध्यान रहे पश्चाताप इल्लीयीन का दर्जा है, जो इन छः चीज़ो के मिश्रण से समपन्न होता है।
1- अपने अतीत पर शर्मिंदा होना तथा उस पर पछताना।
2- दूबारा पाप न करने का पक्का इरादा करना।
3- लोगो के होक़ूक़ (अधिकारो) का भुगतान करना।
4- छूटे हुए कर्तव्यो को पूरा करना।
5- पापो के माध्यम से बनने वाले मांस को इतना पिघला देना कि हड्डियो पर मांस न रह जाए, तथा फ़िर पूजा पाठ के माध्यम से उन पर मांस आए।
6- शरीर को आज्ञाकारीता की पीड़ा से पीडित करना जिस प्रकार पापो से आनंद प्राप्त किया है।
इसलिए इन छः चरणो के पश्चात “असतग़फ़ेरूल्लाह” कहना।[1]
हाँ, पश्चाताप करने वाले को इस प्रकार पश्चाताप करना चाहिए, पापो को त्यागने का पक्का इरादा कर ले, पापो की ओर पलट कर जाने का इरादा सदैव के लिए अपने हृदय से निकाल दे, दूसरी तीसरी बार पश्चाताप की आशा मे पापो को न करे, क्योकि इस प्रकार की आशा निसंदेह रूप से शैतानी आशा तथा मसख़रा करने वाली हालत है।
जारी
[1] नहजुल बलाग़ा, हिकमत 417; वसाएलुश्शिया, भाग 16, पेज 77, अध्याय 87, हदीस 21028; बिहारुल अनवार, भाग 6, पेज 36, अध्याय 20, हदीस 59