क्रांति के सर्वोच्च नेता ने मुसल्सल प्रयास का लाज़िमा अंतरिक्ष आशा,अच्छे गुमान और देश के लिऐ आशावाद और निश्चित संभावनाओं को बताया और कहा:लोगों के दिमाग में संदेह बनाना और दिलों मे निराशा डालना तथा अलगाव की दावत देना, आलस और बेरोजगारी कभी भी महाकाव्य (हिमासह) नहीं बना सकता.
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी (IQNA), सर्वोच्च नेता के कार्यालय की जानकारी डेटाबेस के अनुसार, दोनो जहानों की चयनिच महिला हज़रत फ़ातिमा सिद्दीक़ऐ कुब्रा स.अ. और उनके ग्रेट बेटे इमाम ख़ुमैनी (र.) के जन्म की सालगिरह के अवसर पर हुसैनियऐ इमाम ख़ुमैनी (र) फातिमी गुणों और फ़ज़ाएल की मनभावन सुगंध से भर गया
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता हज़रत आयतुल्ला उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने आज अहले बैत इस्मत व तहारत अलैहिमुस्सलाम के काव्य और ज़ाकरीन की सभा में महिला दिवस के हिसाब से महिलाओं की स्थित और स्थान के सम्मान की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि ख़दावंदे मुतआल के निकट आध्यात्मिक चरणों को तय करने और एकाकी और सामूहिक अधिकार के शामिल होने में स्त्री और पुरुष के बीच कोई अंतर नहीं है और महिलाओं के साथ सम्मान से पेश आना चाहिए.
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता महिला के बारे में पश्चिम की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि पश्चिमी भौतिक संस्कृति ने महिला के बारे में जो व्यवहार रवा रखा, वह एक बड़ा और गैर माफी पाप है जिसके नुकसान की क्षतिपूर्ति नहीं की सकती.
आपने कहा कि पश्चिमी सभ्यता जिसे महिलाओं की स्वतंत्रता का नाम देती है वह वास्तव में क़ैद है, वरिष्ठ नेता ने कहा कि पश्चिमी सभ्यता ने महिलाओं को जलवा गरी और पुरुषों की लज़्ज़त के हुसूल का स्रोत बना कर उन की महिमा को पामाल किया है.
हज़रत आयतुल्लाह उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि लगातार संघर्ष विकास और प्रगति के लिए हर देश और समाज की जरूरत है और यह संघर्ष निरंतर निशात, शौक और उम्मीद के रास्ते से गुजरता है और इस संबंध में मारेफ़त को बढ़ाने और ज्ञान, आशा और सुदृढ़ विश्वास के बीज बोने में कवियों और ज़ाकरीन की महत्वपूर्ण भूमिका है.
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने इस बैठक में बल देते हुए कहा कि कोई यह कल्पना न करे कि वह अहले बैत (अ) के पेरू कारों की भावना को प्रोत्साहित करके अलग करने में सफल हो जाएंगे. विरोध और कलह आंतरिक मसलहत के खिलाफ है.
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा: मैं ने कई बार शायरों और ज़ाकरीन से सिफारिश की है कि वह जश्न के वातावरण को अज़ादारी में परिवर्तित न करें, दुख पढ़ना अच्छी प्रक्रिया है, लेकिन यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि अइम्मऐ मासूमीन अलैहिस्सलाम के साथ लोगों की भावनाऐं केवल अज़ादारी और रोने में निर्भर नहीं हैं.
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने बल देकर कहा रज़म और जिहाद यह है कि संदेह और सूऐ ज़न के बजाय उम्मीद का वातावरण स्थापित करें.
वरिष्ठ इस्लामी नेता के खिताब से पहले कुछ प्रशंसक हज़रात ने श्री फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शान मुबारक में कसीदे भी प्रस्तुत किए.
source : http://iqna.ir/