पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
इस के पहले लेख मे इस बात का स्पष्टीकरण किया गया था कि यदि पूरी शर्तो के साथ पश्चाताप सम्पन्न हो जाए तो तो निश्चित रूप से मनुष्य की आत्मा भी पवित्र हो जाती है और नफ़्स मे पवित्रता तथा हृदय मे सफ़ा पैदा हो जाती है, तथा मनुष्य के अंगो से पापो के प्रभाव समाप्त हो जाते है। इस लेख मे भी शेष परिणाम का अध्ययन करेंगे।
पश्चाताप मानव हालत मे क्रांति तथा हृदय और जान मे परिवर्तन का नाम है, इस क्रांति के द्वारा मनुष्य पापो का कम इच्छुक होता है तथा परमेश्वर से एक स्थिर संपर्क पैदा कर लेता है।
पश्चाताप एक नए जीवन का आरम्भ होती है, आध्यात्मिक और मलाकूती जीवन जिसमे मनुष्य का हृदय भगवान को स्वीकारता, मनुष्य का नफ़्स अच्छाइयो को स्वीकारता है तथा ज़ाहिर और बातिन सभी प्रकार के पापो की गंदगी से पवित्र हो जाता है।
पश्चाताप, अर्थात नफ़्स की इच्छाओ के दीपक को बुझाना और ईश्वर की इच्छानुसार अपने क़दम उठाना।
पश्चाताप, अर्थात अपने भीतर छुपे हुए राक्षस के शासन को समाप्त करना तथा अपने नफ़्स के ऊपर ईश्वर के शासन का मार्ग प्रशस्त करना।