पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
एक पड़ौसी को अपने दूसरे पड़ौसी का दयालु भाई के समान ध्यान रखना चाहिए, संकट मे उसकी सहायता करे, उसकी समस्याओ का समाधान करे, युगी घटनाओ तथा बिगाड़ सुधार मे उसका सहयोग करे, किन्तु अबू बसीर का पड़ौसी ऐसा नही था, उसको बनि अब्बास के शासको से अत्यधिक वेतन मिलता था इसी प्रकार उसने बहुत धन समपत्ति प्राप्त कर ली थी। अबू बसीर का कथन हैः कि हमारे पड़ौसी के पास कुच्छ नांचने गाने वाली दासीया (कनीज़े) थी और सदैव वियर्थ (लह्व वलिब) एंव शराब ख़ोरी की बैठको का आयोजन होता था जिसमे उसके दूसरे मित्र भी सम्मिलित हुआ करते थे, मै चूकि एहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की शिक्षाओ से प्रशिक्षित था इसलिए मै उसकी इन हरकतो से परेशान था, मेरे दिमाग़ मे परेशानी रहती थी मेरे लिए बहुत कठिन था, मैने कई बार उससे विनम्रता से कहा परन्तु उसने कोई ध्यान नही दिया, लेकिन मैने अम्र बिलमारूफ़ और नही अनिलमुनकर करने मे कोई लापरवाही नही की, अचानक एक दिन मेरे पास आकर वह कहता हैः मै शैतान के जाल मे फंसा हुआ हूँ, यदि मेरी स्थिति को अपने मौला इमाम सादिक़ से बयान करे आशा है कि वह ध्यान देंगे और मुझ पर एक मसीहाई नज़र डाल कर मुझे इस गंदगी और भ्रष्टाचार से निकाल देंगे।
जारी