पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
कार्यक्रम के अनुसार क़ाफ़ला निकल पड़ा, इब्राहीम जैसे जेबकतरे के साथ होने पर दूसरे तीर्थ यात्री आश्चर्य कर रहे थे, परन्तु किसी ने उसके समबंध मे प्रश्न करने का साहस नही किया।
हमारी गाड़ी कच्चे रोड से गुज़रते हुए जिस समय ज़ैदर नामी स्थान पर पहुंची जो कि एक खतरनाक स्थान था तथा उस स्थान पर अधिकांश तीर्थ यात्रीयो पर डाकू हमला करते थे देखा कि डाकूऔ ने रास्ता बंद करके हमारी गाडी के सामने आकर खडे हो गए है फिर एक डाकू हमारी गाड़ी मे घुसा और सारे यात्रियो के चेतावनी दीः जो कुछ भी किसी के पास है वह इस थैली मे डाल दे तथा कोई हम से उलझने का प्रयास ना करे अन्यथा उसे मार डालूंगा।
वह सारे यात्री एंव ड्राईवर के पैसे लेकर चलता बना।
गाड़ी दुबारा चल पड़ी और एक चाय के होटल पर जाकर रुकी, यात्री गाड़ी से उतर कर ग़म व खेद मे एक दूसरे के समीप बैठ गए, ड्राईवर सबसे अधिक निराश था, वह कहता थाः मेरे पास ना यह कि मेरे खर्च के लिए पैसे नही रहे बल्कि पैट्रोल के लिए भी पैसे भी नही है, अब कैसे मशहद पहुंचा जाएगा, यह कह कर वह रोने लगा, इस आश्चर्य और संकट की अवस्था मे उस इब्राहीम जेबकतरे ने चालक (ड्राईवर) से कहाः वह डाकू तुम्हारे कितने पैसे ले गया है? चालक ने उत्तर मे एक रक़म बताइ कि मेरे इतने पैसे गए है, इब्राहीम ने उसको बताई हुई रक़म के बराबर पैसे दे दिए, तत्पश्चात उसी प्रकार सभी यात्रीयो के जितने जितने पैसे चोरी हुए थे सब से पूछ कर उनको दे दिए, अंत मे उसके पास बीस रियाल शेष बचे, और कहा कि यह पैसे मेरे है, जो चोरी हुए थे, सभी ने आश्चर्य से प्रश्न कियाः यह सारे पैसे तुम्हारे पास कहाँ से आए? उसने उत्तर दियाः जिस समय उस डाकू ने तुम सबके पैसे ले लिए और संतुष्ठ होकर वापस जाने लगा, तो मैने बड़ी सावधानी से उसके पैसे मार दिए, और फ़िर गाड़ी चल पड़ी, और हम इस स्थान तक पहुंच गए है, यह सभी पैसे आप ही लोगो के है।
जारी