पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
क़ाफ़िला सालार कहता हैः मै ज़ोर ज़ोर से रोने लगा, यह देख इब्राहीम ने मुझ से प्रश्न कियाः तुम्हारे पैसे तो वापस मिल गए, अब क्यो रोते हो?! मैने अपना स्वप्न उसको सुनाया जो तीन दिनो तक देखता रहा था और मैने कहा मुझे स्वप्न का फ़लसफ़ा समझ मे नही आ रहा था, परन्तु अब समझ आ गया कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के नौता का क्या कारण था, इमाम अलैहिस्सलाम ने तुम्हारे द्वारा हम से इस संकट को दूर कर दिया है।
यह सुनकर इब्राहीम के हालत परिवर्तित हो गई, उसके भीतर एक विचित्र क्रांत्रि ने जन्म लिया वह ज़ोर ज़ोर से रोना लगा यहा तक कि सलाम नामी पहाड़ी आ गई कि जहॉ से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का पवित्र रोज़े का दर्शन होने लगता है, उस स्थान पर पहुंच कर इब्राहीम ने कहाः मेरी गर्दन मे ज़ंजीर बांध दी जाए और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के दरबार मे इसी प्रकार ले जाया जाए, जैसे जैसे वह कहता रहा हम लोग करते गए, जितने समय तक हम लोग मशहद मे रहे उसकी यही हालत रही, वास्तव मे विचित्र रूप से पश्चाताप किया, उस वृद्धा के पैसे इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की समाधी मे डाल दिए, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को प्रिय के दिन के लिए शफ़ी बनाया ताकि उसके पाप क्षमा कर दिए जाए, सभी तीर्थ यात्री उसकी हालत पर रश्क कर रहे थे, हमारी यात्रा भलि प्रकार समाप्त हुई, सभी लोग उरूमिया वापस चले गए किन्तु वह पश्चातापी उसी स्थान पर रह गाया।