पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
स्वर्गीय फ़ैज काशानी, जो कि स्वयं फ़ैज और ज्ञान का सोत्र थे वह अपनी महान पुस्तक मोहज्जतुल बैज़ा मै नक़ल करते हैः
एक शराबी व्यक्ति था जिसके यहा पाप एंव अपराध की बैठको का आयोजन हुआ करता था, एक दिन उसने अपने मित्रो को शराब एंव व्यर्थ की गपशप करने हेतु दावत दी और अपने ग़ुलाम (सेवक) को चार दिरहम दिए ताकि वह बाज़ार से कुछ जलपान हेतु सामान खरीद कर लाए।
ग़ुलाम रास्ते मे चला जा रहा था कि उसने देखा अम्मार के पुत्र मनसूर की बैठक हो रही है, उसने विचार किया कि देखू अम्मार के पुत्र मनसूर क्या कह रहे है? तो उसने सुना कि अम्मार अपने समीप बैठने वालो से कुछ मांग रहे है और कह रहे है कि जो कौन है जो मुझे चार दिरहम प्रदान करे ताकि मै उसके लिए चार दुआए करूं? गुलाम ने विचार किया कि उन पाप एंव अपराध करने वालो के लिए जलपान करने हेतु खरीदारी करने से अच्छा है कि मै यह चार दिरहम मनसूर को दे दूं ताकि मेरे हक़ मे चार दुआए कर दे।