पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
इसके पूर्व लेख मे इस बात की ओर संकेत किया गया था कि एक जवान पैगम्बर से मिलने का इच्छुक था जब पैगम्बर को इस बात का ज्ञान हुआ तो उसको मस्जिद मे बुलवा लिया वह जवान पैगम्बर से कहता है कि मेरे पाप बहुत बडे है पैगम्बर ने उसको समझाया परन्तु उसकी समझ मे नही आया तो पैगम्बर ने क्रोधित निगाहो से उससे पूछा क्या तेरे पाप अधिक बडे है या तेरा ईश्वर अधिक बडा है। इस लेख मे इस बात का अध्यन करेंगे कि जब उस व्यक्ति की समझ मे आगया तो उसने क्या किया।
यह सुनकर वह जवान सजदे मे गिर गया और कहने लगाः हे अल्लाह के रसूल ! मेरा ईश्वर पवित्र है तथा उस से बड़ा तो कोई भी नही है, मेरा ईश्वर तो महानो से भी अधिक महान है, उस समय पैग़म्बर ने कहाः क्या बड़े पापो को ईश्वर के अलावा भी कोई दूसरा क्षमा कर सकता है? जवान ने उत्तर दियाः हे अल्लाह के रसूल नही ! ईश्वर की सौगंध नही और उसके पश्चात वह चुप हो गया।
पैग़म्बर ने कहाः हे जवान वाय हो तुझ पर क्या तू मेरे सामने अपने पापो मे से किसी एक पाप का वर्णन कर सकता है? उसने उत्तर दियाः क्यो नही, मै सात वर्षो से मुर्दो को क़बरो से बाहर निकाल कर उनका कफ़न चोरी कर लेता हूँ!
अंसार क़बीले की एक लड़की की मृत्यु हुई, जब लोग उसका अंतिम संस्कार करके वापस लौट आए, तो मैने रात्रि मे जाकर उसको क़ब्र से बाहर निकाल कर उसका कफ़न चुरा लिया तथा उसको निवस्त्र अवस्था मे ही क़ब्र मे छौड़ दिया, जब मै वापस लौट रहा था तो शैतान ने मेरी काम वासना को भड़काया और उसने मुझे अपने जाल मे इस प्रकार फंसा लिया कि मेरा नफ़्स ग़ालिब आ गया और मैने वापस लौट कर मै वह कार्य कर बैठा जो मुझे नही करना चाहिए था !!
जारी