![यज़ीद रियाही के पुत्र हुर की पश्चाताप 2 यज़ीद रियाही के पुत्र हुर की पश्चाताप 2](https://erfan.ir/system/assets/imgArticle/2013/09/46015_61972_5.jpeg)
पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
इसके पहले वाले लेख मे बताया था कि हुर किसी का अंधा अनुकरण नही करता था इस लेख मे आप इस बात का अध्ययन करेंगे कि हुर ने आदेशपत्र लेने के बाद क्या किया
सुबह के समय हुर की सरदारी मे एक हजार की सेना कूफे से निकल पड़ी, अरबिसतान के जंगलो के मार्ग का च्यन किया गर्मी के आलम मे एक दिन दोपहर को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से भेट हो गई।
हुर एंव उसकी सेना प्यासी थी तथा उनके अश्व भी प्यासे थे और उस क्षेत्र मे कही कही पानी भी नही मिलता था ऐसे अवसर पर यदि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पानी न पीलाते तो वह और उसकी सेना स्वयं मर जाते तथा युद्ध किए बिना ही एक सफलता प्राप्त हो जाती, किन्तु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ऐसा नही किया और दुश्मन से शत्रुता करने के स्थान पर उसके साथ नेकी की तथा अपने जवानो को आदेश दियाः
हुर प्यासा है उसको पानी पिलाओ, उसकी सेना भी प्यासी है उसको भी पानी पिलाओ तथा उनके अश्व भी प्यासे है उनकी भी प्यास बुझाओ। जवानो ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आदेश का पालन किया, हुर एंव उसकी सेना यहा तक कि उनके अश्वो की भी प्यास बुझाई।
उधर नमाज़ का समय हो गया मोअज़्ज़िन ने आज़ान कही, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मोअज़्ज़िन से कहाः अक़ामत कहो, उसने अक़ामत कही, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हुर से कहाः क्या तुम अपनी सेना के साथ नमाज़ पढ़ोगे? हुर ने उत्तर दियाः नही, मै तो आपके साथ नमाज़ पढ़ूंगा!
जारी