पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
परन्तु हुर की सेना की यह नमाज़ कूफ़े वालो के विरोधाभास एंव टकराव की प्रतिबिंबित कर रही थी क्योकि एक और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ नमाज़ पढ़ रहे है और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के नेतृत्व को स्वीकार कर रहे है, दूसरी ओर यज़ीद की आज्ञाकारिता कर रहे है और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की हत्या करने के लिए तैयार है।
कूफ़े वालो ने असर की नमाज़ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ पढ़ी, नमाज़ मुसलमान होने तथा पैग़म्बरे इसलाम के पालन का संकेत है।
कूफ़ीयो ने नमाज़ पढ़ी, क्योकि मुसलमान थे, क्योकि पैगम्बरे इसलाम के आज्ञाकारी थे, परन्तु रसूल के पुत्र, रसूल के खलीफ़ा तथा रसूले अकरम की अंतिम निशानी की हत्या कर दी! इसका क्या अर्थ? क्या यह विरोधाभास एंव टकराव दूसरो लोगो मे भी पाया जाता है?
अस्र की नमाज़ के पश्चात इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कूफ़े के लोगो को समबोधित करते हुए कहाः
“ईश्वर से डरो, और यह जान लो कि हक़ किधर है ताकि ईश्वर की खुशी प्राप्त कर सको हम पैगम्बर के परिवार वाले है, शासन करना हमारा हक़ है ना कि ज़ालिम और अत्याचारी का हक़ है, यदि हक़ नही पहचानते और हमे पत्र लिख कर उस पर वफ़ा नही करते तो मुझे तुम से कोई मतलब नही है, मै वापस चला जाता हूँ”।