पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का अंतिम निमंत्रण उस समय था जब आप अकेले बचे थे जब आपके सारे साथी और परिवार वाले शहीद हो गए तथा कोई नही था, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एक गुहार लगाकर कहाः क्या कोई मेरा सहायक है? क्या कोई है जो पैग़म्बर के परिवार वालो का संरक्षण करे?
الا ناصِرٌ يَنْصُرُنا ؟ اَما مِن ذابٍّ يَذُبُّ عَنْ حَرَمِ رَسُول اللهِ ؟
अला नासेरुन यनसोरोना? अमा मिन ज़ाब्बिन यज़ुब्बो अन हरेमे रसूलल्लाह?
इस गुहार ने हर्से अनसारी के पुत्र साअद तथा उसके भाई अबुल होतूफ़ को ख़ाबे ग़फ़लत से जगा दिया, इन दोनो का समबंध अनसार के ख़ज़रज गोत्र (क़बीले) से था, परन्तु इन्हे हज़रत मुहम्मद के परिवार वालो से कोई काम नही था दोनो अली अलैहिस्सलाम के शत्रुओ मे से थे, नहरवान के युद्ध मे इनका नारा थाः “शासन का अधिकार केवल ईश्वर को है पापी को शासन करने का कोई अधिकार नही है”।
क्या हुसैन पापी है लेकिन यज़ीद पापी नही है?
यह दोनो भाई उमरे सआद की सेना मे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से युद्ध करने तथा उनका क़त्ल करने हेतु कूफ़े से कर्बला आए थे, दस मोहर्रम को जब युद्ध आरम्भ हुआ तो यह दोनो भाई यज़ीद की सेना मे थे, युद्ध आरम्भ हो गया और रक्तपात होने लगा, लेकिन यह दोनो भाई यज़ीद की सेना मे थे, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अकेले रह गए ये लोग यज़ीद की सेना मे थे, परन्तु जिस समय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने गुहार लगाई तो यह दोनो खाबे ग़फ़लत से जागकर स्वयं से कहने लगेः हुसैन पैग़म्बर के पुत्र है, हम प्रलय के दिन उनके नाना की शिफ़ाअत के उम्मीदवार है, यह विचार कर दोनो यज़ीद की सेना से निकल आए तथा हुसैनी बन गए, जैसे ही हुसैन अलैहिस्सलाम की शरण मे आए तुरंत ही यज़ीद की सेना पर आक्रमण कर दिया कुच्छ लोगो को घायल किया तथा कुच्छ लोगो को नर्क तक पहुंचाया कर स्वयं ने शहादत प्राप्त की।[1]
जारी