पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
वह कमीज़ झूठे रक्त से रंगीन थी, परन्तु यह कमीज़ एक चमत्कार है, देखिए तो सही की सच और झूठ मे कितना अंतर है
भाईयो का क़ाफिला तीसरी बार मिस्र से कनआन की ओर चल पड़ा।
उधर आसमानी मोबाइल और आसमानी नवेद ने इस क़ाफिले की खबर हजरत याक़ूब अलैहिस्सलाम तक पहुंचा दी, हज़रत याक़ूब ने अपने पास बैठे लोगो से कहाः
मै युसुफ़ की खुशबू महसूस कर रहा हूं और उसको देखने की प्रतीक्षा कर रहा हू, अगर तुम मेरी बात पर विश्वास नही करोंगे।
उपस्थित लोगो ने हजरत याक़ूब को समबोधित करते हुए कहाः अभी तक तुमने युसुफ़ को नही भुलाया, उसी पुराने इश्क़ मे गिरफ्तार हो
हजरत याक़ूब ने आखो को बंद कर लिया तथा कोई उत्तर नही दिया, क्योकि उपस्थित लोगो की फ़िक्रे उन हक़ीक़तो को समझने से असमर्थ थी।
थोड़ी देर बीतने के बाद हजरत याक़ूब नबी की बात सच हो गई, अर्थात जिस क़ाफ़िले की खुशखबरी दी गई थी वह कनआन आ पहुंचा, और हजरत युसुफ़ के मिलने का समाचार सुनाया, युसुफ़ की कमीज़ को पिता के चेहरे पर डाला ही था कि याक़ूब नबी की आखे ठीक हो गई, उस समय याक़ूब नबी ने अपने पुत्रो की ओर रुख करके कहाः क्या मैने तुम से नही कहा था कि मै ईश्वर की ओर से ऐसी चीज़ो के बारे मे ज्ञान रखता हूं जो तुम नही जानते, इन पापीयो की सज़ा का समय आ गया था, क्योकि पुत्रो का पाप साबित हो चुका था।
परन्तु पुत्रो ने पिता से दया एंव कृपा की विनती की, और कहा कि आप ईश्वर से भी हमारे पापो को क्षमा करने की विनती करे।
हजरत याक़ूब नबी अलैहिस्सलाम ने क्षमा कर दिया और वचन दिया कि वह अपने वचन को पूरा करेंगे।[1]
जी हा याकूब नबी के पुत्रो ने ईश्वर के दरबार मे अपने पापो से पश्चाताप किया और अपने भाई युसुफ़ और अपने पिता से क्षमा की विनती की, हजरत युसुफ़ ने भी उनको क्षमा किया और याक़ूब नबी ने भी क्षमा कर दिया, और ईश्वर ने उनपर अपनी दया एंव कृपा का द्वार खोल दिया।