Hindi
Wednesday 27th of November 2024
0
نفر 0

रोज़ा और रमज़ान का मुबारक महीना

क़ुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत नंबर १८३ में कहा गया हैः हे ईमान लाने वालो, रोज़ा तुम पर वाजिब कर दिया गया है जैसाकि तुम से पहले वालों के लिए अनिवार्य किया गया था ताकि तुम पापों से बचने वाले बन जाओ।

 

 

 

 


यह आयत, क़ुरआने मजीद की उन महत्वपूर्ण आयतों में से है जिस में रोज़े का वर्णन किया गया है। सब से पहले हम इस आयत के पहले भाग पर चर्चा करेंगे जिसमें कहा गया है हे ईमान लाने वालो! हे ईमान लाने वालो से आशय क्या है ? जिन लोगों के लिए रोज़ा वाजिब अर्थात अनिवार्य किया गया है उन्हें संबोधित करने की यह कौन सी शैली है ? क्या यह कर्तव्य केवल ईमान लाने वालों पर अनिवार्य है?

धर्म शास्त्र और इस्लामी नियमों के अनुसार धार्मिक कर्तव्य बालिग़ों अर्थात व्यस्क माने जाने वाले या विशेष आयु तक पहुंचने वाले सभी लोगों के लिए अनिवार्य होते हैं और उन सब का कर्तव्य है कि अपने इस प्रकार के कर्तव्यों का ज्ञान होते ही उनका पालन करें और यह नियम, धर्म का पालन करने वालों से ही विशेष नहीं है बल्कि सारे मनुष्यों के लिए है। और इस विषय की पुष्टि क़ुरआने मजीद की बहुत सी आयतें और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के कथनों से होती है।


यह एक वास्तविकता है कि रोज़े बहुत से आध्यात्मिक लाभ हैं तथा इसके साथ ही शरीर व स्वास्थ्य के लिए भी रोज़ा अत्यन्त लाभदायक है और यह वह तथ्य है जो विभिन्न प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है और यह सारे लाभ रोज़ा रखने वाले को प्राप्त होते हैं भले ही वह ईमान रखने वालों में से न हो।

हम सब ने यह सुना है कि अन्य धर्मों से संबंध रखने वाले लोग भी रोज़े की भांति भूखे रह कर विभिन्न रोगों का उपचार करते हैं। रोज़े के आध्यात्मिक, मानवीय, धार्मिक व मानसिक लाभ भी है और मनुष्य के भविष्य पर उसका गहरा प्रभाव पड़ता है और इससे मनुष्य परिपूर्णता तक पहुंचता है और ईश्वर से निकट होता है किंतु यह वह लाभ हैं जो सच्ची भावना और ईश्वर पर आस्था के साथ ही प्राप्त होते हैं और रोज़े के जो आध्यात्मिक लाभ हैं वह ईश्वर पर आस्था के कारण दोगुना हो जाते हैं।

धार्मिक कथनों और ग्रंथों में इस वास्तविकता पर बल दिया गया है। इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम ने भी अपने एक कथन में इस वास्तविकता की ओर संकेत करते हुए कहा हैः रमज़ान के महीने के रोज़े एसा कर्तव्य हैं जो हर वर्ष अनिवार्य होते हैं और रोज़ा रखने के लिए सब से पहला क़दम मन में सुदृढ़ संकल्प है। रोज़ा रखने वाले को सच्ची नीयत के साथ खाने पीने से परहेज़ करना चाहिए और उसके शरीर के हर अंग का रोज़ा होना चाहिए और धार्मिक वर्जनाओं से दूर रहना चाहिए और मनुष्य को चाहिए कि इस मार्ग से ईश्वर की निकटता का प्रयास करे यदि किसी ने ऐसा किया तो उसने अपने कर्तव्य का पालन कर लिया।

इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने "हे ईमान लाने वालो! " के कुरआनी वाक्य को स्पष्ट

करते हुए कहा है ईश्वर की पुकार में जो आनन्द है वह उपासना की थकन को मिटा देता है। इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम के इस कथन से यह आशय है कि मनुष्य जब यह सुनता है कि कुरआन उसे संबोधित कर रहा है तो इसका आनन्द उपासनाओं और कर्तव्य पालन से होने वाली थकन ख़त्म कर देता है। इसी प्रकार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जब भी यह सुनों कि ईश्वर यह कह रहा है हे ईमान लाने वालो तो फिर उसे ध्यान से सुनों क्योंकि निश्चित रूप से वह ऐसी बात होगी जिसमें तुम्हें कुछ कामों का आदेश दिया गया होगा या कुछ कामों से रोका गया होगा।

वास्तव में क़ुरआन पढ़ने वाला जब इस वाक्य पर पहुंचता है कि हे ईमान लाने वालो! तो उसे

एक प्रकार के सम्मान व आनन्द का आभास होता है और उसका जुड़ाव आयत से अधिक हो जाता है जिसके परिणाम में वह क़ुरआन की आयतों में अधिक चिंतन व विचार करता है और उसकी वास्तिवकताओं तक पहुंच जाता है जिससे क़ुरआन के मूल्य उसके जीवन और व्यवहार में स्पष्ट हो जाते हैं।
.........

 


source : www.sibtayn.com
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

क़ुरआन
आदर्श जीवन शैली-६
चेहलुम के दिन की अहमियत और आमाल
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलमा का जन्म ...
म्यांमार अभियान, भारत और ...
मोमिन की नजात
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के वालदैन
शेख़ शलतूत का फ़तवा
ख़ुत्बाए फ़ातेहे शाम जनाबे ज़ैनब ...

 
user comment