स्वास्थ्य ऐसे कामों और गतिविधियों को कहते हैं कि जो किसी एक व्यक्ति या समाज की शक्ति और स्वास्थ्य एवं ऊर्जा में वृद्धि के लिए अंजाम दी जाती हैं। इन गतिविधियों में वह समस्त जानकारियां और शैलियां शामिल होती हैं जो व्यक्ति एवं समाज के स्वास्थ्य की सुरक्षा में प्रभावी होती हैं। निःसंदेह, हर समाज के धार्मिक विश्वास, समाज के नागरिकों के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस्लाम धर्म में मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को बहुत महत्व दिया गया है।
स्वास्थ्यकर बिंदुओं का ध्यान रखने के लिए उसके भौतिक एवं आध्यात्मिक प्रभावों पर बल दिया गया है। धर्म में गहरी आस्था रखने वालों को स्वास्थ्यकर से संबंधित गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इतना बताना काफ़ी होगा कि इससे ईश्वर का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है और उसकी अनुंकपाओं का पात्र बना जा सकता है। क़ुराने मजीद में साफ़ एवं स्वच्छ जैसे शब्दों का अनेक स्थानों पर प्रयोग है, जिससे इस्लामी शिक्षाओं में शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के महत्व का पता चलता है। क्योंकि शरीर मन का आधार होता है और उसके स्वास्थ्य का इंसान के मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है, इसीलिए इस्लाम की अनेक शिक्षाओं में कि जो दिशानिर्देशों के रूप में हैं, शरीर के स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्यकर पर काफ़ी ध्यान दिया गया है।
खाना खाने की शैली का मानव स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। क़ुरान ने भी इसकी ओर ध्यान दिया है और खाने पीने में संतुलन बनाए रखने की सिफ़ारिश की गई है। सूरए आराफ़ की 31वीं आयत में उल्लेख है, “खाओ और पिओ लेकिन बर्बाद मत करो, ईश्वर बर्बाद एवं व्यर्थ करने वालों को पसंद नहीं करता।”
क़ुरान की यह सिफ़ारिश, स्वास्थ्यकर से संबंधित एक व्यापक दिशानिर्देश है जिसका इंसान के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज अनेक शोध यह सिद्ध करते हैं कि विभिन्न रोगों का कारण, वह अधिक भोजन है कि जिसका शरीर में समावेश नहीं हो पाता है। यह अधिक भोजन हृदय और पूरे शरीर के शेष अंगों के लिए एक भारी बोझ बनता है और इसी प्रकार विभिन्न प्रकार के रोगों और संक्रमणों के उत्पन्न होने का कारण बनता है। इस अधिक भोजन का मूल कारण, अधिक मात्रा में भोजन लेना है। अत्यधिक भोजन शुगर, हाइपरलिपिडीमिया अर्थात ख़ून में चरबी, अथोराइसग्लोराइसिस, जिगर की ख़राबी और हर्ट अटैक आदि का कारण बनता है। खाना खाने के बारे में इस्लाम के दिशानिर्देश न केवल शरीर को स्वस्थ रखते हैं बल्कि आत्मा को भी शुद्ध रखते हैं। इस संदर्भ में हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं, जो कोई भी कम खाना खाता है, वह अधिक स्वस्थ रहता है और उसके विचारों में नियमितता आती है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है, अधिक खाना खाने से बचो, क्योंकि इससे हृदय कठोर होता है, और ईश्वर की उपासना में शरीर के अंग सुस्त पड़ जाते हैं और कान सिफ़ारिश और उपदेश नहीं सुन पाते हैं। इमाम रज़ा (अ) का भी कथन है कि जो कोई भी स्वस्थ एवं चुस्त दुरुस्त रहना और सुडौल शरीर चाहता है उसे अपने शाम के भोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए।
मजमउल बयान नामक क़ुराने मजीद की व्याख्या में उल्लेख है कि अब्बासी शासक हारून रशीद के पास एक ईसाई वैद्य था जो काफ़ी प्रसिद्ध था। एक दिन इस वैद्य ने एक मुस्लिम विद्वान से कहा, तुम्हारी महान ईश्वरीय पुस्तक में चिकित्सा संबंधी कोई चीज़ मुझे नहीं मिली, हालांकि लाभदायक ज्ञान दो तरह का होता है, धर्मों का ज्ञान और शरीर का ज्ञान। मुस्लिम विद्वान ने जवाब दिया, ईश्वर ने अपनी किताब की आधी आयत में चिकित्सा का समस्त ज्ञान स्पष्ट कर दिया है और हमारे पैग़म्बर ने इस चिकित्सा संबंधी क़ानून का सार इस प्रकार बयान किया है कि आमाश्य समस्त बीमारियों का घर है और कम खाना चिकित्सा का स्रोत, और जिस चीज़ की तुम्हारे शरीर को आदत हो गई है उससे बचो नहीं। यहां आदत से तात्पर्य सही आदत है। जब ईसाई वैद्य ने यह सुना तो कहा, तुम्हारे क़ुरान और तुम्हारे पैग़म्बर ने यूनान के प्रसिद्ध वैद्य जालीनूस के लिए चिकित्सा में कुछ बाक़ी नहीं छोड़ा है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों ने खाना खाने की शैलियों के बारे में भी दिशानिर्देश दिए हैं। इमाम हसन (अ) दस्तरख़्वान के संस्कारों के बारे में फ़रमाते हैं, छोटे निवाले लो और खाने को अच्छी तरह चबाकर खाओ और जब दूसरे भी खा रहे हों तो उनके चेहरे की ओर न देखो। इमाम जाफ़र सादिक़ फ़रमाते हैं, जो कोई भी खाना खाने से पहले और बाद में हाथ धोता है तो खाने के शूरू और बाद में उसके लिए बरकत होती है और जब तक जीवित रहता है समृद्ध जीवन बिताता है और शारीरिक बीमारियों से दूर रहता है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के खाना खाने की शैली के बारे में उल्लेख है कि वे भोजन में या पीने वाली चीज़ों में फूंकने को मना करते हैं और फ़रमाते हैं कि अपने बरतनों को ढककर रखो।
अच्छे स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्यकर के लिए सफ़ाई महत्वपूर्ण है। स्वच्छता का महत्व इतना अधिक है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इसे ईमान की निशानियों में से बताया है। हज़रत अली (अ) स्वास्थ्यकर के इंसान के मन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में उल्लेख करते हैं कि उससे मन का दुख दर्द दूर होता है। इमाम फ़रमाते हैं कि साफ़ सुथरे वस्त्रों से दुख एवं चिंताएं दूर होती हैं और इससे नमाज़ को अच्छे तरीक़े से अदा करने में सहायता मिलती है। स्वच्छता का विषय इतना महत्वपूर्ण है कि अधिकांश धर्मशास्त्र की किताबों में पहला खंड स्वच्छता के विषय से विशेष है। इससे यह पता चलता है कि स्वच्छता का ध्यान रखे बिना, इंसान के बहुत से काम ग़लत होंगे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने स्वच्छता के महत्व को विभिन्न शब्दों में बयान किया है। एक स्थान पर फ़रमाते हैं, स्वयं को अच्छी तरह पाक साफ़ रखो ताकि ईश्वर तुम्हारी आयु अधिक करदे। दूसरे स्थान पर फ़रमाते हैं कि इस्लाम स्वच्छ है तुम भी स्वच्छ रहो और स्वच्छ रहने वालों के अतिरिक्त कोई भी स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेगा। एक और स्थान पर फ़रमाते हैं कि जितना हो सके साफ़ सुथरे रहो इसलिए कि ईश्वर ने इस्लाम का आधार स्वच्छता पर रखा है और स्वच्छ लोगों के अलावा कोई और स्वर्ग में नहीं जाएगा।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सिफ़ारिश से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि स्वच्छाता का मैदान बहुत विस्तृत है, इस संदर्भ में इंसान जितना अधिक प्रयास करेगा तो वह देखेगा उसके बाद भी उसके चरण हैं, यहां तक कि जैसा पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, ईश्वर स्वच्छ है और स्वच्छता को पसंद करता है और गंदगी से घृणा करता है।
पवित्र धार्मिक कथनों में मिलता है कि स्वास्थ्यकर सिद्धांतों के अनुसरण के अपने लाभ हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं: आयु का लम्बा होना, स्वास्थ्य और इंसान की शक्ति में वृद्धि, शारीरिक एवं मानसिक शांति, ईश्वर की इच्छा की प्राप्ति, ईमान का पूर्ण होना, दिल का ज़िंदा होना, वैद्य की ज़रूरत न होना, खाने पीने की चीज़ों में बरकत का होना, भुखमरी से सुरक्षित रहना और सुस्ती से दूर रहना।
इंसान के शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जिन सिद्धांतों का भी अनुसरण किया जाता है उन्हें स्पष्ट स्वास्थ्यकर कहते हैं, पैग़म्बरे इस्लाम इस क्षेत्र में भी समस्त इंसानों के लिए सर्वश्रेष्ठ आदर्श हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कथनों में जिन स्वास्थ्यकर सिद्धांतों का उल्लेख है उनमें से कुछ का यहां उल्लेख करते हैं। इंसान के वस्त्रों का साफ़ सुथरा रहना इतना महत्वपूर्ण है कि इस संदर्भ में क़ुराने मजीद पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सिफ़ारिश करता है कि अपने वस्त्रों को स्वच्छ रखो। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) गंदगी एवं अव्यवस्था से घृणा करते थे और फ़रमाते थे कि अपने वस्त्रों को साफ़ करो और बालों को काटो, उन्हें अच्छी तरह और साफ़ रखो।
क़ुराने मजीद के प्रसिद्ध व्याख्याकार अल्लामा तबातबाई कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अधिकांश वस्त्र सफ़ैद होते थे, स्वयं पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि अपने जीवितों को सफ़ैद वस्त्र पहनाओ और अपने मुर्दों को उससे कफ़न दो। सफ़ैद रंग के वस्त्रों पर गंदगी जल्दी स्पष्ट हो जाती है और इंसान उसकी सफ़ाई के लिए शीघ्र क़दम उठाता है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के व्यवहार के बारे में उल्लेख है, पैग़म्बर सबसे अधिक स्वच्छ व्यक्ति थे। मिस्वाक को बहुत महत्व देते थे, उनका चेहरा और सिर हमेशा पाक साफ़ रहता था, अपने बालों में कंघा करते थे और हमेशा उनके शरीर से ख़ुशबू आती रहती थी।
स्वच्छता का एक उदाहरण मूंह को साफ़ रखना है। जब कभी कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थलों पर जाना चाहे तो उसे चाहिए कि वस्त्रों, मूंह और दांतों की सफ़ाई का ध्यान रखे और सुगन्ध का प्रयोग करे।
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि जब ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को अपना दूत बनाया तो जिबरईल द्वारा उनसे मिसवाक और दांतों की सफ़ाई की सिफ़ारिश की।
आज यह सिद्ध हो चुका है कि मूंह और दांतों की सफ़ाई मानव सेहत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए कि बहुत से कीटाणु मूंह द्वारा ही शरीर में प्रवेश करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने भी इस विषय को बहुत अत्यधिक महत्व दिया है। व फ़रमाते हैं कि दांतो को साफ़ करो इसलिए कि यह सफ़ाई का आधार है और स्वच्छता ईमान का आधार और ईमान, ईमानदार के साथ स्वर्ग में है। एक दूसरे स्थान पर ने फ़रमाते हैं कि तुम्हारे मुंह क़ुरान की तिलावत करने वाले हैं उन्हें मिसवाक से साफ़ करो।
इसी प्रकार दांतों की सफ़ाई के बारे में फ़रमाते हैं कि दांतों को खाने के बाद तिनके से साफ़ करो, इसलिए कि इससे दांत साफ़ हो जाते हैं और मसूढ़े स्वस्थ रहते हैं।