९ मोहर्रम को कर्बला में घटने वाली घटनाओं
कर्बला का आंदोलन शताब्दियों से सत्य के खोजियों को तृप्त करने वाला निर्मल जलसोते ककी भांति रहा है। निःसंदेह इस आंदोलन में पाया जाने वाला महान शौर्य, इसके लक्ष्य तथा भावनाएं समूचे विश्व वासियों के लिए प्रेरणादायक संस्कृति का प्रारूप पेश करती हैं। आईए सन 61 हिजरी क़मरी के मोहर्रम महीने का रुख़ करते हैं और प्रेम, त्याग और ईमान के इस ठाठें मारते सागर के दर्शन करते हैं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों को कर्बला की धरती पर पहुंचे सात दिन बीत चुके थे और मोहर्रम की 9 तारीख़ आ गई थी। कूफ़ा के रहने वाले दुश्मनों ने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर पानी बंद कर दिया था। प्यास से बच्चे बिलख रहे थे। कर्बला के सभी रास्तों पर शत्रु का पहरा था कि कोई इमाम हुसैन की सहायता के लिए बाहर से न आने पाए। यज़ीदी सेना के सेनापति उमरे साद इमाम हुसैन के ख़ैमों पर हमला कर देने पर तुला हुआ था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने साथियों से कहा कि वे अपनी तलवारें, भाले और तीर कमान तैयार कर लें। इमाम हुसैन के भाई हज़रत अब्बास हमेशा बहुत शांत रहने वाले इंसान थे, जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कहीं भी जाते तो हज़रत अब्बास उनके पीछे पीछे चलते थे। कर्बला में दृश्य कुछ बदला हुआ था, हज़रत अब्बास कर्बला में इस प्रकार चल रहे थे कि यदि कहीं से कोई हमला हो तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को कोई आघात न पहुंचे। अब्बास अलैहिस्सलाम एसी हस्ती का नाम था जिसे देखकर इमाम हुसैन और उनके घर वालों को ढारस मिलती थी।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आदेश हुआ तो सारे साथी उत्साह के साथ तैयारी में लग गए। बूढ़े लोग भी जवानों की मुस्तैदी के साथ तैयारियों में व्यस्त हो गए। इमाम हुसैन के साथी पवित्र आत्मा और प्रकाशमान तथा श्रद्धा में डूबे हुए दिल रखने वाले और सत्य दर्शी दृष्टि के स्वामी थे। उनकी आत्मा तत्वज्ञान से प्रकाशमय तथा उनके हृदय प्रेम से तृप्त थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों की एकजुटता बहुत स्पष्ट थी। प्रेम और ईमान ने हर प्रकार के अंतर और दूरी को मिटा दिया था। अतः कर्बला की घटना एकता और सहृदयता का प्रतीक बन गई। दिशा के बारे में सहृदयता, बयान की एकता और नेतृत्व के बारे में सहृदयता। यह समन्वय उन्हें हर प्रकार के त्याग और बलिदान के लिए तत्पर बनाए हुए था।
नवीं मोहर्रम को सूरज डूबा तो उमरे साद ने चार हज़ार भाला धारियों और तीर अंदाज़ों के साथ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ैमों की ओर बढ़ना शुरू किया। जब उमरे साद के सैनिक ख़ैमों के निकट पहुंच गए तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम को बुलाया और कहा कि मेरे भाई तुम घोड़े पर सवार होकर जाओ और यह पूछो कि शत्रु क्या चाहता है, उसके इरादे क्या हैं?
हज़रत अब्बास अलैहिस्साम घोड़े पर सवार हुए और 18 साथियों के साथ शत्रु सेना के निकट पहुंचे। उन्होंने उमरे साद को संबोधित करते हुए कहा कि तुम्हें क्या हो गया है, इस हंगामें और हमले का क्या उद्देश्य है?
उमरे साद ने कूफ़ा के गवर्नर इब्ने ज़्याद का वह आदेश पढ़कर सुनाया जिसमें कहा गया था कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से यज़ीद की बैअत ले ली जाए। उमरे साद ने कहा कि या तो आप लोग बैअत कीजिए या फिर युद्ध के लिए तैयार हो जाइए। हज़रत अब्बास इमाम हुसैन के पास गए और उन्हें इस स्थिति के बारे में बताया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जाओ और जाकर उनसे कह दो कि कल सुबह तक का समय दें ताकि हम यह रात ईश्वर की उपासना और स्मृति में व्यतीत करें, नमाज़ें पढ़ें और क़ुरआन की तिलावत करें जो जीवन भर हमें सबसे अधिक प्यारी रही है।
इस बीच इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के एक वफ़ादार साथी हबीब इब्ने मज़ाहिर ने शत्रु सेना और उसके सेनापति को नसीहत की और उसे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व और उच्च स्थान के बारे में बताया। उन्होंने याद दिलाया कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का संबंध किस परिवार से है और इस परिवार का इस्लाम में क्या स्थान है। हज़रत हबीब इब्ने मज़ाहिर चाहते थे कि शत्रुओं को सत्य की जानकारी हो और वह अपने ग़लत फ़ैसले पर पुनरविचार करें किंतु शत्रु को सेना पर कोई असर नहीं हुआ। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने शत्रु को संबोधित करते हुए जो ख़ुतबा पढ़ा उसमें इस रहस्य के बारे में बताया कि शत्रु पर सत्य बातों का असर क्यों नहीं हुआ। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम्हारे पेट और थैलियां हराम माल से भरी हुई हैं। और इसी चीज़ ने तुम्हारे कानों और दिलों के रास्तों को बंद कर दिया है और कोई भी सत्य बात तुम्हारे दिल तक नहीं पहुंच रही है।
रात आ गई। यह अति महान रात थी। एक ओर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथ ईश्वर की उपासना में लीन थे दुआओं में व्यस्त थे और दूसरी ओर शत्रु को सेना में क़हक़हे गूंज रहे थे, शोर शराबा था। क्या वह नहीं जानते थे कि हुसैन कौन हैं? जबकि उनके भीतर एसे कई लोग थे जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम को अपनी आंख से देखा था और पैग़म्बरे इस्लाम को कहते सुना था कि हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं, किंतु स्वार्थ, अज्ञानता लालच और लोभ ने उनके दिलों को अंधकारमय बना दिया था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ैमों में क़ुरआत की तिलावत हो रही थी। सब जानते थे कि यह रात जीवन की अंतिम रात है। सब जानते थे कि दस मोहर्रम का दिन गुज़रने के बाद जो रात आएगी उसे देखने के लिए वे जीवित नहीं बचेंगे । इसी बीच हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम उठे। उन्हें एक बड़ी ज़िम्मेदार यह सौंपी गई थी कि रात भर ख़ैमों की पहरेदारी करते रहें। हज़रत अब्बास बार बार ख़ैमों के चक्कर लगाते थे। उनके क़दमों की आहट से इमाम हुसैन के खैमों में मौजूद बच्चों और औरतों को बड़ी ढारस मिलती थी। वह किसी ख़ैमे से किसी प्यासे बच्चे की रोने की आवाज़ सुनते थे तो बच्चे को बहलाकर सुलाते थे।
अचानक ख़ैमों के भीतर यह ख़बर पहुंची कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने सारे साथियों को अपने पास एकत्रित होने को कहा है। सारे साथी इमाम हुसैन के ख़ैमे में एकत्रित हो गए। इमाम हुसैन बहुत शांत बैठे थे। सब लोग इमाम के चारों ओर खड़े हो गए। सारे चेहरे आध्यात्मिक तेज से तमतमाए रहे थे। इमाम हुसैन ने एक बारे अपने साथियों को एक एक करके ग़ौर से देखा और कहा कि हे ईश्वर मैं तेरा शुक्र अदा करता हूं कि पैग़म्बर को भेज कर तूने हमें प्रतिष्ठा दी, हमें क़ुरआन सिखाया, हमें दूरदर्शिता प्रदान की, देखने और सुनने वाला दिल और आखें हमें प्रदान कीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम थोड़ा से ठहरे और उसके बाद आगे कहने लगे कि मैंने अपने साथियों से अधिक वफ़ादार साथी और मददगार नहीं देखे। ईश्वर उन्हें अच्छा पारितोषिक दे। आप सब ध्यान रखिए कि हमारे पास एक दिन से अधिक मौक़ा नहीं है। मैं आप सबको जाने की अनुमति देता हूं। आप सब आज़ाद हैं, जा सकते हैं। यह रात का समय है और अंधेरा है। आप इस अंधेरे में इस डरावने और ख़तरों से भरे मैदान से जा सकते हैं। शत्रु मेरी जान लेना चाहता है। वह मुझे क़त्ल करके शांत हो जाएगा।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की यह बात सुनकर कोहराम मच गया। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम तड़पकर कहने लगे। हे मेरे स्वामी, ईश्वर हमें वह दिन न दिखाए जब हम जीवित हों मगर आप न हों। हमें उसी दम मौत आ जाए जब इस प्रकार का विचार हमारे मन में आए। नहीं, हम हरगिज़ आपको छोड़कर नहीं जा सकते। आपके बग़ैर दिन रात कभी भी हमें चैन नहीं मिल सकता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दूसरे साथियों ने भी यही कहा कि हम कहीं नहीं जा सकते। इसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ख़ैमे से बाहर आए सब लोग इमाम के साथ थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि कल का दिन शहादत का दिन है। स्वयं को अपने पालनहार की सेवा में जाने के लिए तैयार कीजिए।
इसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ख़ैमे के क़रीब टहलने लगे। नाफ़ेअ बिन हेलाल कहते हैं कि मैंने देखा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम झुकते हैं और ज़मीन पर पड़े कांटे साफ़ करते हैं। मैंने पूछा कि मौला यह आप क्या कर रहे हैं? इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया कि मैं यह कांटे इस लिए साफ़ कर रहा हूं कि कल शत्रु हमें शहीद कर देने के बाद ख़ैमों पर हमला करेगा और बच्चे सहम कर भागेंगे तो कहीं यह कांटें उनके पैरों में न चुभ जाएं।