Hindi
Wednesday 27th of November 2024
0
نفر 0

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम

आज हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के पावन प्रांगण का वातावरण ही कुछ और है। आपकी शहादत के दुखद अवसर पर आपके पवित्र रौज़े और उसके प्रांगण में विभिन्न संस्कृतियों व राष्ट्रों के हज़ारों श्रृद्धालु एकत्रित हैं

आज हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के पावन प्रांगण का वातावरण ही कुछ और है। आपकी शहादत के दुखद अवसर पर आपके पवित्र रौज़े और उसके प्रांगण में विभिन्न संस्कृतियों व राष्ट्रों के हज़ारों श्रृद्धालु एकत्रित हैं ताकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों के प्रति अपनी श्रृद्धा व्यक्त कर सकें। आपके पवित्र रौज़े के कोने-कोने से क़ुरआन पढ़ने और दुआ करने की आवाज़ें आ रही हैं। श्रृद्धालुओं की अपार भीड़ यहां पर एकत्रित हुई है ताकि अपने नेत्रों के आंसूओं से अपने हृदयों के मोर्चे को छुड़ा सके और इस पवित्र रौज़े में अपने हृदय व आत्मा को तरुणाई प्रदान कर सके। श्रृद्धालुओं के हृदय शोक में डूबे हुए हैं परंतु आपके पवित्र रौज़े एवं प्रांगण में उनकी उपस्थिति से जो आभास उत्पन्न हुआ है उसका उल्लेख शब्दों में नहीं किया जा सकता। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने वालों के लिए आज एक अवसर है ताकि वे इन महान हस्तियों की आकांक्षाओं के साथ दोबारा प्रतिबद्धता व्यक्त करें। प्रिय श्रोताओ हम भी हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत कर रहे हैं और हम आज के कार्यक्रम में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के विभूतिपूर्ण जीवन के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे। इमाम रज़ा अली बिन मूसा अलैहिस्सलाम के पावन अस्तित्व का चेराग़ उस घर में प्रकाशित हुआ जिस घर के परिवार के अभिभावक सदाचारी, ईश्वरीय दास और पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम थे। अली बिन मूसा अलैहिस्सलाम की माता मोरक्को के एक गणमान्य व प्रतिष्ठित व्यक्ति की बुद्धिमान सुपुत्री थीं जिनका नाम नज्मा था। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का नाम अली और आपकी सबसे प्रसिद्ध उपाधि रज़ा है जिसका अर्थ प्रसन्नता है। आपके सुपुत्र हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने पिता की उपाधि रज़ा रखे जाने के बारे में कहते हैं" ईश्वर ने उन्हें रज़ा की उपाधि दी क्योंकि आसमान में ईश्वर और ज़मीन में पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजन उनसे प्रसन्न थे और इसी तरह उनके अच्छे स्वभाव के कारण उनके मित्र, निकटवर्ती और शत्रु भी उनसे प्रसन्न थे"हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के परिजनों में से एक हैं जिन्होंने ईश्वरीय दायित्व इमामत के काल में लोगों को पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की शिक्षा की पहचान करवाई। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का ज्ञान, धैर्य, बहादुरी, उपासना, सदाचारिता एवं ईश्वरीय भय और एक वाक्य में यह कि आपका अध्यात्मिक व्यक्तित्व इस सीमा तक था कि आपके काल में किसी को भी आपके ज्ञान एवं अध्यात्मिक श्रेष्ठता में कोई संदेह नहीं था और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने समय में "आलिमे आले मोहम्मद" अर्थात हज़रत मोहम्मद के परिवार के ज्ञानी के नाम से प्रसिद्ध थे।हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के काल में इस्लामी जगत ने भौगोलिक, आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से बहुत अधिक प्रगति की थी परंतु इन सबके साथ ही उस समय अब्बासी शासकों की अत्याचारी सरकार जारी थी। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के काल में बनी अब्बास, हारून रशीद और अमीन व मामून की तीन सरकारें थीं और आपके जीवन के अंतिम पांच वर्षों में बहुत ही धूर्त और पाखंडी अब्बासी ख़लीफा मामून की सरकार थी। मामून ने अपने भाई अमीन की हत्या कर देने के बाद सत्ता की बाग़डोर अपने हाथ में ले ली और उसने अपने मंत्री फज़्ल बिन सहल की बुद्धि व चालाकी से लाभ उठाकर अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत बनाने का प्रयास किया। इसी दिशा में उसने हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनने का सुझाव दिया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने वालों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर ले और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनाकर वह अपनी सरकार को वैध दर्शाना चाहता था। अलबत्ता उसने बहुत चालाकी से यह दिखाने का प्रयास किया कि इस कार्य में उसकी पूरी निष्ठा है और उसने हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के प्रति सच्चे हृदय, विश्वास तथा लगाव से यह कार्य किया।मामून के इस निर्णय पर अब्बासी सरकार के समर्थकों व पक्षधरों ने जो आपत्ति जताई उसके जवाब में मामून ने जो चीज़ें बयान कीं उससे उसके इस कार्य के लक्ष्य स्पष्ट हो जाते हैं। मामून ने कहा" इन्होंने अर्थात इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपने कार्यों को हमसे छिपा रखा है और लोगों को अपनी इमामत की ओर बुलाते हैं। इस आधार पर वह जब हमारे उत्तराधिकारी बन जायेगें तो लोगों को हमारी ओर बुलायेंगे और हमारी सरकार को स्वीकार कर लेगा और साथ ही उनके चाहने वाले भी समझ जायेंगे कि सरकार के योग्य हम हैं न कि वह"इस आधार पर यदि मामून की इच्छानुसार हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उसके उत्तराधिकारी होने को स्वीकार कर लेते तो यह एसा कि जैसे उन्होंने बनी अब्बासी सरकार की वैधता को स्वीकार कर लिया हो और यह अब्बासी ख़लीफ़ाओं के लिए बहुत बड़ी विशिष्टता समझी जाती। दूसरी बात यह थी कि मामून यह सोचता था कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा उसके उत्तराधिकारी होने को स्वीकार कर लेने से उनका स्थान व महत्व कम हो जायेगा। विदित में मामून की ये पाखंडी व धूर्त चालें बहुत सोची- समझी हुई थीं परंतु इन षडयंत्रों के मुक़ाबले में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की क्या प्रतिक्रिया रही है?इस षडयंत्र के मुक़ाबले में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की पहली प्रतिक्रिया यह रही कि आप मामून की सरकार के केन्द्र मर्व आने से कतराते रहे यहां तक कि मामून के कारिन्दें इमाम को विवश करके मर्व लाये। प्रसिद्ध विद्वान शेख सदूक़ ने अपनी पुस्तक "ऊयूनो अख़बारि र्रेज़ा" में लिखा है" इमाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम से विदा लेने के लिए आपके मज़ार पर गये। कई बार वहां से बाहर निकले और फिर पलट आये तथा ऊंची आवाज़ में विलाप किया। उसके पश्चात इमाम ने परिवार के लोगों को एकत्रित किया और उनसे विदा ली तथा उनसे कहा" अब मैं आप लोगों की ओर वापस नहीं आऊंगा"दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति को अपने साथ नहीं ले गये। इन सब बातों से आपकी पहचान रखने वालों विशेषकर शीया मुसलमानों के लिए, जो सीधे आपके संपर्क में थे, स्पष्ट हो जाता है कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने विवश होकर इस यात्रा को स्वीकार किया था। दूसरे चरण में इमाम ने यह प्रयास किया कि अपना उत्तराधिकारी बनाने हेतु मामून के कार्य को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के अधिकारों को पहचनवानें का माध्यम बना दें। क्योंकि उस समय तक अब्बासी और अमवी शासकों ने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की इस योग्यता को स्वीकार नहीं किया था कि सरकार के वास्तविक पात्र पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन ही हैं। मामून की कार्यवाही से अच्छी तरह पहले वाले अब्बासी शासकों की नीतियों व दृष्टिकोणों पर पानी फिर जाता। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून द्वारा उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने से पहले एक भाषण दिया जिसमें यह शर्त लगा दी कि उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने की स्थिति में वह किसी भी राजनीतिक मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे, न किसी को काम पर रखेंगे और न ही किसी को उसके पद से बर्खास्त करेंगे। सरकार की कोई परम्परा नहीं तोड़ेंगे और उनसे केवल परामर्श किया जायेगा

 


source : www.abna.ir
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

क़ुरआन
आदर्श जीवन शैली-६
चेहलुम के दिन की अहमियत और आमाल
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलमा का जन्म ...
म्यांमार अभियान, भारत और ...
मोमिन की नजात
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के वालदैन
शेख़ शलतूत का फ़तवा
ख़ुत्बाए फ़ातेहे शाम जनाबे ज़ैनब ...

 
user comment