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ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-9

लकड़ी की हस्तकला ईरानी कलाकारों के रचनात्मक मन और प्रकृति के बीच आश्चर्यजनक लगाव का पता देती है। इन सभी हस्तकला उद्योगों का मूल पदार्थ लकड़ी है।
ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-9

लकड़ी की हस्तकला ईरानी कलाकारों के रचनात्मक मन और प्रकृति के बीच आश्चर्यजनक लगाव का पता देती है। इन सभी हस्तकला उद्योगों का मूल पदार्थ लकड़ी है।
 
 
 
 
 
प्रकृति से मिलने वाले सबसे अच्छे और लाभदायक कच्चे पदार्थ में लकड़ी है जिसे इंसान ने सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया और सभ्यता तथा हस्तकलाओं में प्रगति इसका योगदान है। मानव जीवन के शुरु में लकड़ी घर, नाव और मूल उपकरण बनाने में इस्तेमाल होती थी। उसके बाद इन्सानी ज़िन्दगी के लिए लाभदायक चीज़ों के निर्माण में इस्तेमाल होने लगी और अंततः इसे पुराने समय से ही इमारत बनाने के लिए ज़रूरी मसालों का हिस्सा समझा जाने लगा।
 
इतिहास पूर्व में इंसान ने गुफाओं में ज़िन्दगी गुज़ारना शुरु किया और लकड़ी को उसने सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया। स्वीज़रलैंड की झीलों, आल्प पर्वत श्रंख्ला के एक क्षेत्र साववा, इटली सहित दूसरे क्षेत्रों में पुरातात्विक खुदाई में ऐसे घरों के लकड़ी के खंबे मिले हैं जो पानी पर तैरते थे जिन्हें आधुनिक युग में फ़्लोटिं हाउस कहा जाता है। ये घर पैलियोलिथिक, नियो पैलियोलिथिक और लौह युग के हैं जिनसे पता चलता है कि प्राचीन काल में लकड़ी को घर और ज़रूरी उपकरण बनाने में इस्तेमाल किया जाता था। ये अवशेष दर्शाते हैं कि प्राचीन काल का इंसान अपने शरण स्थल के लिए लकड़ी को सरल रूप में इस्तेमाल करता था।  आपको शायद यह जान कर हैरत होगी कि आज भी एटलान्टिक के तटवर्ती इलाक़ों और मालका में स्थानीय लोग फ़्लोटिंग हाउस अर्थात पानी पर तैरने वाले घर बनाते हैं।
 
 
 
 
 
शताब्दियों तक लकड़ी मानव समाज में बिना अधिक बदलाव के विभिन्न कामों के लिए इस्तेमाल होती रही है। मानव सभ्यता के विकास में लकड़ी के योगदान से इंकार नहीं किया जा सकता। ख़ास तौर पर इस हक़ीक़त के मद्देनज़र कि लकड़ी जल परिवहन के लिए नाव के रूप में आवाजाही का एकमात्र साधन थी और लकड़ी की बनी नाव से इंसान ने ज़मीन के अज्ञात स्थानों का पता लगाया और लकड़ी ही इतिहास के विभन्न दौर में इंसान की जान को बचाने का साधन बनी रही है।
 
15वीं शताब्दी ईसापूर्व चीनी साम्राज्य में लकड़ी की अहमियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पेड़ काटने वालों के ख़िलाफ़ सज़ा के नियम बनाए गए थे। भारत और दक्षिण-पूर्वी एशिया में बौद्ध धर्मियों के उपासना स्थलों में विभिन्न प्रकार की लकड़ी की प्रतिमाएं रखी जाती थीं जो लकड़ी पर कलाकारी की सूक्ष्मता का पता देती थीं। यूनान में भी लकड़ी के उद्योग बहुत प्रचलित थे और रूमी साम्राज्य में भी लकड़ी को उपकरण और सौंदर्य के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। आपको यह जान कर अच्छा लगेगा कि प्राचीन रोमवासी पेड़ के तने में चित्र बनाने की अहमियत को समझते थे और तने से अच्छ चित्रों वाले मुलम्मे बनाते थे।
 
 
 
 
 
पुरातात्विक अध्ययन के अनुसार, ईरान के स्थानीय निवासी लगभग 4200 ईसापूर्व में आर्याइयों के पलायन करने से पहले लकड़ी से घर बनाते थे। अलबत्ता कृषि के उपकरण बनाने में भी लकड़ी इस्तेमाल होती थी। हख़ामनेशी काल से लकड़ी के उपयोग की शैली अधिक स्पष्ट है लेकिन इसका दस्तावेज़ी शक्ल में इतिहास मौजूद नहीं है। इसी प्रकार तख़्ते जमशीद से मिलने वाले शिलालेख से महलों को सजाने में बेर की लकड़ी के इस्तेमाल का पता चलता है।
 
तख़्त जमशीद से मिले अवशेष और प्राचीन शायरी से पता चलता है कि देवदार, झाऊ और कुनार के पेड़ों से लोग आस्था रखते थे। हख़ामनेशी शासन काल में जंग में इस्तेमाल होने वाले रथ और उपकरण लकड़ी के बनते थे और यूनानी इतिहासकार मौजूदा तुर्की में स्थिति तत्कालीन लीडी देश की राधानी सार्द पर साइरस की सफलता को दुश्मन के ठिकानों पर लकड़ी की बनी मीनारों से पता लगा कर रथ से हमले की देन मानते हैं। इसी प्रकार ब्लैक और भूमध्यसागर के आस-पास के इलाक़ों पर हख़ामनेशी शासन काल के वर्चस्व का श्रेय भी लकड़ी की विशाल नौकाओं सहित यातायात के लिए पर्याप्त मात्रा में उपकरण को देते हैं।
 
 
 
 
 
अश्कानी शासन काल के बारे में संकलित रूप में दस्तावेज़ नहीं हैं किन्तु सासानी शासन काल के बारे में यह बात स्पष्ट है कि वे घर बनाने, शिकार, जंग के उपकरण, वाद्य यंत्र के निर्माण के लिए लकड़ी का इस्तेमाल करते थे। मिसाल के तौर पर बहुत बड़े आकार का बर्बत वाद्य यंत्र लकड़ी था जो सासानी शासन काल का सबसे अच्छा साज़ समझा जाता था और बर्बत ही को तार, सितार, सारंगी, सेलों इत्यादि का जनक माना जाता है।
 
ईरान में इस्लाम आने के बाद लकड़ी की कलाओं और उद्योगों पर भी इस ईश्वरीय धर्म की शिक्षाओं का असर पड़ा और बेहतरीन कलात्मक वस्तुएं दरवाज़ों, मिम्बरों और मस्जिद, मक़बरों और पवित्र स्थलों की खिड़कियों की शक्ल में सामने आयीं।
 
किसी भी रूप का धारण करना, गर्मी और आवाज़ के लिए उचित उष्मारोध, विविधतापूर्ण रंग और संरचना, पुनः इस्तेमाल करना वे विशेषताएं हैं तो लकड़ी में पायी जाती हैं। किन्तु प्राचीन समय से लकड़ी में एक कमी यह रही है कि लकड़ी कीड़े मकोड़ों की ज़द से महफ़ूज़ नहीं रहती जैसे दीमक लगना। किन्तु आज ऐसी चीज़ें बन गयी हैं जो लकड़ी को दीमक जैसे कीड़े मकोड़ों से सुरक्षित रखती हैं। लकड़ी की एक समस्या आग लग कर जलना भी है।
 
 
 
 
 
आज लकड़ी बहुत से काम में इस्तेमाल होती है। आज लकड़ी का उद्योग, घर निर्माण, डेकोरेटिव आर्ट्स, सोफ़ा सेट वग़ैरह बनाने में बहुत इस्तेमाल होती है। अब तो लकड़ी की शक्ल के उत्पाद बाज़ार में मिल रहे हैं जो प्लास्टिक और दूसरे रासायनिक पदार्थ से मिल कर बनते हैं। दूसरी ओर लकड़ी का इस्तेमाल इंसान की सेहत की नज़र से भी फ़ायदेमंद है क्योंकि लकड़ी प्राकृतिक तत्वों का भाग है।
 
शोधकर्ताओं का कहना है कि लकड़ी का वातावरण प्रसारित आवाज़ को अपने अंदर जज़्ब करने के बाद प्रतिबिंबित करती है। इस तरह आवाज़ गूंजती नहीं है और लहरों की लंबाई में अंतर को संतुलित करती है। हलकी व सूखी लकड़ियों पर जूते से चलते वक़्त चीड़ की लकड़ी की तरह भारी आवाज़ निकलती है बल्कि बलूत और अख़रोट की लकड़ियों पर जूते से चलते वक़्त धीमी आवाज़ निकलती है।
 
 
 
 
 
आज हमारी ज़िन्दगी में लकड़ी सोफ़ासेट, श्रंगार की मेज़, कैबिनेट, प्रतिमा, गुलदान, यहां तक कि चमचे और कांटे भी लकड़ी के बनने लगे हैं। प्राचीन समय से लकड़ी की हस्तकलाकृतिंया दुनिया के ज़्यादा तर देशों में रोज़गार का साधन रही हैं। ईरान में भी जंगलों और अच्छी लकड़ियों की भरमार से लकड़ी के हस्तकला उद्योग को बहुत रौनक़ मिली।
 
यूं तो लकड़ी के हस्तकला उद्योग की शाखाएं बहुत हैं किन्तु मोटे तौर पर इन उद्योगों को इन भागों में बांटा जा सकता है। चौखट बनाने, बांस से बनने वाली चीज़े जैसे टोकरी, चटाई की बुनाई, मोहर बनाने, वुड टर्निंग उद्योग इत्यादि।
 
 
 
इसी प्रकार ईरान के प्राचीन वाद्य यंत्रों के निर्माण, चाइनीज़ नॉट, तक्षणकला, बढ़ईगीरी और लकड़ी पर चित्रकारी, ईरान में लकड़ी के हस्तकला उद्योग की अन्य शाखाए हैं।


source : irib
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