ईरान के हस्तशिल्प उद्योग की चर्चा करते हुए आज हम लकड़ी पर नक्क़ाशी के बारे में आप लोगों को बतायेंगे। प्राचीन काल से ही दुनिया भर में लकड़ी को हस्तशिल्प के लिए महत्वपूर्ण कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। ईरान में भी कलाकारों ने प्रकृति में काफ़ी मात्रा में पाये जाने वाले इस पदार्थ का प्रयोग किया है।
जर्मन पर्यटक ओलेरियस एडम ने अपने यात्रा वृतांत में ईरान में लकड़ी और उसके प्रयोग के बारे में काफ़ी विस्तार से चर्चा की है। एडम के यात्रा वृतांत में लकड़ी की सुन्दरता, इमारतों में उसके प्रयोग और विभिन्न प्रकार के वृक्षों के बारे में जानकारी पायी जाती है। उसने अपनी किताब में ऐसी खिड़कियों का उल्लेख किया है कि जिन्हें कलाकारों ने बहुत ही बारीकी से बनाया है। ऐसी खिड़कियां कि जो लकड़ी के जाल द्वारा बहुत ही सुन्दरता से बनाई गई थीं और छतें लकड़ी के स्तंभों पर टिकी हुई थीं।
लकड़ी पर की जाने वाली नक़्क़ाशी को फ़ार्सी में मुनब्बतकारी कहा जाता है। मुनब्बत अरबी के शब्द नबात से लिया गया है, जिसका अर्थ वनस्पति एवं उगना है। कुछ लोगों का मानना है कि लकड़ी पर फूल पत्तियों को उकेरना उस पर वनस्पति को उगाने जैसा है, यही कारण है कि उसे मुनब्बत कहा जाता है।
ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के मुताबिक़, प्रारम्भिक काल में मुनब्बतकारी के बहुत ही कम नमूने मौजूद हैं, इसलिए कि लकड़ी की उम्र बहुत अधिक नहीं होती और विभिन्न कारणों से वह नष्ट हो जाती है। मुनब्बतकारी का सबसे प्राचीन नमूना 2500 वर्ष ईसा पूर्व से संबंधित एक प्रतिमा है जो मिस्र में खोजी गई है। इसी प्रकार, आर्यों की वह मोहरे हैं जिनपर सुन्दर चित्र बने हुए हैं। इससे पता चलता है कि आर्य लकड़ी के हस्तशिल्प से परिचित थे। ईरान के प्राचीन राजा कलात्मक रूप से बनाई गई मोहरों द्वारा आदेश जारी करते थे और इन मोहरों पर विभिन्न प्रकार के चिन्ह और निशानियां होती थीं।
ईरान के मामलों में अमरीकी विशेषज्ञ आर्थर पोप का कहना है कि मूल रूप से यह कहा जा सकता है कि मूल्यवान पत्थरों और लकड़ियों पर चित्रकारी हख़ामनेशियों से कई हज़ार वर्ष पूर्व तक संबंधित है और हख़ामनेशी शासन की स्थापना से शताब्दियों पूर्व ईरानियों ने मुनब्बतकारी का अविष्कार किया था। हालांकि कुछ समय पूर्व तक ग़लती से इस कला को यूनानियों से संबंधित माना जाता था, लेकिन वास्तव में यूनानियों ने यह काम हख़ामनेशियों से सीखा था।
शूश और पर्सेपोलिस में मिलने वाले पत्थरों के अवशेषों के बीच, लकड़ी पर हुई नक्क़ाशी के नमूने भी प्राप्त हुए हैं, लेकिन इस्लामी काल में ईरान में यह अपने चरम पर पहुंची। इस्लाम के उदय के बाद मस्जिदों के निर्माण का प्रचलन शुरू हुआ, इस समय ईरानी कलाकारों ने मस्जिदों को सजाने में अपनी भरपूर प्रतिभा का प्रयोग किया और वास्तुकला में अपना हुनर दिखाने के अलावा क़ुरान मजीद की रहल, मिंबर और खिड़कियों पर नक्क़ाशी की।
ईरानियों को प्राचीन काल से ही नक्क़ाशी और पत्थरों को तराशने का अनुभव रहा है और उन्होंने धीरे धीरे हस्तशिल्प एवं लकड़ी पर नक़्क़ाशी की कला भी सीख ली। सफ़वी काल में दरवाज़ों, मिंबरों, क़ुरान की रहल, लकड़ी के स्तंभों, ख़ंजर के दस्तों और विभिन्न प्रकार के बर्तनों पर नक़्क़ाशी की जाती थी। हालांकि बाद के काल में इनमें से कुछ चीज़ों पर नक़्क़ाशी का प्रचलन कम होता गया और बड़ी चीज़ों के स्थान पर क़ुरान की रेहल एवं आईने के फ़्रेम पर नक़्क़ाशी का प्रचन बढ़ गया। लेकिन ईरान में मुंबतकारी का प्रचलन बाक़ी रहा और इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई। आजकल मुनब्बतकारी छड़ी, चिरग़दान, संगीत के उपकरणों इत्यादि पर की जाती है।
ईरान में मुनब्बतकारी का सबसे पुराना नमूना नवीं शताब्दी इसी से संबंधित है। वह शीराज़ में स्थित मस्जिद जामे अतीक़ से संबंधित द्वार का एक पल्ला है, जो सफ़्फ़ारियान शासनकाल में तबरेज़ी वृक्ष से बनाया गया है और उस पर अख़रोट की लकड़ी की पत्तियों से बहुत ही सुन्दर चित्रकारी की गई है।
उसके बाद देवदार की लकड़ी के बने दरवाज़े पर हुई मुनब्बतकारी है जो दसवीं शताब्दी से संबंधित है। उस पर बहुत ही बारीकी से कूफ़ी लिपी में लिखा हुआ है। सफ़वी काल में ईरान में धार्मिक इमारतों और शाही महलों के निर्माण में काफ़ी वृद्धि हुई। काफ़ी संख्या में कलाकार इस्फ़हान गए और एक स्थान पर इन कलाकारों की उपस्थिति के परिणाम स्वरूप, यादगार एवं अद्भुत चीज़ों का निर्माण हुआ।
सफ़वी शासनकाल के बाद, ईरान में झड़पों और राजनीतिक अस्थिरता के कारण वर्षों तक कला उद्योग की गतिविधियां सीमित हो रहीं और कलाकार तितर बितर हो गए और अन्य कार्यों में व्यस्त हो गए। केवल क़ाजारी शासनकाल और उसके बाद, कुर्सियां, मेज़ और सोफ़ों के प्रचलन के कारण उन पर मुनब्बतकारी की गई और इस प्रकार कला के बेहतरीन नमूने वजूद में आए।
वर्तमान समय में मुनब्बतकारी हस्तशिल्प का ऐसा क्षेत्र है जिसकी काफ़ी लोकप्रियता है और जिसे केवल सजावट के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के उत्पाद दुनिया भर में निर्यात किए जाते हैं। ईरान में फ़ार्स प्रांत में आबादे शहर, इस्फ़हान में गुलपायगान और होर्मुज़गान में बूशहर मुनब्बतकारी के महत्वपूर्ण केन्द्र हैं और इनके अलावा भी दूसरे स्थानों पर भी मुं मुनब्बतकारी होती है।
अगर किसी व्यक्ति को मुनब्बतकारी की कला में रूची है और वह इस कला का सीखना चाहता है तो पहले उसे चाहिए उसकी डिज़ाइनिंग सीखे और उसके बाद, लकड़ियों की क़िस्मों और अन्य उपकरणों का ज्ञान हासिल करे। मुनब्बतकारी की सुन्दरता में वृद्धि के लिए रंगकारी अंतिम काम है जो उसकी सुन्दरता निखारने के साथ साथ लकड़ी को नमी और गर्मी से बचाती है।
लकड़ी और कभी हाथी दांत और हड्डी पर मुनब्बतकारी बारीक और मोटी दो प्रकार की होती है और इसमें मूर्ति निर्माण इत्यादि कार्य शामिल होते हैं।
यूकेलिप्टिस, अनार, मेपल, बीच, चेरी, बबूल, नाश्पाती जैसे वृक्ष मुनब्बतकारी में प्रयोग किए जाते हैं। इस कला के विशेषज्ञों का मानना है कि मुनब्बतकारी के लिए उचित लकड़ियों की विशेषताओं में से उचित रंग और सुन्दरता, मज़बूती के साथ मुलायम, उसमें गांठ का न होना इत्यादि उल्लेख किया जा सकता है। लकड़ी पर मुनब्बतकारी के उपकरणों में चाक़ू, आरी, रेती और मुनब्बतकारी के विशेष क़लम का नाम लिया जा सकता है, इन उपकरणों में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है। लकड़ी पर मुनब्बतकारी दो प्रकार से होती है, एक यह कि डिज़ाइन को देखकर लकड़ी पर उतारा जाता है दूसरा यह कि डिज़ाइन को लकड़ी पर उकेरा जाता है। सामान्य रूप से ज्योमितिक डिज़ाइनों में यह शैली अपनायी जाती है।
पहली शैली में भी कुछ चीज़ें प्रचलित हैं, उनमें से कुछ सतह से ऊपर नहीं आती हैं और कुछ ऊपर आ जाती हैं। उकेरने वाली शैली में डिज़ाइन को सतह से नीचे रखा जाता है। डिज़ाइन जितना भी मोटा और बड़ा होगा तो बेहतर है, वह अधिक स्पष्ट और जिस चीज़ पर नक्क़ाशी की जा रही है अधिक दूर हो।
इस काम की शैली सतह, कुछ गहरी और गहरी होती है। इसी प्रकार कुछ वर्षों पूर्व इसकी मशीन सीएनसी के नाम से बनाई गई है। इसका प्रयोग ऑटो कैड नामक सॉफ़्टवेयर द्वारा लकड़ी पर थ्री डी के रूप में किया जाता है। मुनब्बतकारी में अधिकतर प्रयोग होने वाले डिज़ाइन हैं, चेहरा, फूल और परिंदे, फूल और पत्तियां और कलियां, मोती, लिखाई, जानवर इत्यादि।
source : irib