Hindi
Sunday 7th of July 2024
0
نفر 0

मुसलमान पुरुषों द्वारा चार विवाह, भारतीय संविधान का उल्लंघनः गुजरात हाईकोर्ट

भारत के राज्य गुजरात के हाईकोर्ट ने मुसलमानों में एक से अधिक विवाह की कड़े शब्दों में निंदा की है। न्यायालय ने एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि एक से ज़्यादा पत्नियां रखने के लिए मुस्लिम पुरुषों की ओर से क़ुरान की ग़लत व्याख्या की जा रही है और ये लोग ‘स्वार्थी कारणों’ के चलते बहुविवाह के प्रावधान का ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं।
मुसलमान पुरुषों द्वारा चार विवाह, भारतीय संविधान का उल्लंघनः गुजरात हाईकोर्ट

भारत के राज्य गुजरात के हाईकोर्ट ने मुसलमानों में एक से अधिक विवाह की कड़े शब्दों में निंदा की है।
 
 न्यायालय ने एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि एक से ज़्यादा पत्नियां रखने के लिए मुस्लिम पुरुषों की ओर से क़ुरान की ग़लत व्याख्या की जा रही है और ये लोग ‘स्वार्थी कारणों’ के चलते बहुविवाह के प्रावधान का ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं।
 
 
 
गुजरात हाईकोर्ट द्वारा जारी आदेश में यह भी कहा गया है कि अब समय आ गया है कि देश समान नागरिक संहिता को अपना ले क्योंकि ऐसे प्रावधान संविधान का उल्लंघन हैं।
 
 
 
प्राप्त समाचारों के अनुसार न्यायाधीश जेबी पारदीवाला ने कल भारतीय दंड संहिता की धारा 494 से जुड़े एक मामले में आदेश सुनाते हुए ये टिप्पणियां की हैं।
 
 
 
याचिकाकर्ता ज़फ़र अब्बास मर्चेंट ने उच्च न्यायालय से संपर्क करके उसके ख़िलाफ़ उसकी पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत को ख़ारिज करने का अनुरोध किया था। पत्नी ने आरोप लगाया था कि ज़फ़र ने उसकी सहमति के बिना किसी अन्य महिला से शादी कर ली है।
 
 
 
उल्लेखनीय है कि ज़फ़र की पत्नी ने उसके ख़िलाफ़ भारतीय क़ानून की धारा 494 के अंतर्गत जो (पति या पत्नी द्वारा एक दूसरे के जीवित रहते हुए दोबारा विवाह करने के संबंध में है) का हवाला दिया है।  हालांकि ज़फ़र ने अपनी याचिका में दावा किया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ मुसलमान पुरुषों को चार विवाह करने की अनुमति देता है और इसलिए उसके ख़िलाफ़  दायर प्राथमिकी क़ानूनी जांच के दायरे में नहीं आती।
 
 
 
 न्यायाधीश पारदीवाला ने अपने आदेश में कहा कि मुसलमान पुरुष एक से अधिक पत्नियां रखने के लिए क़ुरान की ग़लत व्याख्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि क़ुरान में जब बहुविवाह की अनुमति दी गई थी, तो इसका एक उचित कारण था। आज जब पुरूष इस प्रावधान का इस्तेमाल करते हैं तो वे ऐसा स्वार्थ के कारण करते हैं। बहुविवाह का क़ुरान में केवल एक बार उल्लेख किया गया है और यह सशर्त है।
 
 
 
अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ, मुसलमान को इस बात की अनुमति नहीं देता है कि वह एक पत्नी के साथ निर्दयतापूर्ण व्यवहार करे, उसे उस घर से बाहर निकाल दे, जहां वह ब्याह कर आई थी और इसके बाद दूसरी शादी कर ले।
 
 
 
न्यायालय ने समान नागरिक संहिता के संबंध में आवश्यक क़दम उठाने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार को सौंपी है और साथ ही अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आधुनिक, प्रगतिशील सोच के आधार पर भारत को इस प्रथा को त्यागना चाहिए और समान नागरिक संहिता की स्थापना करनी चाहिए।
 
 
 
उल्लेखनीय है कि गुजरात के हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत चार पत्नियां रखने की अनुमति को संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन बताया है। (RZ)


source : irib
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

बच्चों के सामने वाइफ की बुराई।
इराक़ संकट में अमेरिका का बड़ा ...
ह़ज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन की ...
पश्चिमी युवाओं के नाम आयतुल्लाह ...
मोमिन व मुनाफ़िक़ में अंतर।
बैतुल मुक़द्दस के यहूदीकरण की नई ...
हजः वैभवशाली व प्रभावी उपासना
शरारती तत्वों ने मौलाना पर डाला ...
चिकित्सक 6
ईश्वरीय वाणी-3

 
user comment