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ईश्वरीय वाणल-५३

सूरे यासिन पवित्र क़ुरआन का ३६वां सूरा है। यह सूरा मक्के में उतरा है। विभिन्न रवायतों के अनुसार सूरे यासिन पवित्र क़ुरआन का महत्वपूर्ण सूरा है और इसे क़ुरआन का दिल कहा गया है। पैग़म्बरे इस्लाम की एक हदीस अर्थात कथन में आया है” हर चीज़ का एक दिल होता है और क़ुरआन का दिल यासिन है।“
ईश्वरीय वाणल-५३

सूरे यासिन पवित्र क़ुरआन का ३६वां सूरा है। यह सूरा मक्के में उतरा है। विभिन्न रवायतों के अनुसार सूरे यासिन पवित्र क़ुरआन का महत्वपूर्ण सूरा है और इसे क़ुरआन का दिल कहा गया है। पैग़म्बरे इस्लाम की एक हदीस अर्थात कथन में आया है” हर चीज़ का एक दिल होता है और क़ुरआन का दिल यासिन है।“
 
इस सूरे में महान ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की गवाही देता है। इसके अतिरिक्त इसमें तीन अन्य पैग़म्बरों की चर्चा की गयी है। इस सूरे की कुछ आयतों में महान ईश्वर की महानता को एकेश्वरवाद के चिन्ह के रूप में बयान किया गया है। इसी प्रकार इस सूरे की दूसरी आयतों में प्रलय, उसके बारे में सवाल-जवाब और स्वर्ग व नरक की विशेषताओं की चर्चा की गयी है।
 
 
 
 
 
इस सूरे का आरंभ पवित्र कुरआन की शपथ के साथ हुआ है। महान ईश्वर कहता है” यासिन और क़ुरआन की क़सम तुम ईश्वर के भेजे गये दूतों में से हो, तुम सीधे रास्ते पर हो, यह क़ुरआन महान व कृपालु ईश्वर की ओर से नाज़िल हुआ है ताकि तुम उन लोगों को डराओ जिनके पूर्वजों को नहीं डराया गया था वे लोग बेखबर हैं।“
 
पवित्र कुरआन को उसकी आयतों में हकीम के रूप में याद किया गया है और उसे मार्गदर्शक बनाया गया है। यह लोगों की ओर हिकमत व तत्वदर्शिता का द्वार खोल और इंसान का मार्गदर्शन सीधे रास्ते की ओर कर सकता है।
 
 
 
 
 
अलबत्ता महान ईश्वर को शपथ खाने की कोई आवश्यकता नहीं है परंतु पवित्र क़ुरआन में जो शपथ खाई गयीं हैं उसके दो लाभ हैं। पहला लाभ जो बात कही जा रही है उस पर बल देना और दूसरे उस चीज़ का महत्व बयान करना है जिसकी महान ईश्वर ने क़सम खाई है।
 
महान ईश्वर ने सूरे यासिन की आयत में पैग़म्बरे इस्लाम के लिए कहा है कि आप सीधे रास्ते पर हैं और पैग़म्बरे इस्लाम का पावन जीवन भी इस बात का सूचक है कि वह सीधे रास्ते पर थे।
 
 
 
 
 
पैग़म्बरों के निमंत्रण की सच्चाई समझने के लिए दो चीज़ों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। पहला यह कि पैग़म्बर जिस चीज़ का निमंत्रण देते थे उसकी समीक्षा की जानी चाहिये ताकि यह स्पष्ट हो जाये कि पैग़म्बर जिन चीज़ों का निमंत्रण दे रहे हैं वे बुद्धि और प्रवृत्ति से मेल खाती हैं या नहीं? दूसरे उनकी जीवनी की समीक्षा की जानी चाहिये ताकि यह स्पष्ट हो जाये कि वे सच्चे इंसान हैं या नहीं?
 
इन चीज़ों के जवाब का सकारात्मक होना इस बात का प्रमाण है कि वे सब ईश्वरीय दूत थे।  
 
पवित्र कुरआन की आयतें क़ुरआन उतरने के कारणों को इस प्रकार बयान करती हैं। क़ुरआन को हमने तुम पर उतारा है ताकि तुम उस जाति को डराओ जिनके पूर्वजों को नहीं डराया गया इसी कारण वे बेख़बर हैं। बहरहाल पवित्र क़ुरआन को नाज़िल करने का उद्देश्य यह था कि बेख़बर लोगों को होशियार और सोये हुए लोगों को जगाया जाये।
 
वास्तविकता यह है कि इंसान उस समय पथप्रदर्शन योग्य है जब वह अपनी प्रवृत्ति को बुरे कार्यों द्वारा ख़राब न करे अन्यथा उसके दिल पर अज्ञानता का अंधेरा छा जायेगा और आशा के द्वीप बंद हो जायेंगे।
 
 
 
 
 
 
 
सूरे यासीन की १३वीं और उसके बाद की कई आयतों में कुछ पैग़म्बरों की जीवनी के कुछ भागों की ओर संकेत किया गया है और कहा गया है कि इन पैग़म्बरों के भेजने का उद्देश्य अनेकेश्वरवादी जाति का मार्गदर्शन था। पवित्र क़ुरआन ने उस जाति को ग्रामीण के रूप में याद किया है।
 
पवित्र कुरआन के व्याख्याकर्ताओं के अनुसार इन आयतों का संबंध अंताकिया क्षेत्र के लोगों से है और वह उस समय सीरिया का महत्वपूर्ण क्षेत्र था जबकि आज वह तुर्की का भाग है। उस नगर के लोग अनेकेश्वरवादी थे और महान ईश्वर ने पैग़म्बरों को उस नगर के लोगों के पथप्रदर्शन के लिए भेजा था परंतु उन लोगों ने ईश्वर द्वारा भेजे गये पैग़म्बरों को झुठलाया।
 
 
 
 
 
पवित्र कुरआन कहता है” हे पैग़म्बर उन लोगों को असहाबे क़रिया अर्थात ग्रामीणों का उदाहरण दीजिये जब ईश्वर के दूत उनके पास गये। जब मैंने अपने दो पैग़म्बरों को उनके पास भेजा परंतु उन लोगों ने उन्हें झुठलाया उसके बाद हमने तीसरे व्यक्ति के माध्यम से उन दोनों की पुष्टि करवाई उन लोगों ने कहा हम ईश्वर की ओर से तुम्हारी ओर भेजे गये हैं।“ परंतु उस गुमराह व पथभ्रष्ठ जाति ने ईश्वरीय दूतों के निमंत्रण के जवाब में कहा तुम लोग हमारी तरह इंसान हो और कृपालु ईश्वर ने कुछ नाज़िल नहीं किया है तुम लोग झूठ बोलते हो। अगर ईश्वर की ओर से किसी को आना ही था तो उसे ईश्वर का क़रीबी फ़रिश्ता होना चाहिये था न कि हमारे जैसा इंसान। इसी को उन्होंने पैग़म्बरों और ईश्वरीय आदेशों के इंकार का आधार बनाया।
 
बहरहाल महान ईश्वर ने जिन पैग़म्बरों को उस पथभ्रष्ठ क़ौम के मार्गदर्शन के लिए भेजा था वे उस क़ौम के विरोध और उसके हठधर्म से निराश नहीं हुए। उन लोगों के जवाब में कहा हमारा पालनहार जानता है कि हमें निश्चित रूप से उसकी ओर से तुम्हारे पास भेजा गया है और हम पर संदेश पहुंचा देने के अतिरिक्त कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। उन लोगों ने अपनी सच्चाई सिद्ध करने के लिए चमत्कार भी दिखाये परंतु दिल के अंधे लोगों ने न तो ईश्वरीय चमत्कार माना और न ही स्पष्ट प्रमाणों के समक्ष नतमस्तक हुए बल्कि उन लोगों ने अपनी हिंसा में वृद्धि कर दी और कहा हम तुम्हें बुरा शगुन समझते हैं और तुम लोग हमारे नगर के दुर्भाग्य का कारण हो। अलबत्ता इसी पर उन लोगों ने संतोष नहीं किया बल्कि ईश्वरीय दूतों को धमकी भी दी और कहा अगर इन बातों को कहने से बाज़ नहीं आये तो निश्चित रूप से हम पत्थरों से मार कर तुम्हारी हत्या कर देंगे और हम तुम्हें कड़ा दंड देंगे।“
 
 
 
 
 
हां चूंकि गुमराह व पथभ्रष्ठ लोगों के पास कोई स्वीकार योग्य तर्क नहीं होता है इसलिए वे सदैव धमकी और हिंसा का सहारा लेते हैं जबकि वे इस बात से बेख़बर होते हैं कि ईश्वरीय दूत कभी भी धमकियों से नहीं डरते हैं और उनके प्रतिरोध में और मज़बूती व दृढ़ता आती- जाती है इसीलिए ईश्वरीय दूतों ने गुमराह लोगों का उत्तर दिया और कहा कि बुरे शगुन का कारण तुम स्वयं हो और अगर तुम सही तरह से सोचो तो इस वास्तविकता को समझ जाओगे। दुर्भाग्य और अंधेरा तुम्हारे समाज पर छा गया है और ईश्वरीय बरकतें तुम्हारे बीच से चली गयी हैं। उसके कारण को अपने अंदर, अपनी सोचों और अपने बुरे कार्यों में ढूंढ़ो। वास्तव में यह तुम हो जिसने अपनी ग़लत इच्छाओं का अनुसरण करके अपने जीवन को अंधकारमय बना रखा है और ईश्वरीय बरकतों को स्वयं से दूर कर दिया है।
 
 
 
इसी बीच नगर के दूरस्थ क्षेत्र से एक ईमानदार व्यक्ति तेज़ी से काफ़िर दल के पास आया और उसने कहा हे मेरी जाति के लोगो ईश्वरीय दूतों का अनुसरण करो। उनका अनुसरण करो जो तुम्हारे निमंत्रण के बदले में कुछ नहीं चाहते और स्वयं सही मार्ग पर हैं। पवित्र क़ुरआन के अधिकांश व्याख्याकर्ताओं ने उस ईमानदार व्यक्ति का नाम हबीब नज्जार बताया है। इस व्यक्ति का सामना इससे पहले ईश्वरीय दूतों से हो चुका था और वह उनके निमंत्रण को स्वीकार कर चुका था और वह एक अच्छा मोमिन बन चुका था। उसे जब सूचना मिली कि नगर के लोग ईश्वरीय दूतों के विरोध में उठ खड़े हुए हैं तो उसने मौन धारण करना उचित नहीं समझा और तेज़ी से स्वयं को नगर के केन्द्र में पहुंचाया और सत्य के बचाव में जो कुछ कर सकता था उसने किया। वह एक सामान्य व्यक्ति था उसके पास विदित शक्ति नहीं थी पंरतु ईमान से उसका हृदय प्रकाशित हो चुका था और उसे महान ईश्वर के भेजे हुए दूतों की शिक्षाओं पर पूर्ण विश्वास हो गया था। अतः सत्य की ओर से बचाव व संघर्ष को उसने अपना परम दायित्व समझा और वह अकेले ही मैदान में आ गया ताकि समस्त लोग जान लें कि मोमिन अगर अकेला भी हो तब भी मौन धारण करना सही नहीं है। उसके बाद वह व्यक्ति ईश्वरीय दूतों के संदेश एकेश्वरवाद को बयान करते हुए कहता है मैं क्यूं उसकी उपासना न करूं जिसने हमें पैदा किया है? मैं क्यूं उसकी उपासना करूं जिन्हें हमने स्वयं बनाया है वे न तो हमें फायदा पहुंचा सकते हैं और न ही नुकसान। अगर ईश्वर हमें दंडित करना चाहे तो वे उसके दंड को नहीं रोक सकते।
 
 
 
 
 
इसके बावजूद अगर मैं इस प्रकार की चीज़ों की उपासना करता हूं तो मैं खुली गुमराही में हूं। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर पर गहरा विश्वास रखने वाला संघर्षकर्ता मोमिन अपने तर्कसंगत बयान के बाद लोगों के मध्य ऊंची आवाज़ में घोषणा करता है ताकि सब जान लें कि वह महान ईश्वर पर ईमान ला चुका है और ईश्वरीय दूतों के निमंत्रण को स्वीकार चुका है। उसके कहने का तात्पर्य यह था कि लोग उसकी बातों को सुनें और ईश्वरीय दूतों के निमंत्रण पर ईमान लायें किन्तु उस जाति ने उस मोमिन के खिलाफ विद्रोह कर दिया और अपनी उद्दंडता से उसे शहीद कर दिया। पवित्र क़ुरआन के शब्दों में उस मोमिन की आत्मा ईश्वरीय कृपा की छाया में है जबकि वह लोगों का मार्गदर्शन चाह रहा था। महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन में कहता है” स्वर्ग में प्रविष्ट हो जा, उसने कहा काश मेरी क़ौम जानती कि मेरे पालनहार ने मुझे माफ़ कर दिया और मुझे भले व प्रतिष्ठित लोगों की पंक्ति में शामिल कर दिया।“
 
 
 
 
 
आसमान से एक ख़तरनाक बिजली चमकी अंताकिया नगर के सभी लोग भय से सन्न रह गये। अपनी जगह पर चुपचाप खड़े हो गये। ये आयतें लोगों को सीख लेने के लिए आमंत्रित करती हैं और हर काल के गुमराह लोगों की ओर संकेत करती हैं। इसी प्रकार ये आयतें उन लोगों की ओर इशारा करती हैं जो ईश्वरीय दूतों का उपहास करते थे। इस संबंध में महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है” कोई पैग़म्बर नहीं आया मगर यह कि उन लोगों ने उनका उपहास किया।“


source : irib
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