सन तीन हिजरी में रमज़ानुल मुबारक की पन्द्रह तारीख़ को पैगम्बरे इस्लाम(स) की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा(स) ने नूरानी वुजूद वाले एक ख़ूबसूरत बेटे को जन्म दिया था । यह फ़ातेमा व अली की पहली सन्तान थी और हज़रत मोहम्मद (स) का पहला नाती, जिसके आने का वह शिद्दत से इंतेज़ार कर रहे थे।
विलायत पोर्टलः सन तीन हिजरी में रमज़ानुल मुबारक की पन्द्रह तारीख़ को पैगम्बरे इस्लाम(स) की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा(स) ने नूरानी वुजूद वाले एक ख़ूबसूरत बेटे को जन्म दिया था । यह फ़ातेमा व अली की पहली सन्तान थी और हज़रत मोहम्मद (स) का पहला नाती, जिसके आने का वह शिद्दत से इंतेज़ार कर रहे थे। मदीना शहर फूलों की सुगन्ध से भर गया था और पैग़म्बरे इस्लाम के चाहने वाले ख़ुशी से झूम रहे थे क्योंकि इस्लाम का एक महान रखवाला दुनिया में आ गया था।
नवजात बच्चे को हरे रंग के कपड़े में लपेट कर पैगम्बरे इस्लाम स.अ की सेवा में लाया गया। उन्होने बड़े प्यार से बच्चे को देखा, उसे चूमा, दायें कान में अज़ान दी,बायें कान में अक़ामत कही और फिर अल्लाह के हुक्म से उसका नाम “हसन” रखा। हसन का मतलब होता है “भला और ख़ूबसूरत”।
इमाम हसन (अ) के बारे में कहते हैं कि सूरत,व्यवहार और अख़लाक़ जैसी विशेषताओं में पैगम्बरे इस्लाम से जितनी समानता इमाम हसन (अ) की थी उतनी किसी और की नहीं थी।
अनस बिन मालिक इमाम हसन के बारे में कहते हैः उनका चेहरा सफ़ेद था जिस पर हल्की सुर्ख़ी थी, आंखें बड़ी-2 और काली थीं, कद न ज़्यादा लम्बा था न छोटा आकर्षक कैरेक्टर के मालिक थे। चेहरे पर बहुत नमक था और लोगों के बीच सबसे ख़ूबसूरत दिखाई देते थे।
इमाम हसन अ बहुत ज़्यादा लोकप्रिय थे। सभी लोग उनका बहुत ज़्यादा सम्मान करते थे। मदीने में लोग उनके घर के निकट फ़र्श बिछाते थे जिस पर बैठ कर इमाम हसन उनके बीच फ़ैसले करते तथा उनकी समस्याओं का समाधान करते थे। उधर से गुज़रने वाला हर आदमी वहां रुक कर उनकी बातें सुनता, उनके चेहरे को देखता और पैग़म्बरे इस्लाम (स) को याद करता था। कभी लोगों की भीड़ इतनी बढ़ जाती थी कि रास्ता बन्द हो जाता था। ऐसी हालत में इमाम हसन (अ) उठ कर चले जाते थे ताकि लोगों की आवा जाही में कठिनाई न हो।
इमाम हसन (अ) लोगों की समस्यओं को इतनी गम्भीरता से लेते थे कि मानो इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण कोई काम है ही नहीं। वह लोगों की समस्याओं के समाधान के महत्व के बारे में कहते हैः मैंने अपने वालिद (पिता) से सुना है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते थे कि जो आदमी अपने दीनी भाई की ज़रूरत को पूरा करने के लिये कोशिश करे वह ऐसा है जैसे उसने नौ हज़ार साल तक अल्लाह की इबादत ऐसी हालत में की हो कि दिन में रोज़े रखे हों और रात को दुआ करता रहा हो।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) इमाम हसन व इमाम हुसैन (अ) को हमेशा बहुत महत्व देते और बड़ी प्रतिष्ठा के साथ उनके नाम लेते थे। उन दोनों को इस्लामी उम्मत अर्थात इस्लामी राष्ट्र के सुगन्धित फूल कहते थे। वह अपनी बेटी हज़रत फ़ातेमा से कहते थे “मेरे दिल के टुकड़ों को मेरे पास ले आओ” और जब बच्चे आ जाते तो उन्हें अपनी छाती से लगाते और चूमते थे। स्पष्ट है इस तरह से मुहब्बत व सम्मान प्रकट करके वह मुसलमानों को इन दोनों का महत्व बताना चाहते थे।
इमाम हसन (अ) महान कैरेक्टर एवं कृपालु व दानी प्रवृत्ति के मालिक थे। सभी लोगों यहां तक कि अपने दुश्मनों तक के साथ उनका व्यवहार इतना आदरणीय होता था कि लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। आपकी सख़ावत और आपका दान देना हर जगह मशहूर था।
source : wilayat.in