इस्लामी रिवायतों की बिना पर क़ुरआने मजीद की बे शुमार आयतें अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के फ़ज़ाएल व मनाक़िब की बयानगर हैं और इन्हीं मासूम हस्तियों के किरदार के मुख़्तलिफ़ पहलुओं की तरफ़ इशारा कर रही हैं।
बल्कि कुछ रिवायतों की बिना पर पूरे कुरआन का तअल्लुक़ उनके मनाक़िब, उनके मुख़ालिफ़ों के नक़ाएस, उनके आमाल व किरदार और उनकी सीरत व हयात के आईन व दस्तूर से है।
लेकिन यहाँ पर सिर्फ़ उन्हीं आयतों की तरफ़ इशारा किया जा रहा है जिनके शाने नुज़ूल के बारे में आलमे इस्लाम के मुफ़स्सिरों ने इक़रार किया है कि इनका नुज़ूल अहलेबैते अतहार (अ.) के मनाक़िब के सिलसिले में हुआ है। उलमा-ए-इस्लाम ने इस सिलसिले में बड़ी बड़ी किताबें लिखी हैं और मुकम्मल तफ़सील के साथ आयात व उनकी तफ़्सीर का तज़करा किया है। हम यहाँ सिर्फ़ कुछ आयतों को ही पेश कर रहे हैं।
“ وَكَذَلِكَ جَعَلْنَاكُمْ أُمَّةً وَسَطًا لِّتَكُونُواْ شُهَدَاء عَلَى النَّاسِ ”
अमीरूलमोमेनीन (अ.) फ़रमाते है कि उम्मते वसत से मुराद हम अहलेबैत हैं।(शवाहिदुत तनज़ील जिल्द 1 पेज 92)
“ فَمَنْ حَآجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْاْ نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ ”
यह आयत मुबाहेले के मौक़े पर अहलेबैत की शान में नाज़िल हुई है।(तफ़सीरे जलालैन, सहीय मुस्लिम किताबे फ़ज़ाएलुस सहाबा,)
“ وَمَن يَعْتَصِم بِاللّهِ فَقَدْ هُدِيَ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ ”
रसूले अकरम (स.) फ़रमाते हैं कि अली (अ.) उनकी ज़ौजा और उनकी औलाद हुज्ज्ते ख़ुदा है। इनसे हिदायत हासिल करने वाला सिराते मुस्तक़ीम की तरफ़ हिदायत पाने वाला है। (शवाहिदुत तनज़ील जिल्द 1 पेज 58)
“وَاعْتَصِمُواْ بِحَبْلِ اللّهِ جَمِيعًا وَلاَ تَفَرَّقُواْ ”
इमाम सादिक़ (अ.) फ़रमाते हैं कि (حَبْل اللّهِ) से मुराद हम अहलेबैत (अ.) हैं। (शवाहिदुत तनज़ील जिल्द 1 पेज 131)
“يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ أَطِيعُواْ اللّهَ وَأَطِيعُواْ الرَّسُولَ وَأُوْلِي الأَمْرِ مِنكُمْ”
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.) फ़रमाते हैं कि (أُوْلِي الأَمْرِ) से मुराद आईम्मा-ए-अहलेबैत हैं। (यनाबीऊल मवद्दत पेज 194)
“وَلَوْ رَدُّوهُ إِلَى الرَّسُولِ وَإِلَى أُوْلِي الأَمْرِ مِنْهُمْ لَعَلِمَهُ الَّذِينَ يَسْتَنبِطُونَهُ مِنْهُمْ ”
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.) और इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.) फ़रमाते हैं कि (أوْلِي الأَمْرُِ) से मुराद आईम्मा-ए-अहलेबैत हैं। (यनाबीऊल मवद्दत पेज 321)
“يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ وَكُونُواْ مَعَ الصَّادِقِينَ ”
इब्ने उमर से मनक़ूल है कि सादेक़ीन, मुहम्मद व आले मुहम्मद (अ.) हैं। (ग़ायतुल मराम पेज 148)
“بَقِيَّةُ اللّهِ خَيْرٌ لَّكُم
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.) फ़रमाते हैं कि (بَقِيَّةُ اللّهِ) क़ाएमे आले मुहम्मद की हस्ती है। (नुरूल अबसार पेज 172)
“ أَلَمْ تَرَ كَيْفَ ضَرَبَ اللّهُ مَثَلاً كَلِمَةً طَيِّبَةً كَشَجَرةٍ طَيِّبَةٍ ”
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.) फ़रमाते हैं (شَجَرةٍ) ज़ाते पैग़म्बर है। फ़रअ अली हैं। शाख़ फ़ातेमा ज़हरा हैं। और फल हज़राते हसनैन हैं। (शवाहिदुत तनज़ील जिल्द 1 पेज 311)
“ فَاسْأَلُواْ أَهْلَ الذِّكْرِ إِن كُنتُمْ لاَ تَعْلَمُونَ ”
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.) का इरशादे गेरामी है أَهْلَ الذِّكْرِ)) हम अहलेबैत हैं (जामेऊल बयान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन जिल्द 14 पेज 108)
“ وَآتِ ذَا الْقُرْبَى حَقَّهُ ”
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) फ़रमाते हैं कि (ذَا الْقُرْبَى) से मुराद हम अहलेबैत है (ग़ायतुल मराम पेज 323)
“ يَوْمَ نَدْعُو كُلَّ أُنَاسٍ بِإِمَامِهِمْ ”
जनाबे इब्ने अब्बास से मऩकूल है कि आईम्मा-ए-हक़ अली (अ.) व औलादे अली (अ.) हैं। (ग़ायतुल मराम पेज 272)
“ وَلَقَدْ كَتَبْنَا فِي الزَّبُورِ مِن بَعْدِ الذِّكْرِ أَنَّ الْأَرْضَ يَرِثُهَا عِبَادِيَ الصَّالِحُونَ ”
इमाम सादिक़ अ(.) फ़रमाते हैं कि यह क़ाएमे आले मुहम्मद और उनके असहाब हैं। (यनाबीऊल मवद्दत पेज 510)
“ ذَلِكَ وَمَن يُعَظِّمْ شَعَائِرَ اللَّهِ فَإِنَّهَا مِن تَقْوَى الْقُلُوبِ ”
अमीरूल मोमिनीन (अ.) फ़रमाते हैं कि شَعَائِرَ اللَّهِ)) हम अहलेबैत हैं। (यनाबीऊल मवद्दत)
“ لِيَكُونَ الرَّسُولُ شَهِيدًا عَلَيْكُمْ وَتَكُونُوا شُهَدَاءَ عَلَى النَّاسِ ”
अमीरूल मोमिनीन (अ.) फ़रमाते हैं कि यह आयत रसूले अकरम और आईम्मा अतहार के बारे में है। (ग़ायतुल मराम पेज 265)
“ فَإِذَا نُفِخَ فِي الصُّورِ فَلَا أَنسَابَ بَيْنَهُمْ يَوْمَئِذٍ وَلَا يَتَسَاءَلُونَ ”
रोज़े क़यामत मेरे हसब व नसब के अलावा सारे हसब व नसब ख़त्म हो जायेगें।(रसूले अकरम) ( शवाहिदुत तनज़ील जिल्द 1 पेज 407)
“……. مَثَلُ نُورِهِ كَمِشْكَاةٍ فِيهَا مِصْبَاحٌ ”
अमीरूल मोमिनीन (अ.) फ़रमाते हैं किمِشْكَاةٍ ) ) जनाबे फ़ातेमा (مِصْبَاحٌ) हसनैन شَجَرَةٍ مُّبَارَكَة हज़रते इब्राहीम, نُّورٌ عَلَى نُور) से एक इमाम के बाद दूसरे इमाम मुराद हैं, (ग़ायतुल मराम पेज 315)
“ وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا مِنكُمْ وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَيَسْتَخْلِفَنَّهُم فِي الْأَرْضِ ”
अब्दुल्लाह इब्ने मुहम्मद अल हनफ़िया से मनक़ूल है इन हज़रात से मुराद अहले बैते ताहेरीन हैं। (शवाहिदुत तनज़ील जिल्द 1 पेज 413)
“ وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا ”
अज़वाज से मुराद ख़दीजा, ज़ुर्रियत फ़ातेमा, क़ुर्रातुलऐन हसनैन और इमाम हज़रत अली है। (शवाहिदुत तनज़ील जिल्द 1 पेज 416)
“ وَنُرِيدُ أَن نَّمُنَّ عَلَى الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا فِي الْأَرْضِ وَنَجْعَلَهُمْ أَئِمَّةً وَنَجْعَلَهُمُ الْوَارِثِينَ”
इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.) फ़रमाते हैं कि यह सिलसिला ए इमामत है जो ता क़यामत बाक़ी रहने वाला है। (शवाहिदुत तनज़ील जिल्द 1 पेज 430)
“وَجَعَلْنَا مِنْهُمْ أَئِمَّةً يَهْدُونَ بِأَمْرِنَا لَمَّا صَبَرُوا وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يُوقِنُونَ”
इब्ने अब्बास से मनक़ूल है कि अल्लाह ने औलादे हारून में 12 क़ाएद क़रार दिये थे और औलादे अली (अ) में 11 इमाम बनाये हैं। जिससे कुल 12 इमाम हो गये। (शवाहिदुत तनज़ील जिल्द 1 पेज 455)
“ إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًا ”
उम्मे सलमा से मनक़ूल है कि यह आयत अली व फ़ातेमा व हसनैन और रसूले अकरम की शान में नाज़िल हुई है। (फ़ज़ाएलुल ख़मसा जिल्द 2 पेज 219)
“إِنَّ اللَّهَ وَمَلَائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَى النَّبِيِّ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا صَلُّوا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا تَسْلِيمًا ”
रसूले अकरम (स.) फ़रमाते हैं कि मेरे साथ अहलेबैत पर सलवात ज़रूरी है। (तफ़सीरे मुराग़ी जिल्द 22 पेज 34)
“ قُلْ مَا سَأَلْتُكُم مِّنْ أَجْرٍ فَهُوَ لَكُمْ ”
इमाम बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं कि अजरे रिसालत से मुराद मुहब्बते अहलेबैत है जिससे तमाम अवलिया ए ख़ुदा की मुहब्बत पैदा होती है। (यनाबीऊल मवद्दत 512)
“وَقِفُوهُمْ إِنَّهُم مَّسْئُولُونَ ”
रसूले अकरम (स) फ़रमाते हैं कि रोज़े क़यामत सबसे पहले मरहले पर मुहब्बते अहलेबैत के बारे में सवाल किया जायेगा। (ग़ायतुल मराम पेज 259)
“ سَلَامٌ عَلَى إِلْ يَاسِينَ ”
इब्ने अब्बास से मनक़ूल है कि (إِلْ يَاسِينَ) आले मुहम्मद हैं। (ग़ायतुल मराम पेज 382)
“ إِلَى يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُومِ ”
इमाम जाफर सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं कि (يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُوم) रोज़े ज़हूरे क़ाएमे आले मुहम्मद है। (यनाबीऊल मवद्दत पेज 509)
“قُل لَّا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْبَى”
सईद इब्ने ज़ुबैर से मनक़ूल है कि (الْقُرْبَى) मुरसले आज़म के क़राबतदार हैं। (फ़ी ज़िलालिल क़ुरआन जिल्द 7 और दूसरी बहुत सा किताबें)
“وَبِالْأَسْحَارِ هُمْ يَسْتَغْفِرُونَ ”
इब्ने अब्बास से मनक़ूल है कि यह आयत अली, फ़ातेमा और हसनैन के बारे में नाज़िल हुई है। (शवाहीदुत तनज़ील जिल्द 2 पेज 195)
“ مَرَجَ الْبَحْرَيْنِ يَلْتَقِيَانِ”
इब्ने अब्बास से मनक़ूल है कि ((الْبَحْرَيْنِ अली व फ़ातेमा(اللُّؤْلُؤُ وَالْمَرْجَانُ) हसन व हुसैन हैं। (दुर्रे मनसूर जिल्द 6 पेज 142)
“ وَالسَّابِقُونَ السَّابِقُونَ ”
रसूले अकरम (स) फ़रमाते हैं कि यह अली (अ) और उनके शिया हैं। (शवाहीदुत तनज़ील जिल्द 2 पेज 216)
“ وَأَصْحَابُ الْيَمِينِ مَا أَصْحَابُ الْيَمِينِ ”
इमाम बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं कि हम और हमारे शिया असहाबे यमीन हैं। (शवाहीदुत तनज़ील जिल्द 2 पेज 293)
“ هُوَ الَّذِي أَرْسَلَ رَسُولَهُ بِالْهُدَى وَدِينِ الْحَقِّ لِيُظْهِرَهُ عَلَى الدِّينِ كُلِّهِ وَلَوْ كَرِهَ الْمُشْرِكُونَ ”
इमाम जाफर सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं कि इसका मिसदाक़ ज़हूरे क़ाएम के वक़्त सामने आयेगा। (यनाबीऊल मवद्दत पेज 508)
“ إِنَّ هَذِهِ تَذْكِرَةٌ فَمَن شَاءَ اتَّخَذَ إِلَى رَبِّهِ سَبِيلًا ”
रसूले अकरम (स) फ़रमाते हैं कि जिसने मुझसे और मेरे अहलेबैत से तमस्सुक किया उसने ख़ुदा का रास्ता इख़्तेयार कर लिया। (सवाएक़े मोहरेक़ा पेज 90)
“ ............. هَلْ أَتَى عَلَى الْإِنسَانِ حِينٌ مِّنَ الدَّهْرِ لَمْ يَكُن شَيْئًا مَّذْكُورًا ”
इब्ने अब्बास से मनक़ूल है कि यह सूरह अहलेबैत की शान में नाज़िल हुआ है।(और साएल जिबरईल थे जिनके ज़रीये क़ुदरत ने अहलेबैत का इम्तेहान लिया था।) (तफ़सीरे क़ुरतुबी, ग़ायतुल मराम पेज 368)
“ وَوَالِدٍ وَمَا وَلَدَ ”
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं कि इससे अली (अ) और औलादे अली मुराद हैं। (शवाहीदुत तनज़ील जिल्द 2 पेज 331)
“ .......... وَالشَّمْسِ وَضُحَاهَا ”
इब्ने अब्बास से मनक़ूल है कि (الشَّمْسِ) रसूले अकरम, (الْقَمَرِ) अली, (النَّهَارِ) हसनैन (اللَّيْلِ) बनी ऊमय्या हैं। (शवाहीदुत तनज़ील जिल्द 2 पेज 333)
“ وَالتِّينِ وَالزَّيْتُونِ ”
इमाम मूसा काज़िम (अ) फ़रमाते हैं कि (وَالتِّينِ وَالزَّيْتُونِ) हसन व हुसैन, (وَطُورِ سِينِينَ) अमीरूल मोमीनीन (अ) (الْبَلَدِ الْأَمِينِ) रसूले अकरम (स) हैं। (शवाहीदुत तनज़ील)
“ إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُوْلَئِكَ هُمْ خَيْرُ الْبَرِيَّةِ”
आले मुहम्मद( خَيْرُ الْبَرِيَّةِ ) हैं।(रसूले अकरम(स) ( शवाहीदुत तनज़ील जिल्द 2 पेज 364)
“إِنَّا أَعْطَيْنَاكَ الْكَوْثَرَ”
रसूले अकरम (स) फ़रमाते हैं कि कौसर हम अहलेबैत की मंज़िले जन्नत का नाम है। (शवाहीदुत तनज़ील जिल्द 2 पेज 376)
source : alhassanain