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अत्याचारी बादशाहों के दौर में इमाम सादिक़ अ. नें आंदोलन क्यों नहीं किया।

अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी, अबना: इमाम सादिक़ अ. के ज़माने के बादशाहों के विरुद्ध होने वाले अक्सर आंदोलनों में इमाम सादिक़ अ. की मर्ज़ी शामिल नहीं थी। और आप आंदोलन के अगुवाओं की ओर की जाने वाली अपील को जो आपकी मदद और सहयोग का वादा करते थे, स्वीकार नहीं करते थे। और अहलेबैत अलैहिस्सलाम की शिक्षाओं को प्रचलित करने को प्राथमिकता देते थे। इ
अत्याचारी बादशाहों के दौर में इमाम सादिक़ अ. नें आंदोलन क्यों नहीं किया।

अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी, अबना:  इमाम सादिक़ अ. के ज़माने के बादशाहों के विरुद्ध होने वाले अक्सर आंदोलनों में इमाम सादिक़ अ. की मर्ज़ी शामिल नहीं थी। और आप आंदोलन के अगुवाओं की ओर की जाने वाली अपील को जो आपकी मदद और सहयोग का वादा करते थे, स्वीकार नहीं करते थे। और अहलेबैत अलैहिस्सलाम की शिक्षाओं को प्रचलित करने को प्राथमिकता देते थे। इसलिए चूँकि वह लोग जो बनी हाशिम को आंदोलन के लिए उकसाते थे और उनकी मदद का वादा करते थे सबके सब या उनमें से अधिकतर समय के हाकिमों की हुकूमत को पसन्द नहीं करते थे या हुकूमत को अपने हाथ में लेना चाहते थे और हरगिज़ बिदअत को मिटाना और अल्लाह के दीन को प्रचलित करना या पैग़म्बरे इस्लाम के अहलेबैत की सहायता उनका उद्देश्य नहीं था।
लेकिन कभी कभी सच्चाई यहाँ तक कि इमाम के ख़ास शियों के लिए भी संदिग्ध हो जाती थी और इमाम सादिक़ अ. से आंदोलन में शामिल होने की अपील करने लगते थे कुलैनी र.अ. ने सुदैरे सहरफ़ी के हवाले से लिखा है: मैं इमाम सादिक़ अ. के पास गया और उनसे कहा ख़ुदा की क़सम जाएज़ नहीं है कि आप आंदोलन न करें! क्यों? इसलिए कि आपके दोस्त शिया और मददगार बहुत ज़्यादा हैं। अल्लाह की क़सम अगर अली अ. के शियों और दोस्तों की संख्या इतनी ज़्यादा होती तो कभी भी उनके हक़ को न छीना जाता। इमाम अ. ने पूछा सुदैर उनकी संख्या कितनी है? सुदैर ने जवाब दिया एक लाख। इमाम ने फ़रमाया एक लाख? सुदैर ने कहा जी बल्कि दो लाख। इमाम ने आश्चर्य से पूछा दो लाख? सुदैर ने कहा जी दो लाख बल्कि आधी दुनिया आपके साथ है। इमाम ख़ामोश हो गए सुदैर कहते हैं कि इमाम उठ खड़े हुए मैं भी उनके साथ चल पड़ा रास्ते में बकरी के एक झुँड के बग़ल से गुज़र हुआ इमाम सादिक़ अ. ने फ़रमाया   
وَاللَّهِ یَا سَدِیرُ لَوْ کَانَ لِی شِیعَةٌ به عدد هَذِهِ الْجِدَاءِ مَا وَسِعَنِی الْقُعُودُ وَ نَزَلْنَا وَ صَلَّیْنَا فَلَمَّا فَرَغْنَا مِنَ الصَّلَاةِ عَطَفْتُ عَلَی الْجِدَاءِ فَعَدَدْتُهَا  فَإِذَا هِیَ سَبْعَةَ عَشَرَ(काफ़ी जिल्द 2 पेज 243)  
ऐ सुदैर अल्लाह की क़सम अगर इन बकरियों भर भी हमारे शिया होते तो आंदोलन न करना मेरे लिए जाएज़ नहीं था फिर हमने वहीं पर नमाज़ पढ़ी और नमाज़ के बाद हमने बकरियों को गिना तो उनकी संख्या 17 से ज़्यादा नहीं थी। (यानी सच्चे शियों और इमाम सादिक़ अ. के जमाने के हबीब इब्ने मज़ाहिर जैसे दोस्तों की संख्या 17 भी नहीं थी।)


source : abna24
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