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इमामे मोहम्मदे बाक़िर अलैहिस्सलाम

रजब के मुबारक महीने की पहली तारिख़ एक बार फिर आ पहुंची है। आज ही के दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस संसार में क़दम रखा। उन्होंने अज्ञानता के अंधकार को अपने ज्ञान के प्रकाश से जगमगा दिया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौ
इमामे मोहम्मदे बाक़िर अलैहिस्सलाम



रजब के मुबारक महीने की पहली तारिख़ एक बार फिर आ पहुंची है। आज ही के दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर

 

अलैहिस्सलाम ने इस संसार में क़दम रखा। उन्होंने अज्ञानता के अंधकार को अपने ज्ञान के प्रकाश से जगमगा दिया।

 

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के घर में पहली रजब ५७ हिजरी क़मरी को एक शिशु का जन्म हुआ।

 

वर्षों पूर्व उनके आगमन की शुभ सूचना पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने दी थी और अपने साथी जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह से कहा था - तुम उनके दर्शन करो गे।

 

वे बाक़ेरुल उलूम अर्थात ज्ञान का सीना चीरने वाले हैं क्योंकि वे ज्ञान के सागर को चीर कर ज्ञान के रहस्यों को उजागर करेंगे।

 

जब जाबिर ने इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के दर्शन किए तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) का सलाम उनको पहुंचाया।

 

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन का अधिकांश भाग मदीना नगर में इस्लामी शिक्षाओं के विस्तार और विख्यात शिष्यों के प्रशिक्षण में बिताया।

 

उन्होंने १९ वर्ष तक ज्ञान, विज्ञान तथा इस्लामी संस्कृति एवं शिक्षाओं का प्रसार किया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के बाद समाज में कुछ ऐसी प्रक्रियाएं जारी थीं

 

जिन्होंने क़ुरआने मजीद और उनके परिजनों के बीच दूरी उत्पन्न करने का प्रयास किया। विदित रूप से तो शासन की नीतियों और आदेशों का आधार

 

पवित्र क़ुरआन था, परन्तु शासकों के क्रिया कलाप क़ुरआने मजीद की वास्तिवकताओं से बहुत अलग थे।

 

बनी उमइया शासक जनता पर इतना अधिक अत्याचार कर रहे थे कि इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम अर्थात इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम

 

के पिता ईश्वरीय शिक्षाओं का प्रचार अपनी दुआओं एवं प्रार्थनाओं द्वारा करते थे। परन्तु इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के काल में समाज की राजनैतिक परिस्थितयों में परिवर्तन आ गया।

 

सत्ता प्राप्ति के लिए राजनैतिक संकट और खींचतान इतनी बढ़ गई थी कि शासकों को पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों पर अत्याचार करने का अवसर नहीं मिल पाया था।

     
इसलिए इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के लिए इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार एवं विस्तार की भूमि प्रशस्त हो गई थी।

 

यही कारण है कि इमाम बाक़िर अलै हिस्सलाम ने फ़िक़ह और इस्लामी शिक्षाओं पर ढ़ेरों किताबें छोड़ी हैं।

 

समाज का सांस्कृतिक और आस्था संबंधी सुधार इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की सबसे महत्वपूर्ण नीति थी।

 

उनकी दृष्टि में भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना, एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए सबसे अधिक आवश्यक है।

 

उनके विचार में एक दूसरों के प्राति दाइत्व के आभास से अधिक किसी चीज़ का महत्व नहीं है और दूसरों के प्रति लापरवाह ऐसीवस्तु है जिससे समाज को ख़तरा है।

 

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का मानना था कि दूसरों की सहायता करके घनिष्ठ मित्रता उत्पन्न की जा सकती है।

 

उन्होंने एक स्थान पर कहा है कि - एक सलाम और थोड़ी सी बात - चीत द्वारा या किसी के साथ हाथ मिला कर भी एक दूसरे का हाल जान सकते हैं।

 

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के एक मित्र अबू उबैदा कहते हैं एक बार एक यात्रा में मैं इमाम के साथ था। यात्रा के दौरान उन्होंने मुझसे सवारी पर सवार होने का आग्रह किया।

 

वे मेरे साथ इतना आत्मीय व्यवहार कर रहे थे कि मानो बहुत दिनों के बाद किसी मित्र से मिले हों।

 

मैने उनसे आग्रह किया-हे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र, आप अपने साथियों और मित्रों के साथ ऐसा अचछा व्यवहार करते है।

 

इमाम ने जवाब में कहा- तुम्हें ज्ञात नहीं है कि लोगों के साथ निकटता और घनिष्ठता में क्या उपहार निहित है।

 

जब भी मोमिन एक दूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करते और एक दूसरे का हाथ अपने हाथ में लेते हैं तो उनके पाप पेड़ के पत्तों की भांति गिर जाते हैं

 

और वे उस समय तक ईश्वर की कृपा की छत्र छाया में रहते हैं जबतक एक दूसरे से अलग नहीं हो जाते।

 

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने उचित सामाजिक संबंधों की स्थापना को प्रोत्साहित करने के साथ साथ इसके ख़तरों से भी चोतित किया है।

 

उन्होंने संबंधों में सुधार की सिफ़ारिश की है।

 

आप कहते हैं- जिस किसी से तुम्हें गम्भीर ख़तरा हो उससे दूरी करो। किसी पापी से मित्रता न करो और उसे अपने रहस्य मत बताओ।

 

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम आम लोगों के साथ रहते थे। वे घमण्डियों की भांति व्यवहार नहीं करते थे। वे सदैव ग़रीबों तथा दीन दुखियों का साथ दे ते।

 

कभी कभी अत्यन्त गुमनाम लोगों के साथ उठते बैठते और उनकी सहायता करते थे। उनकी समस्याओं का समाधान करते और उनकी आस्थाओं को सुधारते थे।

 

वे जनता से प्रेम करते और इस प्रेम का व्यवहारिक रूप से प्रदर्शन करते थे। कोई भी ग़रीब उनके द्वार से निराश होकर वापस नहीं जा सकता था।

 

वे अपने साथियों से सदैव सिफ़ारिश करते थे कि दीन दुखियों तथा ग़रीबों को अच्छे नामों से बुलाऍं और उनका सम्मान करें।

 

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के काल में उपयुक्त परिस्थितियां उत्पन्न हुईं जिन में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजन ईश्वरीय शिक्षाओं का प्रसार थे और श्रेष्ठ विचार लोगों तक पहुंचाते थे।

     
इस अवसर से लाभ उठाते हुए इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने मदीना नगर में एक बड़े विश्वविद्यालय की नीवं रखी और अपने ज्ञान की किताब सभी के लिए खोल कर रख दी।

 

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम धार्मिक शिक्षाओं को बयान करने के लिए ज्ञान के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत अर्थात

 

क़ुरआने मजीद और पैग़म्बरे इस्लाम (स) की परम्परा पर बल देते और अपने साथियों से कहते थे- जब भी मैं तुम्हें कोई हदीस बताऊं तो उसका हवाला ईश्वरीय किताब क़ुरआन में मुझसे पूछो।

 

इस प्रकार से इमाम चाहते थे कि पवित्र क़ुरआन को ईश्वरीय पहचान तथा इस्लामी कार्यक्रमों के मापदण्ड के रूप में प्रस्तुत करें

 

और उसके स्थान कि सत्य तथा अस्तय की पहचान प्राप्त करने वाले के रूप में पुष्टि करें।

 

दूसरी ओर वे प्रयास करते थे कि अपने वक्तव्यों की पुष्टि पैग़म्ब की परम्पराओं तथा कथनों के आधार पर करवाएं।

 

सत्य के प्रसार के लिए इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के प्रयास कारण बने कि अब्बासी शासकों विशेषकर हेशाम बिन अब्दुल मलिक की ओर से उनकी गतिविधियों को सीमित किया जाए।

 

हेशाम धन का लोभी, कन्जूस और क्रूर शासक था और अपने कारिन्दों को आदेश देता था कि विभिन्न रूपों से इमाम पर दबाव डालते रहें। परन्तु इतनी अधिक सीमाओं और दबावों के बावजूद , वे विभिन्न प्रकार से लोगों को राजनैतिक जानकारियों देते थे और एक चरित्रवान नेता के चय न के बारे में उनको अपने दृष्टिकोंण से अवगत करवाते थे। इस प्रकार लोगों को भी शासक के वास्तिवक मापदण्डों से अवगत करवाते और इस प्रकार तत्कालीन शासकों की आलोचना की जाती थी।

 

इमाम कहते थे- निसन्देह लोगों के नेतृत्व के लिए वही उपयुक्त है जिसमें तीन विशेषताएं हों - पहली यह कि उसके मन में ईश्वर का भय हो और ईश्वर की अवज्ञा के भंवर में इबने से बचा रहे। दूसरी यह कि संयमी हो और अपने क्रोध को नियंत्रित रख सके और तीसरी यह कि अपने अधीन काम करने वालों के साथ एक पिता जैसा भला व्यवहार करे।

 

चर्चा का अन्त हम उनके कुछ स्वर्ण कथनों से कर रहे हैं आप कहते हैं - ज्ञान प्राप्त कीजिए क्योंकि ज्ञान की प्राप्ति भला कार्य और उपासना है। ज्ञान स्वर्ग का एक फल है और अकेले पन का साथी तथा अज्ञानता के अंघकार में मार्ग दर्थक है।

 

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम एक अन्य स्थान पर कहते हैं-

 

अपने कार्यों में टाल - मटोल मत करो क्योंकि यह एक ऐसा समुद्र है जिसमें बर्बाद होने वाले डूब जाएं गे।

 

एक स्थान पर आप का कथन है- प्रस्न्नचित चेहरा लोगों की मित्रता तथा ईश्वर की निकटता कर कारण बनता है।


source : alhassanain
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