Hindi
Wednesday 27th of November 2024
0
نفر 0

हज़रत ज़ैनब अलैहस्सलाम

हज़रत ज़ैनब अलैहस्सलाम

महापुरूषों के जीवन की समीक्षा करना और उनको आदर्श बनाने जैसी बातें आत्मशुद्धि और उचित प्रशिक्षण के महत्वपूर्ण कारक हैं।

इतिहास में ऐसे सदाचारी पुरूषों और महिलाओं के उदाहरण मौजूद हैं जिनमें से प्रत्येक परिपूर्णता के शिखर तक पहुंचे और मानवता के लिए अमर आदर्श में परिवर्तित हो गए।

परिपूर्णता तक पहुंचने और आध्यात्म के उच्च चरणों को तै करने के मार्ग में इन महापुरूषों का जीवन मनुष्य की बहुत सहायता करता है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के पश्चात उनके परिवार की एक अत्यंत विशिष्ट और सम्मानीय महिला हज़रत ज़ैनब हैं जो हज़रत फ़ातेमा की ही सुपुत्री हैं।

पांचवी हिजरी क़मरी में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा और हज़रत अली अलैहिस्सलाम को ईश्वर ने एक सुपुत्री प्रदान की जिसका नाम उन्होंने ज़ैनब रखा।

ज़ैनब का अर्थ होता है पिता का श्रंगार व सम्मान। यह महान महिला, इतिहास के सर्वेश्रेष्ठ व्यक्तित्वों के साथ रहकर धर्म की सर्वोच्च शिक्षाओं से अवगत हुई।

हज़रत ज़ैनब ने पवित्रता, ईश्वरीय भय और धैर्य को अपनी सम्मानीय माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से सीखा और वीरता, वाकपटुता तथा सदाचारिता को अपने पिता से अर्जित किया। इन विशेषताओं के साथ उन्होंने करबला में अपनी अभूतपूर्व एवं अमर उपस्थिति दर्ज कराई।

हज़रत ज़ैनब ने अपने जीवन का एक यादगार भाग पैग़म्बरे इस्लाम (स) की छत्रछाया में बिताया किंतु पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के कारण यह काल बहुत जल्दी समाप्त हो गया।

इसके कुछ ही समय के पश्चात पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की भी शहादत हो गई और वे अपनी संतान के साथ अधिक समय व्यतीत नहीं कर सकीं।
किंतु इसी अल्पावधि में उन्होंने अपनी संतान को एकेश्वरवाद और अधिकारों की रक्षा के पाठ सिखाए।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने बड़ी निष्ठा और उत्साह के साथ व्यवहारिक ढंग से अपनी संतान को इस्लामी शिक्षाएं सिखाईं।

हज़रत ज़ैनब बहुत ही बुद्धिमान थीं। अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण ही उन्होंने अल्पायु में अपनी माता हज़रत फ़ातेमा का व्यापक एवं अभूतपूर्व ख़ुत्बा याद कर लिया।

यह सब स्पष्ट निशानियां, उस लड़की की बुद्धिमानी तथा बौद्धिक परिपक्वता का चिन्ह हैं जिसने ईश्वरीय संदेश से परिपूर्ण वातावरण में पशिक्षण प्राप्त किया था।

उन्होंने अपने पिता हज़रत अली जैसे महान व्यक्ति से ज्ञान और नैतिक गुण सीखे।

उनके ज्ञान की ख्याति इस सीमा तक थी कि "बनी हाशिम" के लोग उन्हें "अक़ीलए बनी हाशिम" की उपाधि से याद करते थे जिसका अर्थ होता है बनी हाशिम की बुद्धिमान महिला।

मदीने की महिलाएं ज्ञान अर्जित करने के लिए हज़रत ज़ैनब के घर जाया करती थीं। हज़रत ज़ैनब उन्हें धार्मिक, सामाजिक, तथा राजनैतिक सहित विभिन्न विषयों की शिक्षा देती थीं।

हज़रत ज़ैनब द्वारा शिक्षा देने का यह क्रम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कूफ़ा नगर में रहने के समय भी जारी रहा क्योंकि वे कूफ़े में अपने पिता के साथ मौजूद थीं।

इस दौरान ज्ञान प्राप्ति की इच्छुक महिलाओं ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास यह संदेश भेजा कि हमने यह सुना है कि आपकी सुपुत्री हज़रत ज़ैनब अपनी माता हज़रत फ़ातेमा की ही भांति उच्च ज्ञान, परिपूर्णता और सदगुणों का स्रोत हैं।

यदि आप अनुमति दें तो हम उनकी सेवा में उपस्थित होकर ज्ञान के इस स्रोत से लाभ उठाएं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत ज़ैनब को अनुमति दी कि वे कूफ़े की महिलाओं को शिक्षा दें और उनकी धार्मिक एवं ज्ञान संबन्धी समस्याओं का समाधान करें।

इसके पश्चात हज़रत ज़ैनब ने कूफ़े की महिलाओं को पढ़ाना आरंभ किया। वे उनके लिए पवित्र क़ुरआन की व्याख्या करतीं और साथ ही वे उनकी शंकाओं का समाधान भी किया करती थीं।

हज़रत ज़ैनब इतनी मृदुभाषी, अच्छे आचरण वाली और विनम्र थीं कि बहुत सी महिलाएं पहली ही भेंट में उनके व्यवहार से प्रभावित हो जाती थीं।

एक वरिष्ठ मोहद्दिसा (अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कथन बयान करने वाली) के रूप में उनकी बातों को हदीस की बहुत सी पुस्तकों मे लिखा गया है।

उदाहरण स्वरूप "मन ला यहज़ोरोहुल फ़क़ीह" "वसाएलुश्शीया" तथा "बेहारुल अनवार" जैसी पुस्तकों और विश्वसनीय स्रोतों में हज़रत ज़ैनब द्वारा बयान की गई हदीसें मिलती हैं।

उन्होंने इन हदीसों को अपने पिता हज़रत अली, (अ) माता, हज़रत फ़ातेमा (स) और अपने भाइयों से सुनकर दूसरों को बताया था।

इस महान महिला की ज्ञान संबन्धी श्रेष्ठता इस सीमा तक थी कि पवित्र क़ुरआन के महान व्याख्याकार इब्ने अब्बास जब भी लोगों के बीच हज़रत ज़ैनब के हवाले से कोई बात कहना चाहते थे तो वे इस प्रकार कहा करते थे कि हमारी बुद्धिमान ज़ैनब (स) ने यह कहा है। हज़रत ज़ैनब के लिए अक़ीला अर्थात बुद्धिमान की उपाधि उस समय इतनी प्रसिद्ध हो गई थी कि

लोग उनके बेटों को भी "बनी अक़ीला" अर्थात बुद्धिमान महिला की संतान कहा करते थे।

करबला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात करबला, कूफ़ा और शाम में दिये गए उनके भाषण, जिनमें उन्होंने तत्कालीन अत्याचारियों को संबोधित किया था, उनके ज्ञान और उनकी प्रवीणता को दर्शाते हैं। उनके भीतर इसी प्रकार भाषण सामर्थ्य के अतिरिक्त एसे सूक्ष्म व मूल बिंदु पाए जाते हैं जो संवेदनशील समय में निर्णय लेने व नीति निर्धारण की में उनकी क्षमता की ओर संकेत करते है। यह विषय उनकी बुद्धिमानी और दूरदर्शिता के साथ ही साथ अवसर को पहचानने का भी परिचायकहज़रत ज़ैनब में पाई जाने वाली अलौकिक व आध्यात्मिक विशेषताओं में एकांत में ईश्वर की उपासना जैसी विशेषता बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

दायित्वों के निर्वाह और इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से ईश्वर के मार्ग में संषर्घ एवं पलायन तथा माता-पिता और भाइयों का साथ देना आदि जैसी बातों के कारण उनके पूरे जीवन को ही उपसना कहा जा सकता है। समस्त निर्णय, पलायन और यात्राएं, संघर्ष एवं अन्याय के विरुद्व आवाज़ उठाने जैसी समस्त बातें ईश्वर के लिए किये जाने वाले उनके कार्य थे। यह महान महिला रातों को पवित्र क़ुरआन का पाढ करने और नमाज़े शब अर्थात रात्रि की विशेष उपासना करने में व्यतीत करती थीं। करबला की त्रासदी के पश्चात हर प्रकार के दुख-दर्द को सहन करने और थकन से निढाल होने के बावजूद उन्होंने कभी भी नमाज़े शब पढ़ना नहीं छोड़ा।

इस संबन्ध में इमाम ज़ैनुल आबेदीन कहते हैं कि कूफ़े से शाम के रास्ते में मेरी फुफी ज़ैनब, सभी नमाज़ों को पढ़ती थीं। भूख तथा अत्याधिक कम़ज़ोरी के कारण वे कभी बैठकर नमाज़ें पढ़ने पर विवश थीं।

करबला और उसके बाद की दुखद घटनाओं के बावजूद हज़रत ज़ैनब, ईश्वर की उपासना के मार्ग से बिल्कुल पीछे नहीं हटीं और उन्होंने कभी भी इन बातों पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त नहीं की।

वे जो कुछ भी कहती थीं वह ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्ति के लिए कहती थीं।

उन्होंने कूफ़े के अत्याचारी शासक इब्ने ज़ियाद के प्रश्न के उत्तर में कहा था कि मैंने करबना में सुन्दरता के अतिरिक्त कुछ नहीं देखा।

उनका यह वाक्य, एकेश्वरवाद में उनकी आस्था के उच्च स्तर, ईश्वर की गूढ़ पहचान, ईश्वर से निकटता और ईश्वर की दासता को चित्रित करता है।

हज़रत ज़ैनब के व्यक्तित्व की एक अन्य विशेषता, धैर्य है। मनुष्य का जीवन भौतिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं का मिश्रिण है।

यदि व्यक्ति अपनी आंतरिक इच्छाओं के मुक़ाबले में प्रतिरोध न करे तो फिर वह कभी भी अपनी भौतिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित मार्ग प्राप्त नहीं कर सकता।

निर्धनों की सहायता भी हज़रत ज़ैनब के जीवन का एक अन्य रूप है। मदीने में उनका घर बेसहारा लोगों और निर्धणों का शरणस्थल था।

वे निर्धनों और भूखों की सहायता करने में पवित्र क़ुरआन के सूरए फ़ातिर की आयत संख्य २९ का आदेश पालन करती थीं जिसमें ईश्वर कहता है कि वे लोग जो ईश्वर की आयतों की तिलावत करते हैं और नमाज़ क़ाएम करते हैं और ईश्वर ने उनकी जो भी आजीविका निर्धारित की है उससे वे निर्धनों की छिपकर या खुलकर सहायता करते हैं।
वे एसे व्यापार की आशा करते हैं जिसमें विनाश और घाटा नहीं है।

हम आशा करते हैं कि ईश्वर हमें इस महान महिला का अनुसरण करने

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

क़ुरआन
आदर्श जीवन शैली-६
चेहलुम के दिन की अहमियत और आमाल
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलमा का जन्म ...
म्यांमार अभियान, भारत और ...
मोमिन की नजात
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के वालदैन
शेख़ शलतूत का फ़तवा
ख़ुत्बाए फ़ातेहे शाम जनाबे ज़ैनब ...

 
user comment